हवा भी है रवां-रवां, फ़िज़ा भी है जवां-जवां - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 21 मार्च 2012

हवा भी है रवां-रवां, फ़िज़ा भी है जवां-जवां


दुल्हन की तरह सजने लगी है विधानसभा

राज्यमंत्री मण्डल का गठन तो हो चुका है। वहीं विधानसभा की फिजा भी कुछ बदली-बदली सी नजर आ रही है। बीते तीन महीने से धूल फांक रही कुर्सी और टेबलों से धूल हटाई जा रही है। कम्प्यूटरों को दुरूस्त किया जा रहा है। विधानसभा के भीतर मंत्रियों के लिए कमरें आवंटित किए जा चुके हैं। कौन मंत्री कहां बैठेगा उसका नाम कमरों के दरवाजों पर चस्पा कर दिया गया है। मंत्री के साथ उसका स्टाफ कहां बैठेगा, उनके लिए भी स्थान नियत हो चुका है और दरवाजों पर स्टाफ रूम के कागज चस्पा कर दिया जा चुका है। विधानसभा के गलियारों को रगंरोगन कर चमका दिया गया है। विधानभवन तक जाने के मार्ग पर महानुभावों के लिए लाल कालीन बिछा दिया गया है। लगता है कि इनका रैड कारपेट वैल्कम किया जा रहा है और हो भी क्यों न आखिर बड़ी मशक्कत के बाद और वह भी कुनबे की तमाम लड़ाइयों के बाद यहां तक जो पहुंचे हैं। इन गलियारों में लगे पुराने और मुरझा चुके फूकों के गमलों के स्थान पर नए गमलों और उन पर मुस्कुराते फूलों को लगा दिया गया है। आखिर इन्हें कौन समझाए कि उन गमलों में फिर फूल खिलेंगे वैसे ही जैसे इस समय यहां से बाहर जाने वाले फिर इन्हीं गलियों में अंदर आऐंगे। राजनीति में अब दिखावा खूब हो गया है, उसी की एक बानगी यह है नहीं तो देखभाल करनी होती तो हटाए जा रहे गमलों के फूल इस समय भी खिले हुए होते, लेकिन सरकार व्यवस्था में देखता ही कौन है अगर ये सींचे गए होते तो अंदर होते, लेकिन इनका दुर्भाग्य देखो इनकी जड़ों में अपनो ने ही मट्ठा डाला है और कदाचित यही स्थिति उनकी भी है जो किसी के सौभाग्य और अपने दुर्भाग्य से दोबारा यहां नहीं आ पाए और इन गमलों के लिए भी यह आपाधापी एक धुंध की तरह है तभी तो कहा गया है ‘‘संसार की हर शै का इतना ही फसाना है, इक धुंध से आना है इक धुंध में जाना है‘‘। 

कमोबेश यही स्थिति विधानसभा भवन के बाहर भी है। यहां भी फूलों को आगंतुकों के स्वागत के लिए इस तरह गमलों में लगाया गया है जैसे वे महानुभावों का स्वागत तो कर ही रहे हों साथ ही उनके साथ आने वाले लोगों का भी। मुख्यद्वार से भीतर आने वाली सड़क को भी चकमक नजर आ रही है और इसका बखान इस मार्ग से निकलने वे लोग कर रहे हैं जो पिछले कुछ समय से राजनीति के इस तीर्थ धाम के आगे से निकलने वाली सड़क पर गड्ढों में हिचकौले खाते हुए जा रहे थे। 

हां सरकार बदल तो गई है, लेकिन यहां भी एक चीज नहीं बदली है। पिछले 11 सालों से अमरबेल की तरह सत्तानशीनों से चिपके हुए चेहरे यहां भी दिखाई देंगे, जिसका आगाज इस सरकार के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान मुख्यमंत्री और मंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह में हो चुका है। लगता है सरकार कोई भी हो फलेगी-फूलेगी तो अमरबेल ही। सत्ता के इर्द-गिर्द फलने-फूलने वाली इस अमरबेल को अमरत्व प्रदान करने वाले भ्रष्ट अधिकारियों के (जिनकी जानकारी आम जनता को भी है) भी चेहरे खिलने लग गए हैं। अब देखना यह है कि यह सरकार और इस सरकार का मुखिया जनता के पक्ष में खड़ा होता है या इसी अमरबेल को पनपाता है, ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन राज्य का अभी तक का जीवन तो इन्हीं विद्रुपताओं से घिरा रहा है। जिससे उत्तराखण्ड की आम जनता त्रस्त ही रही है, उसी का नतीजा है कि यह खण्डित जनादेश जहां आम जनता तो सुख में नहीं ही थी, लेकिन यहां का मुखिया भी सुखी नहीं रह पाएगा। 


(राजेन्द्र जोशी)

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