बिहार में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए मंज़ूरी मिले तक़रीबन दो साल हो गए हैं लेकिन उसके स्थान निर्धारण को लेकर राज्य और केंद्र सरकार के बीच जारी वाद-विवाद के कारण मामला अटक-सा गया है. विश्वविद्यालय को अबतक अपना ठौर-ठिकाना नहीं मिल पाया है और इसका अस्तित्व बी. आई. टी. मेसरा के पटना कैंपस से लगे हुए एक अस्थाई छोटे स्थान में सिमटा पड़ा है.
राज्य सरकार कहती है कि अगर विश्वविद्यालय को बिहार में स्थापित होना है तो गाँधी के चंपारण आन्दोलन से जुड़े एक छोटे शहर मोतिहारी में जाना ही होगा. यह नितीश कुमार की जिद्द है
नीतीश कुमार का कहना है, ''मोतिहारी में अच्छे कैम्पस के लायक ज़मीन उपलब्ध है और गांधी की कर्मभूमि के रूप में चर्चित उस जगह पर केन्द्रीय विश्वविद्यालय खुलने से राज्य के उस हिस्से में भी मानव संसाधन विकास के साथ-साथ तरक्क़ी के और कई रास्ते खुलेंगे.'' लेकिन यह तर्क केन्द्रीय मानव संसाधन विभाग को मंज़ूर नहीं है. केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल कहते हैं, '' गांधी का नाम लेकर इसे भावनात्मक मुद्दा बनाना ठीक नहीं है. जहाँ आधारभूत संरचना (बिजली, सड़क, अस्पताल वगैरह) के अलावा आवागमन के साधन ठीक-ठाक ना हों, वहाँ यूनिवर्सिटी खोल देने से शिक्षक और छात्र दोनों मिलने में दिक्कत होगी." हमारी सरकार चूँकि समावेशी विकास के तहत राज्य के बाक़ी हिस्सों को भी विकसित करना चाहती है इसीलिए मोतिहारी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी के लिए उपयुक्त जगह मानते हुए वहाँ ज़मीन का भी प्रबंध कर चुकी है. अब केंद्र को जो निर्णय लेना हो ले, राज्य सरकार अपने फ़ैसले पर दृढ है. केद्र सरकार ने इस बाबत राज्य सरकार से स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि पटना के आस-पास ज़मीन उपलब्ध कराये जाने पर ही इस केन्द्रीय विश्वविद्यालय के अपेक्षित स्वरुप वाला कैम्पस बन पाएगा.
राज्य के शिक्षामंत्री पी के शाही ने कहा, "पटना के पास अब उतनी ज़मीन नहीं है? सरकार चूँकि समावेशी विकास के तहत राज्य के बाक़ी हिस्सों को भी विकसित करना चाहती है इसीलिए मोतिहारी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी के लिए उपयुक्त जगह मानते हुए वहाँ ज़मीन का भी प्रबंध कर चुकी है. अब केंद्र को जो निर्णय लेना हो ले, राज्य सरकार अपने फ़ैसले पर दृढ है.''
केंद्र और राज्य सरकार; के बीच फंसा यह केन्द्रीय विश्वविद्यालय बिहार में तभी संभव होगा, जब नीतीश कुमार और कपिल सिब्बल की मिली-जुली कृपा होगी.
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