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गुरुवार, 6 जनवरी 2011

कोर्ट का आदेश सरकार और विवि के ठेंगे से.

नौकर ऐसा चाहिए जो काम जीजान से करे लेकिन वेतन की मांग नहीं करे। यही कहावत जिले के एकमात्र नवअंगीभूत महिला कालेज 56 शिक्षकों व चार दर्जन कर्मचारियों पर लागू हो रहा है जो मिथिला विश्वविद्यालय प्रशासन व मानव संसाधन विकास विभाग की बेरूखी का शिकार होकर लगभग तीन वर्षो से कर्ज पर ही जीवित हैं। इनके लिए नीतीश का सुशासन एक कुशासन साबित हो रहा है। हाईकोर्ट द्वारा वेतन भुगतान का आदेश भी बेअसर साबित हो रहा है। गौरतलब है कि जून 2008 से इनका वेतन भुगतान बंद है। विश्वविद्यालय व मानव संसाधन विभाग ने सुप्रीम कोर्ट न्यायादेश की गलत व्याख्या के द्वारा इन्हें अग्रवाल कमीशन में आर.टू कोटि का कह इनके वेतन भुगतान पर रोक लगा दिया जो अब तक जारी है।

इसके विरूद्ध 60 शिक्षक 95 कर्मचारी पुन: हाईकोर्ट गए और एकल पीठ तथा पूर्ण पीठ ने इनके वेतन का एरियर सहित भुगतान का आदेश दिया। इसके बावजूद इन्हें भुगतान नहीं हुआ। वर्ष 2010 में अग्रवाल कमीशन में नामित 28 शिक्षकेत्तर कर्मियों का वेतन भुगतान शुरू हुआ है लेकिन शिक्षकों में सिर्फ 28 का ही वेतन भुगतान हो रहा है। जबकि अभी 56 शिक्षक वेतन भुगतान से वंचित होकर भी अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहे है। नए कुलपति डा.एस.पी.सिंह के कार्यकाल में भी इनका वेतन भुगतान बंद ही है। शिक्षक कल्याण संघ के अध्यक्ष डा.अन्नपूर्णा कुमारी व सचिव डा.भारत भूषण राय के अनुसार विश्वविद्यालय प्रशासन दुरंगी नीति अपना रही है। एक ओर वह अग्रवाल कमीशन में नामित शिक्षकेत्तर कर्मचारियों का वेतन भुगतान करना प्रारंभ कर दी है जबकि अग्रवाल कमीशन के रिपोर्ट में सामंजन के लिए अनुशंसित 56 शिक्षकों को वेतन भुगतान से वंचित किए हुए है।

डा.राय ने कहा कि इस कालेज में के.के.पाठक के पत्र के अनुसार कुल 122 पद स्वीकृत हैं। जिसपर केवल 24 को ही कार्यरत दिखाया गया है। इसी का लाभ उठाकर विश्वविद्यालय यह खेल रही है। जबकि यहां कुल 82 शिक्षक कार्यरत हैं जिनका दैनिक रिपोर्ट विश्वविद्यालय व सरकार में जा रहा है। लेकिन काम लेने के बावजूद वेतन भुगतान से वंचित किया जा रहा है।

साभार :- जागरण डोट कॉम

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