एक साक्षात्कार जेन्नी शबनम से ! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 7 मई 2012

एक साक्षात्कार जेन्नी शबनम से !

शान्तिनिकेतन नाम से ही वहाँ के वातावरण का सहज अंदाज़ा लगाया जा सकता------जेन्नी शबनम


जेन्नी शबनम

रविन्द्र नाथ टैगोर (रवीन्द्रनाथ ठाकुर, रोबिन्द्रोनाथ ठाकुर) (7 मई, 1861-7 अगस्त,1941) को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। वे बंगला के विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार एवं दार्शनिक हैं.भारत का राष्ट्र.गान जन गण मन और बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान आमार सोनार बांग्ला गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं । वे साहित्य और समाज के युगदृष्टा,मार्गदर्शक व मसीहा बनें.टैगोर जी प्रकृति-प्रेमी थे प्रकृति के सान्निध्य में पेड़ों, बगीचों और एक लाइब्रेरी के साथ टैगोर जी ने शांतिनिकेतन की स्थापना की । तो आइए शांतिनिकेतन के बारे में और अधिक जानकारी लेने के लिए आज मुलाकात करते हैं  लेखिका जेन्नी शबनम जी से,जिन्होंने अपने जीवन का कुछ समय शांतिनिकेतन में बिताया.

1. प्रश्न - जेन्नी जी, लेखन कार्य में आपकी रूचि कब पैदा हुई? आपने लिखना कब से शुरू किया?
उत्तर - 
लेखन कार्य में रूचि तो शायद बचपन में ही जागृत हुई. मेरे पिता भागलपुर विश्वविद्द्यालय में प्रोफेसर थे और मेरी माँ इंटर स्कूल में प्राचार्या थी. घर में लिखने-पढ़ने का माहौल था, तो शायद इससे ही लिखने की प्रेरणा मिली. बी.ए. में थी तब से लिखना शुरू किया. परन्तु जो भी लिखा वो सब डायरी में छुपा रहा. 1995 में कुछ दैनिक अखबार में मेरे कुछ लेख प्रकाशित हुए थे. 2005 में इमरोज़ जी से मिलने गई तब पहली बार उनसे मैंने अपनी कविताओं का जिक्र किया और उन्होंने मुझे अपनी रचनाओं को सार्वजनिक करने के लिए कहा. 2006 में पहली बार मैंने अपनी कुछ रचनाएं सार्वजनिक की; उसके बाद ही घर में भी सभी ने जाना कि मैं कवितायें भी लिखती हूँ. बाद में 2008 में जब नेट की दुनिया से जुड़ी तब से मेरी कविताओं को विस्तार मिला.


2. प्रश्न - किन किन विधाओं में आप लिखती हैं? 
उत्तर -
मुख्यतः मेरे लेखन का विषय सामाजिक है. चाहे वो काव्य-लेखन हो या आलेख. सामजिक विषमताओं जिनमें स्त्री-विमर्श, विशेष घटनाएं, संस्मरण, यात्रा वृत्तांत, मन में स्वतः उपजी भावनाएं आदि होती हैं. अधिकाँश कविताएँ अतुकांत और आज़ाद ख्याल की हैं. कुछ हाइकु और ताँका भी लिखे हैं.

3. प्रश्न - अब तक आपने कितनी रचनाओं का सृजन किया है? कौन कौन सी मुख्य रचनाएँ हैं? अपनी पसंद की कुछ रचनाओं का जिक्र करें. 
उत्तर - 
रचनाएँ तो हज़ारों की संख्या में है परन्तु मेरे ब्लॉग http://lamhon-ka-safar.blogspot.in/ में अभी 340 कवितायें प्रेषित हैं जिनमें कुछ हाइकु और ताँका भी शामिल हैं. मेरे ब्लॉग http://saajha-sansaar.blogspot.in/ में अलग अलग विषय पर 35 लेख प्रेषित हैं. मेरी कुछ काव्य-रचनाएँ जो मुझे बेहद पसंद है, उनके शीर्षक हैं... फूल कुमारी उदास है, तेरे ख्यालों के साथ रहना है, परवाह, कवच, मैं स्त्री हो गई, जा तुझे इश्क हो, भूमिका, अकेले से लगे तुम, क्या बन सकोगे एक इमरोज़, मछली या समंदर, एक अदद रोटी, बेलौस नशा माँगती हूँ, उम्र कटी अब बीता सफ़र, अनुबंध, विजयी हो पुत्र, राम नाम सत्य है, हवा खून खून कहती है, तुम अपना ख्याल रखना, ये कैसी निशानी है, तुम शामिल हो, आज़ादी चाहती हूँ बदला नहीं, अज्ञात शून्यता, चाँद सितारे, बाबा आओ देखो... तुम्हारी बिटिया रोती है, कृष्ण एक नयी गीता लिखो, नेह-निमंत्रण तुम बिसरा गए, अवैध सम्बन्ध, ख़ुद को बचा लाई हूँ, आओ मेरे पास, आदि. लेख में 'लुप्त होते लोकगीत', 'चहारदीवारियों में चोखेरबालियाँ', 'राम जन्मभूमि : बाबरी मस्ज़िद', 'ईश्वर के होने न होने के बीच', 'टूटता भरोसा बिखरता इंसान', 'मोहल्ला मुख्यमंत्री', 'नाथनगर के अनाथ', 'रहस्यमय शरत', 'स्मृतियों से शान्तिनिकेतन', 'कठपुतलियों वाली श्यामली दी'', स्मृतियों में शान्तिनिकेतन' आदि.

4. प्रश्न - अपनी प्रकाशित रचनाओं के बारे में बताएँ.
उत्तर - डॉ. मिथिलेश दीक्षित द्वारा संपादित हाइकु-संकलन 'सदी के प्रथम दशक का हिन्दी हाइकु-काव्य' (सन् 2011) में 108 हाइकुकारों के हाइकु हैं जिनमें मेरे 12 हाइकु हैं. श्री राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी 'बन्धु'  द्वारा संपादित हाइकु-संकलन 'सच बोलते शब्द' (सन् 2011, दिसम्बर) में अट्ठानवे हाइकुकारों के हाइकु हैं जिनमें मेरे 10 हाइकु हैं. श्री रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' और डॉ. भावना कुँवर द्वारा संपादित ताँका-संकलन 'भाव-कलश' (सन् 2012) में 29 कवियों के ताँका हैं जिनमें मेरे 30 ताँका हैं. 
ऑस्ट्रेलिया की पत्रिका 'हिन्दी गौरव' तथा भारत की विभिन्न पत्रिका जैसे उदंती, सद्भावना दर्पण, वीणा, वस्त्र परिधान, गर्भनाल, प्राच्य प्रभा, वटवृक्ष, आरोह अवरोह में कविता और लेख का प्रकाशन. तहलका और लीगल मित्र पत्रिका में संयुक्त लेखन प्रकाशित. 
चौथी दुनिया, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, भारत देश हमारा आदि अखबार में लेख प्रकाशित.   

5 . प्रश्न - गुरुदेव रबीन्द्रनाथ ठाकुर के बारे में आप पाठकों को कुछ बताएँ.
उत्तर -
गुरुदेव रबीन्द्रनाथ ठाकुर विश्वविख्यात कवि राष्ट्र-कवि के रूप में जाने जाते हैं. वो भारत की आज़ादी की लड़ाई से भी जुड़े हुए थे. गुरुदेव बहुत बड़े साहित्यकार, कहानीकार, कवि, चित्रकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार, दार्शनिक और समाज सेवी थे. उन्हें साहित्य के लिए नोबेल प्राइज़ मिला था. उनकी रचनाओं में प्रकृति और आम मनुष्य की गहरी संवेदनाएं परिलक्षित होती हैं. गुरुदेव द्वारा रचित ''जन गण मन अधिनायक जय है'' भारत का राष्ट्र-गान बना तथा ''आमार सोनार बांग्ला'' बांग्ला देश का राष्ट्र-गान बना. गुरु देव द्वारा रचित गीत और संगीत 'रबीन्द्र संगीत' के नाम से प्रसिद्ध है. जालियाँवाला बाग़ काण्ड के विरोध में गुरुदेव ने ब्रिटिश द्वरा मिला खिताब 'सर' लौटा दिया साथ ही नाईटहुड की उपाधि भी लौटा दी.

6. प्रश्न - शान्तिनिकेतन के बारे में बताएँ.
उत्तर - 
गुरुदेव रबीन्द्रनाथ ठाकुर की कर्मभूमि 'शान्तिनिकेतन' की स्थापना गुरुदेव के पिता महर्षि देबेन्द्रनाथ ठाकुर ने पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिला के बोलपुर में की. यहाँ गुरुदेव ने भारतीय और पाश्चात्य देश की सर्वश्रेष्ठ परंपरा को सम्मिलित कर एक नया प्रयोग किया और अपनी सोच पर आधारित विद्यालय खोला जो बाद में विश्वभारती विश्वविद्यालय के नाम से प्रसिद्द हुआ. यह स्थान प्रकृति के साथ कला, साहित्य और संस्कृति का अनोखा संगम है. गुरुदेव की सोच और जीवन-शैली यहाँ की संस्कृति में रचा बसा हुआ है. सहज जीवन के साथ चिंतन का समावेश यहाँ दिखता है. शान्तिनिकेतन शिक्षा के साथ ही पर्यटन के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है.

7. प्रश्न - सुनने में आया है कि आपके जीवन की कोई घटना शान्तिनिकेतन से सम्बन्ध रखती है; कृपया उस पर प्रकाश डालें.
उत्तर - 
भागलपुर दंगा जीवन की ऐसी घटना थी जिसने मेरे जीवन की दशा और दिशा बदल दी. 1989 में भागलपुर में साम्प्रदायिक दंगा हुआ था, जिसमें मेरे घर में पनाह लिए करीब 100 लोगों में से 22 लोग क़त्ल कर दिए गए. 1990 में पश्चिम बंगाल से गौर किशोर घोष जो आनंद बाज़ार पत्रिका से सम्बद्ध थे; शान्तिनिकेतन से कुछ लोगों की टीम लेकर सामाजिक सद्भावना के लिए भागलपुर आए. मेरे घर में हुई घटना से मेरी मानसिक स्थिति का अंदाजा लगाते हुए अपने साथ शान्तिनिकेतन ले गए. इस तरह भागलपुर दंगा की दुखद घटना के बाद मेरा शान्तिनिकेतन से सम्बन्ध जुड़ गया. 

8. प्रश्न - जेन्नी जी, शान्तिनिकेतन से आपका लगाव कब और कैसे हुआ?
उत्तर -
1990 में शान्तिनिकेतन पहली बार आई थी. जब यहाँ आई तो सभी अपरिचित थे. गौर दा और उनकी टीम के सदस्यों ने मेरा बहुत सहयोग किया ताकि मैं उस घटना के प्रभाव से उबर सकूँ. जब शान्तिनिकेतन आई थी तब तक मेरी मेरी एम. ए. की परिक्षा ख़त्म हो गई थी और मैंने एल.एल बी. भी कर लिया था. पढ़ाई ख़त्म हो चुकी थी और भागलपुर के घर में जाने से मन घबराता था तो गौर दा ने विश्वभारती विश्वविद्यालय में मेरा नामांकन करा दिया. शान्तिनिकेतन से अपरिचित मैं धीरे धीरे वहाँ के शांत वातावरण और अपनापन वाले माहौल में रच बस गई. वहाँ सभी से मुझे बहुत प्रेम और अपनापन मिला और वहाँ का वातावरण मेरे मन के अनुकूल लगा, इस कारण शान्तिनिकेतन से लगाव हुआ.

9. प्रश्न - वहाँ का वातावरण आपको कैसा लगा?
उत्तर -
शान्तिनिकेतन नाम से ही वहाँ के वातावरण का सहज अंदाज़ा लगाया जा सकता है. बहुत ही शांत और प्राकृतिक वातावरण जहाँ शिक्षा के साथ ही भारतीय कला और संस्कृति की अनुगूँज हर तरफ दिखती है. वहाँ का वातावरण बहुत सहज और सरल है जो मन को सुकून देता है और मुझे मेरी जीवन शैली और सोच के करीब लगता है.

10. प्रश्न- आपने शान्तिनिकेतन में कितना समय गुजारा?
उत्तर -
तकरीबन 6 माह मैं शान्तिनिकेतन में रही.

11. प्रश्न - शान्तिनिकेतन में रहते हुए किन-किन महानुभावों से आपका सम्पर्क हुआ?
उत्तर -
शान्तिनिकेतन में रहते हुए कई सम्मानिये लोगों से सम्पर्क हुआ जिनमें विश्वभारती विश्वविद्यालय के तात्कालीन कुलपति, कलाकार, लेखक, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता आदि शामिल हैं. गौर किशोर घोष, श्यामली खस्तगीर, बानी सिन्हा, सुरेश खैरनार, अमलान दत्त, आरती सेन, मंजूरानी सिंह, श्यामा कुंडू, रमा कुंडू, मनीषा बनर्जी आदि लोगों से मुलाक़ात हुई.  

12. प्रश्न-  क्या आज भी आप वहाँ जाती हैं?
उत्तर -
जी हाँ. 20 वर्ष पूर्व शान्तिनिकेतन छोड़ कर आई थी उसके बाद अभी गत वर्ष दो बार वहाँ गई.

13. प्रश्न - आपके जीवन की कुछ अविस्मरणीय घटना?
उत्तर -
यूँ तो जीवन में सदा अप्रत्याशित घटनाएँ होती रहती हैं, कुछ सुखद कुछ दुखद. 1978 में मेरे पिता की मृत्यु मेरे लिए बहुत दुखद घटना थी. उसके बाद 1989 में भागलपुर का दंगा ऐसी ही दुखद घटना है जिसे जीवन भर भूल नहीं सकती. एक और घटना का जिक्र करना चाहूंगी जिसे सुखद कहूँ या दुखद मैं ख़ुद समझ नहीं पाती. दोबारा शान्तिनिकेतन जाने पर पुराने सभी मित्रों और परिचितों से मिलना बहुत सुखद रहा था. श्यामली दी जो एक सामाजिक कार्यकर्ता के साथ ही लोककला और संस्कृति के प्रसार के लिए प्रसिद्ध हैं; से मिलने के बाद 18 जुलाई, 2011 को मैं वापस आ रही थी. उन्होंने मुझे नाश्ते पर बुलाया था, नाश्ता बनाते हुए उन्हें स्ट्रोक आया और मुझसे बातें करते करते में उनका पूरा शरीर लकवाग्रस्त हो गया. अस्पताल में भर्ती हुई और फिर 15 अगस्त को सदा के लिए चली गईं. 20 साल बाद श्यामली दी से मेरी मुलाक़ात और फिर मुझसे ही अंतिम बात हुई और दुनिया छोड़ गई, समझ नहीं पाती कि ऐसा क्यों हुआ. शान्तिनिकेतन में गौर दा के बाद श्यामली दी से मैं बहुत जुड़ी हुई थी. 

14. प्रश्न - शान्तिनिकेतन पर क्या आपने कभी कुछ लिखा है? कोई रचना जिसे हम सभी से साझा करना चाहेंगी?
उत्तर -
शान्तिनिकेतन पर मेरे लेख और संस्मरण हैं - 'स्मृतियों से शान्तिनिकेतन', 'स्मृतियों में शान्तिनिकेतन' और 'कठपुतलियों वाली श्यामली दी' आदि. 
जब 20 साल बाद दोबारा शान्तिनिकेतन गई तो शान्तिनिकेतन पर एक कविता लिखी, जिसे आप सभी से साझा कर रही हूँ.


उन्हीं दिनों की तरह...
*******
चौंक कर उसने कहा
''जाओ लौट जाओ
क्यों आयी हो यहाँ 
क्या सिर्फ वक़्त बिताना चाहती हो यहाँ?
हमने तो सर्वस्व अपनाया था तुम्हें
क्यों छोड़ गई थी हमें?''
मैं अवाक
निरुत्तर!
फिर भी कह उठी
उस समय भी कहाँ मेरी मर्ज़ी चली थी
गवाह तो थे न तुम,
जीवन की दशा और दिशा को
तुमने हीं तो बदला था,
सब जानते तो थे तुम
तब भी और अब भी|
सच है
तुम भी बदल गए हो
वो न रहे
जैसा उन दिनों छोड़ गई थी मैं,
एक भूल भुलैया
या फिर अपरिचित सी फ़िज़ा
जाने क्यों लग रही है मुझे|
तुम न समझो
पर अपना सा लग रहा है मुझे
थोड़ा थोड़ा हीं सही,
आस है
शायद
तुम वापस अपना लो मुझे
उसी चिर परिचित अपनेपन के साथ
जब मैं पहली बार मिली थी तुमसे,
और तुमने बेझिझक
सहारा दिया था मुझे
ये जानते हुए कि मैं असमर्थ और निर्भर हूँ
और हमेशा रहूंगी,
तुमने मेरी समस्त दुश्वारियां समेट ली थी
और मैं बेफ़िक्र
ज़िन्दगी के नए रूप देख रही थी
सही मायने में ज़िन्दगी जी रही थी|
सब कुछ बदल गया है
वक़्त के साथ,
जानती हूँ 
पर उन यादों को जी तो सकती हूँ|
ज़रा-ज़रा पहचानो मुझे
एक बार फिर उसी दौर से गुज़र रही हूँ,
फ़र्क सिर्फ वज़ह का है
एक बार फिर मेरी ज़िन्दगी तटस्थ हो चली है
मैं असमर्थ और निर्भर हो चली हूँ|
तनिक सुकून दे दो
फिर लौट जाना है मुझे
उसी तरह उस गुमनाम दुनिया में
जिस तरह एक बार ले जाई गई थी
तुमसे दूर
जहाँ अपनी समस्त पहचान खोकर भी
अब तक जीवित हूँ|
मत कहो
''जाओ लौट जाओ'',
एक बार कह दो
''शब, तुम वही हो
मैं भी वही
फिर आना
कुछ वक़्त निकालकर
एक बार साथ साथ जियेंगे
फिर से
उन्हीं दिनों की तरह
कुछ पल!''

_ जेन्नी शबनम ( जुलाई 17, 2011)
( 20 साल बाद शान्तिनिकेतन आने पर )
__________________________


15. प्रश्न- आप हमारे युवा वर्ग को क्या सन्देश देना चाहेंगी? 
उत्तर -
युवा वर्ग के लिए मेरा यही सन्देश है कि उचित अनुचित की मान्य परिभाषा से अलग होकर अपनी सोच विकसित करें और ख़ुद अपनी राह का चुनाव करें. मुमकिन है ख़ुद की चुनी हुई राह में मुश्किलें हों; जीत मिले या कि मात हो, पर मन को सुकून तो होगा कि हमने कोशिश तो की. दूसरों के दिखाए राह पर चलना सरल भी है और सफल होने की पूर्ण संभावना भी परन्तु अनजान राहों पर चलकर सफल होना आत्म विश्वास भी बढ़ाता है और ख़ुद पर यकीन भी. बुजुर्गों की सुनो और समझो फिर अपने अनुभव से जिओ.    


(ड़ा प्रीत अरोड़ा )
arorapreet366@gmail.com


3 टिप्‍पणियां:

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

प्रीत जी और आर्यावर्त के संपादक महोदय का ह्रदय से आभार.

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

jenny di ko aur jayda jaanna samajhna achchha laga:)

सहज साहित्य ने कहा…

जेन्नी शबनम अच्छी इंसान होने के साथ अच्छी रचनाकार भी हैं, यह मैंने बहुत नज़दीकी से जाना है। आपाधापी से बहुत दूर !!!