औरों को डिस्टर्ब न करें, आप भी डिस्टर्ब न होंगे - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 20 नवंबर 2012

औरों को डिस्टर्ब न करें, आप भी डिस्टर्ब न होंगे


आजकल आदमी खुद क्या  कर रहा है और क्या है, उससे ज्यादा फिकर उसे दूसरों की होती है। आदमी खुद के व्यक्तित्व की परिधियों, सीमा रेखाओं और मर्यादाओं का बिल्कुल ख्याल भले न रखें, वह दूसरों की एक-एक गतिविधियों के प्रति चौकन्ना रहता है जैसे कुत्ते और बिल्लियाँ, हवाओं से बातें करने वाले गिद्ध या फिर मछलियों की तलाश में एकाग्रचित्त बैठे ध्यान करते हुए दिखने वाले सफेदपोश बगुले। हर किसी को लगता है कि जैसे जमाने भर की खबर रखने और खबर लेने के लिए उसे ही भगवान ने मुकर्रर कर रखा है और वही है जो निरपेक्ष भाव से सभी की तुलना करने और बताने के लिए सक्षम है। आदमियों की प्रजाति के बहुसंख्य लोगों में यह भ्रम थोड़े से समझदार होने से लेकर मरने तक बना रहता है और आदमी पूरी जिन्दगी इसी भ्रम में जीता हुआ स्वर्ग सिधार जाता है। इस भ्रम की ही बदौलत वह वे सारे काम भूल जाता है जिसके लिए भगवान ने मनुष्य की पावन और बौद्धिक क्षमता से परिपूर्ण मनुष्य देह नवाज कर धरा की ओर भेजा होता है। अधिकांश लोगों की जिन्दगी का निचोड़ निकालें तो यह साफ पता चल जाएगा कि उन लोगों ने अपनी पूरी जिन्दगी ऎसे ही फालतू के कामों में लगा दी और जब कुछ संभलने का मौका आया तब आत्मा ही देह से अलग हो गई।

अपने इलाके की बात हो, अपने समुदाय या समाज की या फिर और किसी भी प्रकार के समूहों की, आदमियों की बहुत बड़ी संख्या ऎसी है जिसका काम ही औरों की जिन्दगी में बेवजह झाँकना हो गया है। बात चाहे निजी जिन्दगी की हो या सार्वजनिक जिन्दगी की। लोग आँखें फाड़-फाड़ कर देखने और कानों को परदों को एलास्टिक की तरह लम्बा खींच-खींच कर सुनने के आदी होते जा रहे हैं। हर इलाके में गलती से मनुष्य बन बैठे ढेरों लोग  ऎसे मिल जाएंगे जिनके पास न कोई बुद्धि है, न हुनर और न किसी प्रकार की मनुष्यता का कतरा। सिर्फ और सिर्फ आवाराओं की तरह घूमना, बेवजह घूरना और दिन-रात बकवासी जिन्दगी गुजारने के सिवाय ये कुछ नहीं करते। हर इलाके में ऎसे आदमियों की नस्ल आजकल खूब फल-फूल रही है। इन आदमियों के दर्शन और श्रवण कर लगता है जैसे ये आदमी न होकर भेल-पूड़ी और पानी-बताशों की दुकानें ही हों जहां हमेशा चरपरा स्वाद बरसता रहता है। आजकल लोगों की समस्या कुछ और नहीं है, ऎसे लोग हैं जो बेवजह हर कहीं टाँग अड़ाते हैं, हस्तक्षेप करते हैं और ऎसी हरकतें करते रहते हैं कि भले लोग हमेशा डिस्टर्ब होते हैं। अब दुनिया में इन लोगों की संख्या का इतना विस्फोट हो चुका है कि दुनिया में दो किस्मों के आदमी नज़र आते हैं। एक वे हैं जिन्होंने औरों को बिना किसी वजह डिस्टर्ब करना ही जिन्दगी भर का उसूल बना रखा है। दूसरे वे हैं जो इन लोगों की वजह से बेवजह डिस्टर्ब हो जाते हैं या महसूस करते हैं।

सामाजिक महापरिवर्तन और विकास के कई सरोकारों में मात्र इसलिए सफलता हासिल नहीं हो पाती क्योंकि विघ्नसंतोषियों की बाढ़ के आगे आदर्श और सच्चे कर्म बह जाने लगे हैं या आभास होता है। समाज के कई समझदार लोग अब यह अच्छी तरह महसूस करने लगे हैं कि समाज में नाकाराओं और डिस्टर्ब करने वाले तत्वों का जमावड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। जिस सुनहरे भविष्य के लिए हमने आजादी का वरण किया था उसके बाद जो स्थितियां हो रही हैं उनसे तो लगता है कि महाभारत के बाद जिस तरह कलि का सहज प्रवेश हो गया, अब नवीन भारत में कलि से भी बड़े महा कलि का प्रवेश हो चुका है। कलिकाल का प्रभाव पूरे विश्व पर पड़े तो कोई बात नहीं  लेकिन भारत जैसी कर्मभूमि और धर्मभूमि पर ऎसा नहीं होना चाहिए। जो लोग औरों को डिस्टर्ब करते हैं उन लोगों की जिन्दगी के आखिरी क्षण कैसे गुजरते हैं यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है। किसी न किसी मद से जब आदमी घिरा रहता है तब उसे पता नहीं चलता कि वह जो कर रहा है वह ठीक भी है या नहीं। लेकिन काल के थपेडे कुछ समय बाद ऎसे आते हैं कि उसकी हवा निकल जाती है। साँप कितनी की चींटियों को बड़े प्रेम से स्वाद ले लेकर खा ले, एक दिन ऎसा भी आता है जब कहीं से घायल हुए साँप को ढेरों चींटियां घसीटकर ले जाती हैं।

जो लोग औरों को डिस्टर्ब करते हैं उन्हें चाहिए कि वे मनुष्य देह का अर्थ समझें, जिन्दगी भर पशु बनकर न बैठे और न चरते रहें। जो औरों को डिस्टर्ब करते हैं, उन्हें डिस्टर्ब करने वाले भी स्वतः पैदा हो जाते हैं और यह सिलसिला किसी के हित में नहीं होता। बेवजह तंग करने वालों में आसुरी शक्तियों का प्रभाव खूब रहता है और उन्हें जीवन में हर क्षण दुःखी रहना ही है। लेकिन जो लोग बेवजह डिस्टर्ब होते हैं उन पर ईश्वर की अनुकंपा होती है इसलिए न उनका कुछ बिगड़ता है, न कोई बिगाड़ सकता है। बिगड़ने जैसी स्थितियां सिर्फ आभासी होती हैं और इन लोगों पर ग्रहों का प्रभाव भी क्षीण हो जाता है क्योंकि जमाने भर के राहू-केतु उनके पीछे वैसे ही पड़े रहते हैं। जीवन के आनंद के लिए जरूरी है कि अपना काम करते जाएं, औरों की ओर निगाह न रखें। जमाने को देखना नियंता के हाथ में है, उनके नहीं।


---डॉ. दीपक  आचार्य---
9413306077

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