कमजोर और कायर लोग लेते हैं..... - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 30 मई 2012

कमजोर और कायर लोग लेते हैं.....

मक्कारी और झूठ का सहारा !!!



खुद की छवि को साफ-सुथरी बनाए रखने और लोगों को अपना बनाए रखने के भ्रम में आदमी क्या-क्या नहीं कर गुजर रहा, यह बताने की आवश्यकता नहीं है। आज अपने फर्ज से कहीं ज्यादा चिन्ता आदमी को अपना घर भरने और स्वार्थों को पूरे करने तक ही सीमित हो गई है चाहे उसके लिए उसे कितने ही गलत धंधों और कामों का सहारा क्यों न लेना पड़े। ऐसा करने वाले  लोग सभी जगहों पर पाए जाते हैं। अपने यहाँ भी खूब भरमार है इनकी। यह शाश्वत सिद्धान्त है कि जो लोग कुछ कर गुजरने या लक्ष्य हासिल कर लेने का माद्दा नहीं जुटा पाते अथवा बौद्धिक धरातल पर कहीं न कहीं कमजोर होते हैं अथवा आत्महीनता या अपराध बोध से ग्रस्त होते हैं वे सफलता के शॉर्ट कट तलाशते-तलाशते उन सभी हथकण्डों का सहारा ले लिया करते हैं जिनसे कम समय में अधिक से अधिक प्राप्ति हो जाए।
इन लोगों की पूरी जिन्दगी प्राप्ति और संग्रह में भी गुजर जाती है।  इन लोगों की हर गतिविधि वहीं केन्द्रित होती है जहाँ कुछ न कुछ प्राप्ति की संभावना हो, और वह भी बिना मेहनत किए और खुद का खर्च बचाते हुए।

प्राप्ति और संग्रह की इस यात्रा में ये लोग ज्यों-ज्यों परिपक्व हो जाते हैं त्यों-त्यों बड़े हाथ मारने लगते हैं। एक समय ऐसा आता है जब हाथ मारते-मारते  ये इतने आदतन अभ्यस्त हो जाते हैं कि फिर ये निर्भय होकर चाहे जो कर गुजरते हैं। इसी किस्म के लोग आपस में मिलकर समूह की शक्ल ले लेते हैं और ये समूह अपनी हरकतोें के साथ समाज की छाती पर मूँग दलने लग जाता है। इसे समूह की बजाय गिरोह कहना ज्यादा सटीक होगा। आम तौर पर जो खुद कायर या कमजोर होते हैं वे ही सफलता और लोकप्रियता पाने के लिए हथकण्डों का सहारा लेते रहते हैं। इन लोगों के लिए सीधे रास्ते से सफलता पाना कभी संभव इसलिए नहीं हो पाता है क्योंकि वे जिसे प्राप्त करना चाहते हैं उसकी न इनमें कुव्वत होती है न अपेक्षित योग्यता।

ऐसे में इनके पास दूसरे लोगों की चुगली, शिकायत, निन्दा और आलोचना करते रहने के सिवा और कुछ ऐसा बचता ही नहीं है जिसका इस्तेमाल वे अपना व्यक्तित्व निर्माण करने के लिए कर सकें। ऐसे लोगों के लिए धर्म, सत्य और ईमान-सदाचार उनके शब्दकोष में होता ही नहीं, न उन्हें ऐसे संस्कार मिले हुए होते हैं, न उनमें इन संस्कारों को ग्रहण करने की पात्रता होती है। कई बार ये लोग ऐसे परिवारों से आते हैं जिनका इतिहास ही अपराधों से भरा होता है। इस स्थिति में अधर्म, कुसंस्कारों और झूठ-फरेब ही इनके संगी-साथी हुआ करते हैं जिनके सहारे ये कहीं धौंस जमाकर, कहीं बरगलाकर तो कहीं विनम्रता का अभिनय करके अपने उल्लू सीधे कर लेते हैं। इस किस्म के लोगों का पूरा जीवन झूठ के सहारे ही टिका होता है। अपने उल्टे-सीधे कामों के लिए ये लोग रोजाना सौ से अधिक झूठ बोल ही लेते हैं। कभी इनका झूठ पकड़ा जाता है तो बेशर्म बनकर हँसी में उड़ा देते हैं।

इन लोगों के लिए लाज-शरम कुछ नहीं होती। एक बार नंगे होकर निकल गए फिर काहे की लाज-शर्म, इन्हें तो अपने काम से मतलब है फिर चाहे इनसे कुछ भी करवा लो, बड़े प्रेम से करवा लेंगे, पर शर्त यही है कि इनका काम होना चाहिए। झूठ और मक्कारी इनके जिस्म और जेहन पर इस कदर हावी हो जाती है कि इनके चेहरे और शरीर से यह सब साफ झलकता रहता है। जैसे झूठ के पाँव नहीं होते, इसी तरह इन झूठे लोगों की बातों का कभी कोई वजूद नहीं होता।  इनके परिवार वालों की सहनशीलता की तारीफ करनी होगी कि वे लोग कैसे इन महान लोेगों को झेल रहे हैं। कई बार भोले-भाले लोग पहले पहल इनके झाँसे में आ जाते हैं लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि जमाना इन्हें विदूषक और तमाशे की तरह लेते हुए आनंद भी लेता है। कई बार ऐसे झूठे और मक्कार लोगों को उनके आस-पास महफिल जमा कर बैठने वाले लोग भी तमाशा मानकर मजे लिया करते हैं।

अपने यहाँ भी कई सारे ऐसे लोग हैं जिनका इस्तेमाल विदूषकों और तमाशों के लिए किया जाए तो बिना पैसे का स्वस्थ मनोरंजन संभव है। ऐसे लोगों को पहचानें और भरपूर मनोरंजन करें। यह बात हमेशा ध्यान में रखें कि ऐसे लोगों द्वारा कही गई कोई भी बात सत्य नहीं होती, न सत्य हो सकती है। क्योंकि इनके मुँह भगवान ने झूठ बोलने के लिए ही बनाए हैं और इनके कान षड़यंत्रों की आहट सुनने के लिए ही हैं। इसलिए इनके अभिनय का मजा लें, इनकी बातों पर कोई गौर कभी न करें। ईश्वर का धन्यवाद मानें कि ऐसे लोग हमारे आस-पास नहीं होते तो हमें असामान्य लोगों, पिशाचों और राक्षसों के दर्शनों के लिए व उनके बारे में जानने भर के लिए दूर देशों की यात्रा करनी पड़ती।  और तब हमारा कितना श्रम, समय और पैसा जाया होता।




---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

1 टिप्पणी:

गुड्डोदादी ने कहा…

शत प्रतिशत सत्य सटीक
लेख को दो बार पढ़ा
धन्यवाद