भारत के प्रतिबंधित संगठन यूनाइटेड लिबरेशन फ़्रंट ऑफ़ असम यानी उल्फ़ा के प्रमुख अरबिंद राजखोवा को ज़मानत मिल गई है.
एक साल पहले उन्हे बांगलादेश ने अपने यहाँ गिरफ़्तार करके असम सरकार के हवाले कर दिया था. तब से वो गुवाहाटी की सेंट्रल जेल में बंद थे.
उल्फ़ा के वकील बिजॉन महाजन ने कहा, "अरबिंद राजखोवा को ज़मानत मिल गई है. हालांकि अदालत ने उन्हे बिना इजाज़त असम या भारत छोड़ कर जाने से मना किया है."
राजखोवा की पत्नी कावेरी और उनके दो बच्चों को भी उनके साथ ही गिरफ़्तार किया गया था लेकिन असम की पुलिस ने उन्हें बिना कोई अभियोग लगाए छोड़ दिया था.लेकिन ठोस प्रमाणों के अभाव में और कुछ सरकारी रणनीति के तहत उन्हें अदालत की तरफ़ से ज़मानत मिल गई. जेल में बंद इन पृथकतावादी नेताओं की तरफ़ से भारत सरकार को ये स्पष्ट संकेत मिल रहे थे कि वो छूटने के बाद शांति वार्ताएं करने को राज़ी होंगे. एक समय ऐसा था जब उल्फ़ा के सर्वोच्च कमांडर परेश बरुआ के अलावा बाक़ी सभी शीर्ष नेता जेल में बंद थे. लेकिन जब शांति वार्ताओं का मार्ग प्रशस्त करने के लिए उनकी रिहाई की मांग बढ़ी तो सरकारी वकीलों ने उनकी ज़मानत की अर्ज़ियों पर आपत्ति करना बंद कर दिया और एक-एक करके वो रिहा हो गए. अब सबकी नज़र उल्फ़ा के अध्यक्ष अरबिंद राजखोवा पर है कि वो पिछले 30 सालों से असम में चल रहे विद्रोह का अंत करने को तैयार होते हैं या नहीं. असम पुलिस के अनुसार राजखोवा पर हत्या, अपहरण और ज़बरदस्ती वसूली करने के कई मुक़दमे चल रहे हैं.
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