लोकपाल बिल पर विचार करने वाली स्थायी संसदीय समिति से लालू प्रसाद यादव और अमर सिंह को बाहर किया जा सकता है। बुधवार को इस 31 सदस्यीय समिति का पुनर्गठन होना है।
समिति के पास विचार के लिए लोकपाल बिल के 9 मसौदे आए हैं। इन पर विचार कर उसे अपनी सिफारिशें अक्टूबर तक सौंपनी है। माना जा रहा है कि इस अहम काम के मद्देनजर समिति का पुनर्गठन किया जाएगा।
सूत्र का कहना है कि समिति के जो सांसद जन लोकपाल बिल के खिलाफ राय रखते हैं, उन्हें आगे समिति में जगह नहीं मिले, इसके लिए लॉबीइंग भी की गई है। राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और पूर्व सपा नेता अमर सिंह भी इन्हीं सांसदों में से हैं। लालू पर चारा घोटाले में मामला भी चल रहा है और आरोपपत्र दाखिल करने के आदेश भी हो चुके हैं। अमर सिंह अब सपा में नहीं हैं। सपा उन्हें संसदीय समिति से बाहर करने की मांग करती रही है।
टीम अन्ना उनके और अमर सिंह के संसदीय समिति में होने पर पहले भी सवाल उठाती रही है। अन्ना हजारे के करीबी सहयोगी अरविंद केजरीवाल तो उनके समिति में होने का मजाक उड़ाते हुए कहते रहे हैं कि लालू और अमर जैसे नेता भ्रष्टाचार रोकने वाले लोकपाल बिल के भविष्य का फैसला करेंगे। ऐसे में इन दोनों नेताओं की समिति में मौजूदगी को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं।
टीम अन्ना को कांग्रेस नेता मनीष तिवारी के भी इस समिति में होने पर ऐतराज है। तिवारी ने अन्ना हजारे को खुले आम भ्रष्ट बताया था और 'तुम' कह कर संबोधित किया था। हालांकि बाद में उन्होंने माफी मांग ली थी। तिवारी स्पेक्ट्रम मामले में बनी साझा संसदीय समिति के भी सदस्य हैं। सूत्र बता रहे हैं कि नई समिति में मनीष तिवारी को भी जगह नहीं मिल सकती है। उम्मीद है कि कानून और न्याय मामलों की इस स्थायी संसदीय समिति की अध्यक्षता कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी के पास ही रहेगी। सूत्र बताते हैं कि पार्टियां संसदीय समिति में अपने उन्हीं नेता को रखना चाहेंगी जो अन्ना हजारे के आंदोलन के बाद लोकपाल पर पार्टी का रुख मजबूती से रख सकें और सिविल सोसाइटी के दबाव का भी बखूबी सामना कर सकें।
अभी संसदीय समिति का हाल यह है कि कानून और न्याय मामलों की समिति होने के बावजूद कांग्रेस के सात सदस्यों में से इकलौते मनीष तिवारी ही कानून के जानकार हैं। ऐसे में अब पार्टी बाकी 6 सदस्यों के नाम पर दोबारा विचार कर सकती है।
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