फरेबी, मक्कार और धूर्त ही लेते हैं ! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 24 सितंबर 2012

फरेबी, मक्कार और धूर्त ही लेते हैं !


अंधविश्वासों व मैली विद्याओं का सहारा !


जो अंधेरा पसन्द होते हैं वे अपने पूरे जीवन में अंधेरे कोने में मकड़ियों की तरह कुण्डली मारकर जमे रहते हैं और पूरी जिन्दगी किसी न किसी षड़यंत्र का ताना-बाना बुनने में उलझे हुए रहते हैं। इनकी पूरी जिन्दगी का निचोड़ सामने रखकर यदि इनके प्राकट्य का विवेचन किया जाए तो यही निष्कर्ष निकलेगा कि विधाता ने जब इनका निर्माण किया होगा उस समय मकड़ियों या चिमगादड़ों के ढाँचें कम पड़ गए होंगे, तभी कहीं फालतू का पड़ा हुआ मनुष्य कंकाल इन लोगों को नवाज़ दिया गया। इन लोगों का रोशनी से कोई सरोकार कभी नहीं रहता। चाहे वह रोशनी भीतर की हो या फिर बाहर की। इन लोगों को अंधेरा, अंधेरगर्दी और अंधी गलियां तथा कोने ही रास आते हैं और ऎसे में ये लोग काम भी वैसे ही करते हैं जैसे अंधेरों के बीच रहने और परिभ्रमण करने के आदी लोग। इनका कोई कर्म किसी को रोशनी देने वाला भी हो सकता है, इसकी कभी कोई कल्पना नहीं की जा सकती। बिना पुरुषार्थ के परायों को अपना तथा पराये माल को अपना बनाने के आदी ये लोग उन हर रास्तों पर चलने की कोशिश करने लगते हैं जिन्हें जिन्दगी में सफलता पाने का शोर्ट कट माना जाता रहा है। इन लोगों के लिए वे मार्ग और गलियां कतई काम की नहीं होती जहां रोशनी का वैभव पसरा होता है। आम तौर पर अंधेरा पसन्द ये लोग रात के उल्लूओं और चिमगादड़ों की तरह परिभ्रमण करते हैं और दिन में झींगुरों की तरह अपने अस्तित्व का गान।

ये लोग सात्विक, राजसी और तामसी प्रवृत्तियों में नहीं गिने जाते बल्कि इनकी एक और प्रवृत्ति हुआ करती है और वह है कि अंधेरा पसन्द। इन गिरे हुए लोगों में ईश्वरीय आस्तिकता का प्रभाव कतई नहीं होता और इस कारण इनमें राक्षसी वृत्तियों का असर इतना अधिक होता है कि कभी ये नरपिशाचों के रूप में फिरते हैं और कभी राक्षसों के रूप में, कभी स्वरूप तो आदमी का झलकेगा लेकिन इनके मन में मलीनता इतनी भरी होती है जैसे किसी राजमार्ग पर बारिश के पानी से भरा कोई बड़ा सा गड्ढ़ा।

इन लोगों के जीवन भर का एक ही मकसद होता है कि जहां रहें वहां उन्हें लोग बादशाहत के साथ आदर दे सम्मान दें और उन्हें हमेशा प्रतिष्ठित मानें, चाहे उनमें कोई ऎसा गुण न हो, जिसके लिए उन्हें किसी भी प्रकार के सम्मान से नवाजा जा सके। ईश्वर से कोसों दूर, ऎसे लोगों का हर दिन दूसरों को पीड़ित करने और इस पीड़ा से उपजने वाला मजा लूटने के लिए होता है। इन लोगों का ध्येय यही होता है कि उनकी प्रतिष्ठा बनी रहे और जो लोग उनके आस-पास होते हैं वे उनकी हर बात मानें चाहे जायज हो या नहीं। ये लोग अपनी कुटिल धूत्र्तताओं, वासनाओं और हिंसक पशु स्वभाव को अपने प्रत्येक कर्म में अभिव्यक्त करते हुए अपने क्रूर व्यक्तित्व की  छाप हर कहीं छोड़ते ही रहते हैं। फिर इन लोगों के भी अपने अलग किस्म के गुरु होते हैं जो शुक्राचार्य से भी दस कदम आगे होते हैं। ये गुरु अपने इन नालायक चेलों को उन विद्याओं में दक्ष करने में कोई कमी या कसर बाकी नहीं छोड़ते जो अच्छे और भले लोगों को पीड़ा देने में रामबाण असर करती हैंं। इन लोगों के लिए सात्ति्वक राय या सात्ति्वक मार्ग कोई मायने नहीं रखता बल्कि इनके हर रास्ते मैली विद्याओं और अंधविश्वासों से भरे होते हैं। टोनों-टोटकों से संसार को पा जाने और संसार भर को परास्त कर देने तक के लक्ष्यों को सामने रखकर ये लोग ऎसी-ऎसी मैली विद्याओं का सहारा लेते हैं जिन्हें सभ्य लोग कभी सुनना भी नहीं चाहते।

फिर जिस किसी स्थान पर मैले और काले मन वाले ऎसे दो-चार लोग भी जमा हो जाएं, तो फिर उनका कर्मक्षेत्र पूरा ही मैली आभाओं से भर जाता है। इसका असर इन मलीन और पशु बुद्धि लोगों पर भले ही नहीं पड़े मगर इससे इनके आस-पास का माहौल प्रदूषित होकर दुर्गन्ध देने लगता है और तब मनुष्यों की बस्ती में कहीं न कहीं से राक्षस होने की गंध आने लगती है। यह दिगर बात है कि आम जन और समझदार लोग इन नरपिशाचों के भय से इनके सामने कुछ न कहें, मगर जो लोग अन्न-पानी और हवा का सेवन करते हैं वे सब इन्हें समझते अच्छी तरह हैं। और यों भी कोई इन्हें कुछ कहकर अपना समय गँवाना नहीं चाहता है क्योंकि ऎसे लोगों के बारे में पुरखों ने साफ कहा है कि नाखून, सिंग और खुर, दाँतों वाले जानवरों, स्वार्थ से भरे हुए ऎसे नरपिशाचों, मूर्खों, जड़ व अज्जड़ बुद्धि, पागलों, आधे पागलों और अंधानुचर बने दासों से दूरी ही रखनी चाहिए क्योंकि इनसे कभी भी प्रत्यक्ष खतरा सामने हो सकता है। आजकल धूत्र्तों, फरेबियों और मक्कारों का जमाना आ गया है और ऎसे में इनकी हरकतों से इनका मूल्यांकन कर चुकने के बाद इनसे दूरी बनाए रखने में ही भला है क्योंकि ऎसे लोग किसी भी आदमी के भेष में आकर खंजर भौंक सकते हैं।


---डॉ. दीपक आचार्य---
941306077

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