विकीलीक्स ने खुलासा किया है कि जनवरी 2010 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) पद से एमके नारायणन की रवानगी को अमेरिका ने अपने लिए सकारात्मक घटनाक्रम माना था, क्योंकि वह कश्मीर पर उनके विचारों को अवरोधक समझता था।
विकीलीक्स के अनुसार भारत में अमेरिका के तत्कालीन राजदूत टिमोथी रोमर ने अमेरिकी विदेश विभाग को भेजे गए एक गोपनीय संदेश में कहा था कि पी चिदंबरम के तहत भारत की कश्मीर नीति अधिक ठोस हो गई। शुरू में रोमर ने उल्लेख किया कि नारायणन की रवानगी सकारात्मक थी, क्योंकि उन्होंने कश्मीर मुद्दे पर भारत सरकार की नीति में प्रभावशाली, टस से मस न होने वाली और अक्सर अवरोधक के रूप में भूमिका निभाई।
रोमर ने गत वर्ष एक फरवरी को भेजे गए केबल में कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार पद से एमके नारायणन की रवानगी का कश्मीर नीति पर भारत के लिए संभवत: महत्वपूर्ण तात्पर्य है। यह केबल विकीलीक्स द्वारा जारी किए गए 2.5 लाख से अधिक संदेशों का हिस्सा है। अमेरिकी राजनयिक ने वाशिंगटन को लिखा कि आंतरिक सुरक्षा के मुद्दों पर फैसलों में नारायणन का काफी प्रभाव रहा, अपनी खुफिया और सुरक्षा पृष्ठभूमि तथा नेहरू-गांधी परिवार के साथ संबंधों के चलते नीति निर्धारण में उनकी हमेशा सुनी गई।
रोमर ने कहा कि कश्मीर (और पाकिस्तान) पर नारायणन की स्वाभाविक प्रवृत्ति सतर्क, टस से मस न होने वाली और अवरोधक थी। उन्होंने उल्लेख किया कि नारायणन की रवानगी से चिदंबरम कश्मीर पर नीति निर्धारण में चिदंबरम प्राथमिक स्रोत हो जाएंगे। रोमर ने कहा कि पिछले छह महीनों में चिदंबरम यह दिखाया है कि वह इस दु:साध्य मुद्दे पर जोखिम लेने की इच्छा रखते हैं। पूर्व विदेश सचिव शिव शंकर मेनन ने नारायणन को पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाए जाने के बाद 23 जनवरी 2010 को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का पद संभाला था।
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