राजस्थान सरकार को ठेंगा दिखाता कालेज. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 2 जुलाई 2011

राजस्थान सरकार को ठेंगा दिखाता कालेज.

राजस्थान के भरतपुर में एक ऐतिहासिक कस्बा है बयाना। इस कस्बे में एक कन्या महाविधालय हैं। प्रदेमें ऐसे एक हजार से अधिक महाविधालय है। अग्रवाल समाज द्वारा संचालित ये एक महाविधालय राज्य सरकार और उसके उच्चशिक्षा विभाग को सीधे तौर पर धता बता रहा है। बीते सत्र में मुख्यमंत्री सहित संभागीय आयुक्त कार्यालय ने इसकी जाच कराली । सभी में सीधे तौर पर दोषी पाये जाने पर भी महाविधालय के खिलाफ कोई कार्यवाही अमल में नहीं लाई जा रही है। इतना ही नहीं महाविधालय ने दो कदम आगे चलकर शिक्षा तंत्र का ही गला घोंट दिया है। एक बार फिर से अगवाल समाज की ही कार्यकारिणी बनाकर सभी व्यवस्थाओं को ठेगें पर बिठा दिया है। इससे एक कदम और आगे 15 लाख की लागत जिस भवन में राज्यसरकार की लगी है उसे अपने समाज द्वारा बनाया घोषित कर दिया है।
जनबरी 2011 में अग्रसेन कन्या महाविधालय की मुख्यमंत्री कार्यालय के अधीन जाच की गई थी। जाच अधिकारी ने क्रमा1441-43 दिना14-12-11 को आयुक्त कालेज शिक्षा को भेजी अपनी जाच रिपोर्ट में साफ लिखा था कि.....
1.श्री अग्रसेन कन्या महाविधालय बयाना की प्रवंध समिति के गठन के संबंध में जो आपत्तिया की गई थी उसमें पाया गया कि प्रवंध समिति राजकीय मापदंडों के अनुरूप नहीं है।
2.छात्राओं व उनके अभिभावकों के द्वारा फीस वृद्वि के संबंध में जो शिकायतें की गई है उस अनुपात में महाविधालय में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है।
जाच अधिकारी ने जाच रिपोर्ट में सुझाव दिये थे कि.....
1.प्रवंध समिति का पुनर्गठन कर राजकीय नियमों के अनुसार स्थानीय गणमान्य व्यक्तियों,प्रशासनिक व न्यायिक अधिकारियों,राजकीय महाविधालय के प्राचार्य,विवविधालय व निदेशालय के प्रतिनिधि अभिभावक आदि को समायोजित कर कर संतुलित समिति का गठन किया जाना आवयक है।
2.छात्राओं की फीस का पुनर्निधारण करते समय अभिभावकों,अन्य पक्षों की सहमति प्राप्त की जावे तथा फीस के अनुपात में महाविधालय में सुविधाऐं भी उपलब्ध कराई जावें।
इतना ही नहीं जाच समिति ने लिखा कि महाविधालय में व्याख्याताओं व अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति व वेतनमान का वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पुन निर्धारण आवयक है। जिससे भविष्य में छात्राओं के लिए उच्चशिक्षा प्राप्त हो सके एंव महाविधालय में कार्यरत समस्त व्यक्तियों के परिवार सम्मानपूर्वक जीवन यापन कर सकें।
इससे पूर्व स्थानीय उपखंड अधिकारी ने तहसीलदार बयाना की अध्यक्षता में एक तीन सदस्यीय जाच समिति का गठन किया था। उस जाच समिति ने भी क्रमा488 दिना21-9-10 को सोंपी अपनी जाच रिपोर्ट में लिखा कि....
1 अग्रसेन कन्या महाविधालय मुताबिक रिर्काड 20 सदस्यों की प्रवंध समिति में 1 लगायत 19 अग्रवाल समाज के सदस्य है तथा क्रमा20 पर दर्ज डा सती मंजुल विवविधालय के प्रतिनिधि है। राजस्थान गैर सरकारी संस्था नियिम 1993 के नियम 23 के पेज 85 नियम 23 ख में यह व्यवस्था है कि प्रवंध समिति में किसी भी एक समुदाय जाति या पंथ के दो तिहाई से अधिक सदस्य नहीं होगें। इसके अलावा प्रवंध कमेटी में विधार्थियों के सदस्य का होना अनिवार्य है तथा स्थायी स्टाफ में से भी एक सदस्य का चयनित किया जावें। जो कि इस संस्था में प्रवंध समिति में नहीं लिया गया है। क्रमा20 पर दर्ज जो विवविधालय प्रतिनिधि है उनका भी अनुमोदन नियमानुसार नहीं कराया गया है।
इन सब के बाद फरवरी 2011 में संभागीय आयुक्त भरतपुर के निर्दे पर तहसीलदार बयाना ने छात्राओं की शिकायतों पर एक बार और जाच की गई। उस जाच रिपोर्ट में प्रवंध समिति के बारे में साफ शब्दों में लिखा कि उसमें एक जाति के सदस्यों का बर्चस्व है। इस जाच रिपोर्ट में छात्राओं की शिकायतों.... महाविधालय पत्रिका का प्रका,सास्कृतिक गतिविधियों के आयोजन,सह शैक्षणिक गतिविधियों के किर्यांवयन, खेल और वार्षिक उत्सव तथा स्वास्थ्य परीक्षण कराये जाने की भी विस्तार से जाच की गई थी।
जाच अधिकारी ने सभी शिकायतों को सही माना। जाच रिर्पोट में लिखा गया कि जिन मुददों को लेकर छात्रसंघ ने शिकायतें की है वो सभी सही पाई गई है। महाविधालय हर एक मद में छात्राओं से फीस बसूलता चला आ रहा है जबकि कोई भी आयोजन इस महाविधालय में नहीं कराया जाता है। जाच अधिकारी ने साफ लिखा है कि महाविधालय में शिक्षा का कोई वातावरण ही नहीं है।
सभी जाच रिपोर्ट आयुक्तालय कालेज शिक्षा की फाईलों में गुम हो गई है। कहीं किसी पर भी कोई कार्यवाही होती नजर नहीं आ रही है। वही दूसरी ओर महाविधालय है कि लगातार अपनी मनमानी किये जा रहा है। इस सबके बीच बडा सवाल ये खडा हो रहा है कि राजस्थान में उच्च शिक्षा का ढाचा ही चरमरा गया है या फिर शिक्षा के इन माफियाओं ने उसे किसी दूसरे रास्ते से अपने चंगुल में ले लिया है।
इस महाविधालय को देखकर तो साफ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। आगामी शिक्षण सत्र के लिए महाविधालय ने न केवल उन सभी विन्दुओं को अपने शैक्षिक कलेण्डर से गायब कर दिया है जिनकी जाच में उसकी चोरी पकडी गई थी। इसका मतलब है कि अब इस महाविधालय में न कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम होगा न ही सह शैक्षणिक गतिविधियों और बार्षिक उत्सव का आयोजन। इस सबके साथ स्वास्थ्य परीक्षण और खेंलों को भी दूर कर दिया गया है। कारण साफ है लगातार एक दक से इन मदों में महाविधालय फीस ले रहा था और किया कुछ जाता नहीं था। अब बडा सवाल ये है कि इन सब के बिना महाविधालय शिक्षा का छात्राओं के लिए महत्व क्या रह जायेगा।
उधर कालेज प्रवंध ने मुख्यमंत्री कार्यालय के अधीन हुई जाच रिपोर्ट और उसकी आपत्तियों,सिफारिशों को धता बताते हुये एक बार फिर से छात्राओं पर फीस का भार बढा दिया गया है। लगभग एक हजार रूप्ये की फीस में बढोतरी कर दी गई है।
तीन जाच रिपोर्टो में प्रवंध समिति के गठन को लेकर साफ आपत्ति की गई थी। बीते 26 जून को हुये प्रवंध समिति के गठन में एक बार फिर से न केवल अधिकां पुरानी प्रवंध समिति का ही अनुमोदन कर दिया गया है जिसमें अभी तक अखवारों में छपें नामों के अनुसार सभी एक ही जाति के सदस्य है।
प्रवंध समिति के चुनावों के लिए सदस्यों को भेजी विज्ञप्ति में साफ लिखा था कि...जय श्री अगसेन। कार्यकारिणी के निर्णयानुसार अगवाल समाज कल्याण व शिक्षा समिति बयाना की कार्यकारिणी के चुनाब दिना26.6.11 को नवीन भवन श्री अग्रसेन कन्या महाविधालय में करवाये जायेगें। ‘‘यह चुनाव अग्रवाल समाज का है राजनैतिक नहीं’’ ।आप भी अपने इस चुनाव को सर्व सम्म्ति से निर्विरोध रूप से सम्पन्न कर एक रूपता और संगठन का अनुकरणीय उदाहरण समाज के सम्मुख प्रस्तुत करें। ऐसी आपसे अपेक्षा और विवास करते है।
जारी विज्ञप्ति से साफ हो रहा है कि किसी शिक्षा से जुडी प्रवंध समिति का ये चुनाव नहीं हुआ है। ये केवल अगवाल समाज के संगठन का चुना है। वैसे सही मायनों में इसे चुनाव कहना भी बेमानी है। विज्ञप्ति में ही साफ संकेत किया गया है कि चुनाव को सर्वसम्मति से निर्विरोध रूप से कर एकरूपता और संगठन का अनुकरणीय उदाहरण समाज के सम्मुख प्रस्तुत करें। हुआ भी वही है। अध्यक्ष,उपाध्यक्ष,कोषाध्यक्ष तो गत प्रवंध समिति के ही चुन लिए गये है। केवल पुराने मंत्री को अब उपमंत्री बनाकर एक सदस्य को मंत्री बना दिया गया है। ये सभी सदस्य अग्रवाल समाज के ही है। होने भी थे क्योंकि विज्ञप्ति में साफ लिखा था कि ये चुनाव अगवाल समाज का है। ऐसे में सवाल उठता है कि तीन जाच रिपोर्टो को क्या हुआ। राज्य सरकार उसका प्रशासन और उच्च शिक्षा का विभाग आखिर क्या कर रहा है। उधर छात्राओं को केवल कागजी ज्ञान के लिए मोहताज कर दिया गया है। जिस शिक्षण संस्था में शिक्षा की सहयोगी महत्वपूर्ण गतिविधियों के संचालन को रोक दिया गया हो उसे काल कोठरी से अधिक कुछ नहीं कहा और माना जा सकता है। लेकिन विभाग है कि आखे मूदें हुये है।
महाविधालय ने पचास रूप्ये में छात्राओं को बेचे जा रहे प्रोस्पेक्टस में चुपके से एक और कारितानी कर दी है। पृष्ठ दो के पैरा तीन में लिखा है कि ‘‘ यह महाविधालय समाजद्वारा निर्मित भवन में माह अगस्त 2010 में स्थानान्तरित किया जा चुका है’’। इससे साफ है कि भवन का निर्माण अग्रवाल समाज के द्वारा ही किया गया है। दूसरी और जाच रिपोर्ट दूसरी ही कहानी बयान कर रही है। जिसमें लिखा है कि ‘‘ स्थानीय महाविधालय को विधायक कोटे से पूर्व में 10 लाख रूप्ये की राशि दी गई थी। जिससे नगर पालिका बयाना द्वारा भवन निर्माण कराया गया है। एक हैण्डपंप भी विधायक कोटे से लगाया गया है। इसके अलावा इस महाविधालय को 5लाख 11 हजार रूप्ये की राशि विधायक कोटे से और आवंटित हुयी है जिससे नगर पालिका द्वारा भवन निर्माण कराया जा रहा है। एम.एल.ए लैंड भी राजकीय राशि की श्रेणी में आता है। ऐसा जाच अधिकारियों ने साफ अपनी जाच रिपोर्ट में लिखा है।
ऐसे में एक बडा सवाल है कि लगभग 20 लाख का राजकीय सहयोग लेकर बनबाये गये भवन को कोई अपने समाजद्वारा निर्मित कैसे कहा जा सकता है। इस सबके साथ एक बात और है कि छात्राओं से जो राशि विकास शुल्क के नाम पर प्रतिवर्ष ली जा रही है उसमें से कुछ भी भवन निर्माण में नहीं लगा हो ऐसा हो ही नहीं सकता है। तो फिर सभी जातियों की छात्राओं की राशि के सहयोग से बने भवन को कैसे प्रवंधन अपने समाज की संपत्ति कह सकता है जबकि साथ में उसमें लाखों रूप्ये राज्य सरकार के और लगे हों।
इस सब से एक बात तो साफ है कि शिक्षा के निजीकरण का जो ढिढोरा पीटा जा रहा है उससे ऐसी तस्वीरें बन रही है जिनकी ओर अधिकां लोगों का ध्यान ही नहीं जा रहा है। सही मायनों में ऐसी विदूपताऐं आने वाली पीढी को जाति के नाम पर एक दूसरे कैसा संदे दे रही है। जो प्रवंधन नियमानुसार गठन को तैयार नहीं है। सरकारी व्यवस्थाऐं जिसका कुछ बिगाड नहीं पा रही है वो दूसरी जाति के अध्यापकों और बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करता होगा। इसकी एक नजीर तो तहसीलदार बयाना की जाच रिपोर्ट में निकल कर सामने आ गई। जहा अग्रवाल समाज की लडकियों की 4100 रूप्ये फीस माफ की गई थी वही दूसरी जाति की छात्रा को मात्र 60 रूप्ये की कटौती की गई।
बहुत जल्द शिक्षा के निजीकरण को लेकर सरकारों और उनके भारी भरकम विभागों ने कार्यवाही नहीं की तो हालात कितने बदतर होगें उनकी कल्पना ही सिहरन पैदा कर देती है। राजस्थान को लेकर हालात बहुत बदतर है। अफसोस इस बात का है कि कालेज शिक्षा का संचालन जिस भवन से हो रहा है उसे महान दार्निक और राष्ट्रपति रहे डा राधाकृष्णन के नाम पर रखा हुआ हैं।

---राजीव शर्मा---
भरतपुर

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