उत्तर प्रदेश में ग्रेटर नोएडा के भट्टा-पारसौल में भूमि के जबरन अधिग्रहण के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा की गई कथित हिंसक कार्रवाई और ज्यादती की सीबीआई जांच कराने की मांग करती एक याचिका की सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इंकार कर दिया।
जस्टिस जी.एस. सिंघवी और जस्टिस सी.के. प्रसाद की पीठ ने याचिकाकर्ता को इलाहाबाद हाईकोर्ट जाने को कहा, जिसने इस मुद्दे का पहले ही संज्ञान लिया है।
प्रदर्शनकारी किसानों की ओर से पैरवी करते हुए वरिष्ठ वकील यू.यू. ललिल ने दलील दी कि मामले के सुप्रीम कोर्ट द्वारा देखे जाने की जरूरत है क्योंकि बेघर कर दिए गए हजारों किसानों के जीवन और आजीविका की समस्या इससे जुड़ी है और उनकी जिंदगी पर लगातार खतरा बना हुआ है। उन्होंने कहा कि मामले की सीबीआई जांच की जरूरत है क्योंकि स्थानीय पुलिस सहित आधिकारिक तंत्र ने भूमि अधिग्रहण कानून की धारा 17 के तहत जमीन का अधिग्रहण करने के बाद कथित तौर पर आतंक का राज कायम किया।
कानून की उक्त धारा के मुताबिक अत्यंत आवश्यकता की स्थिति में सरकार कानून की अन्य धाराओं की प्रक्रियाओं के तहत अनिवार्य तौर पर भूमि का अधिग्रहण कर सकती है। किसानों की ओर से वकील ललित ने दलील दी कि ऐसी कोई भी आवश्यक स्थिति नहीं थी और प्रदेश सरकार के अधिकारियों ने प्रदर्शनकारी किसानों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा की। हालांकि पीठ उनकी दलीलों से संतुष्ट नहीं हुई और याचिकाकर्ता को इलाहाबाद हाईकोर्ट जाने को कहा। पीठ ने कहा कि कथित ज्यादतियों की जांच राष्ट्रीय महिला आयोग और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति आयोग जैसे विभिन्न मानवाधिकार आयोग भी कर रहे हैं। इसलिए शीर्ष अदालत का इस याचिका पर सुनवाई करना उपयुक्त नहीं होगा।
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