देहरादून स्थित भारतीय वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा फफूंदी (फंगस) विकसित किया है जो कैंसर जैसी घातक बीमारियों के इलाज में कारगर है। वैज्ञानिकों द्वारा विकसित इस फंगस से घातक बीमारियों का उपचार तो होगा ही साथ ही इसे व्यावसायिक रुप से उगाकर किसान भी अपनी आय बढा़ सकते हैं।
इस फंगस से मलेशिया की एक कंपनी द्वारा निर्मित दवाएं पहले से ही बाजार में उपलब्ध हैं लेकिन एफ आर आई के वैज्ञानिकों ने इस फंगस को भारत की परिस्थितियों के अनुकूल बनाकर यह सुनिश्चित किया है कि इसे समूचे उत्तर भारत में उगाया जा सके। एफआरआई की फारेस्ट पैथालाजी डिवीजन के वरिष्ठ वैज्ञानिक डां. एनएसके हर्ष के अनुसार संस्थान ने एक ऐसे फंगस वाला गैनोडर्मा (गैनोडर्मा ल्यूसिडियम) का पता लगाया है जो पापलर तथा अन्य पादक प्रजातियों के तने पर उगता है। यह एचआईवी. कैंसर जैसी लाइलाज बीमारियों के उपचार के लिए सक्षम है।
डां. हर्ष के अनुसार अनुसंधान से साबित हो गया है कि भारत में भी गैनोडर्मा फंगस आसानी से उगाया जा सकता है। उन्होंने एफआरआई परिसर में पापलर तथा अन्य पादक प्रजातियों के वुड ब्लाक पर इस फंगस को उगाकर इसमें समाहित औषधीय गुणों का अध्ययन किया। इससे पहले एशिया में चीन, जापान तथा कोरिया में गैनोडर्मा फंगस को उगाया जाता था। मलेशिया की एक दवा निर्माता कंपनी तो इस फंगस से तैयार दवाएं रिशी, लिंग चि तथा लिंग झि की बाजार में बिक्री करती है।
तंत्रिका से संबंधित बीमारियों के उपचार के लिए इन दवाओं का प्रयोग किया जाता है। डां. हर्ष के मुताबिक गैनोडर्मा ल्यूसिडियम फंगस में तंत्रिका से संबंधित बीमारियों के उपचार की क्षमता है। डां. हर्ष का कहना है कि गैनोडर्मा को 64 प्रकार की पादक प्रजातियों पर उगाया जा सकता है। भारतीय बाजार में गैनोडर्मा ल्युसीड़ा निर्मित दवाएं मलेशियन कंपनी सप्लाई करती हैं, जो बेहद महंगी होती हैं। इस फफूंदी को दवा के मतलब के लिए उगाने में विदेशी कंपनियों की तकनीक 100 दिन का समय लेती हैं। मगर वन अनुसंधान संस्थान की विधि के आधार पर यह बरसात के समय सामान्यत: 72 से 80 दिन में पूरा फंगस तैयार हो जाता है। फंगस उत्पादन के लिए समूचे उत्तर भारत का मौसम अनुकूल है।
डां. हर्ष के अनुसार फफूंदी की तकनीक को खेतों तक पहुंचाने की दिशा में प्रयास शुरू कर दिए हैं। कैंसररोधी फफूंद खेतों में उगेंगी तो कई अहम दवाओं के लिए मलेशिया की राह नहीं ताकनी पडे़गी। इस फंगस से तैयार दवाओं से अचआईवी, कैंसर, तंत्रिका रोग, उच्च एवं निम्न रक्तचाप, पक्षाघात, ह्दय रोग, मधुमेह, हेपेटाइटिस, अल्सर, एल्कोहोलिज्म, अस्थमा, मम्स, इपीलेप्सी, टायरडनेस आदि का इलाज हो सकेगा। वृक्षों के लिए नुकसानदायक औषधीय उपयोग का गैनोडर्मा ल्यूसिडियम फंगस भले ही कई मजरें की एक दवा हो, लेकिन पादक प्रजातियों के लिए यह नुकसानदायक है। विशेषज्ञों के मुताबिक यह फंगस पादक प्रजातियों की जडों में रोग उत्पन्न करता है। वृक्षों की जडों में लगने वाला रोग वृक्षों की वृद्धि को कम कर देता है। रोग के उपचार के लिए वृक्ष की जडों पर दवा का छिड़काव किया जाता है।

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