काँग्रेस की तेरहवीं खा कर ही जाएंगे मनमोहन ! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

काँग्रेस की तेरहवीं खा कर ही जाएंगे मनमोहन !


पवन बंसल ने अंततः मनमोहन सिंह के प्रति कृतज्ञता-ज्ञापन जैसा ही रेल-बजट प्रस्तुत किया। स्वाभाविक ही था, जिस व्यक्ति को कोई दूसरा प्रधानमंत्री राज्य-मंत्री भी शायद न बनाता; उसे मनमोहन ने सीधे रेल मंत्री बना दिया! बंसल के लिए निश्चय ही आम आदमी के सुख-सुविधा का ध्यान रखने से कहीं अधिक आवश्यक था इस अहसान का बदला चुकाना। अब अगली बार बंसल लोक-सभा चुनाव हार भी जाएं तो माया-मुलायम जैसे सहयोगियों के ज़रिए राज्य-सभा में आ जाएंगे। अर्थात, अगले चार-छह मंत्रिमंडलों में आरक्षण पक्का!

लेकिन सोनिया-राहुल समेत कोई भी काँग्रेसी यह समझना ही नहीं चाहता कि अगले लोक-सभा चुनाव चाहे 2013 में हों अथवा 2014 में; मतदाता किसी भी प्रकार काँग्रेस को दोबारा सत्ता में नहीं लौटने देंगे। रहा सवाल माया-मुलायम जैसे लोगों का, तो जो उन्हें सी .बी .आई . के फंदे से बचाए रखने का पक्का वादा करेगा वे उसे ही समर्थन कर देंगे ! आख़िर दोनों पर काँग्रेस-भा .ज . पा . दोनों के अहसान बराबरी से ही हैं ! 

ज़रा सोचिए, डॉ . मनमोहन सिंह-जैसे तथाकथित 'अर्थशास्त्री-प्रधानमंत्री' ने देश की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ देश और काँग्रेस को कैसी वाहियात हालत में पहुंचा दिया ! कुछ आशावादी काँग्रेसी अभी भी उम्मीद लगाए रखेंगे कि देश का आम आदमी नरेन्द्र मोदी-जैसे 'सांप्रदायिक' व्यक्ति को प्रधानमंत्री कभी नहीं बनने देगा; लेकिन वे यह समझने को तैयार नहीं होंगे कि जो पार्टी लाल कृष्ण अडवाणी-जैसे 'महानायक' को सत्ता की ख़ातिर दांव पर लगा सकती है , उसे नरेन्द्र मोदी को किनारे करने में भला क्या दुविधा होगी? भा .ज .पा . के वर्त्तमान और भावी सहयोगी मात्र इतना ही तो चाहते हैं न कि कोई धर्म-निरपेक्ष व्यक्ति ही प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित हो; सो भा .ज .पा . के  पास न तो नेताओं की कमी है, न सिद्धांतों के साथ समझौता न करने की आदत। यदि सत्ता में आने लायक़ सीटें मिल जाएं और सहयोगी किसी मुस्लिम को प्रधानमंत्री बनाने पर अड़ जाएं  तो भा .ज .पा . शाहनवाज़ हुसैन को भी प्रधानमंत्री का पद दे सकती है। ए .पी .जे . अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति बना सकते हैं तो शाहनवाज़ या मुख़्तार अब्बास नक़वी को प्रधानमंत्री भी बनवा सकती है भा .ज .पा!

लेकिन बात काँग्रेस की है। पवन बंसल के रेल बजट की है, मनमोहन-मोंटेक सिंह के आर्थिक आतंकवाद की है, पी . चिदंबरम के आर्थिक सर्वे और आम बजट की है। इत्मीनान रखिए, पवन बंसल ने तो आम आदमी की सिर्फ़  जेब ही काटी है, चिदंबरम को तो वैसे भी अधिक स्वामिभक्त और आम आदमी का सबसे बड़ा शत्रु  माना जाता है। चिदंबरम यदि परसों आम आदमी के सामने आत्महत्या के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प न छोड़ें तो 

किसी को कोई आश्चर्य नहीं होगा। उनकी प्रतिष्ठा, डॉ . मनमोहन सिंह की कृपा से ऐसी ही बन गई है ! काँग्रेस के ताबूत में आख़िरी कील ठोकने का काम वैसे आम बजट नहीं बल्कि 2012-13 का आर्थिक सर्वेक्षण करेगा, जिसे  वित्तमंत्री कल संसद में प्रस्तुत करेंगे। यही दस्तावेज़ डॉ . मनमोहन सिंह, सोनिया, राहुल गाँधी - यानि समग्रतः , काँग्रेस के विरुद्ध विपक्ष का सबसे बड़ा हथियार होगा क्योंकि इसी दस्तावेज़ में यू .पी .ए .2  के आम आदमी विरोधी और अम्बानी अम्बानी-टाटा जैसे चार-छह पूंजीपतियों के लिए देश को बेच डालने जैसे प्रयासों का पर्दाफ़ाश होगा। आपको संभवतः स्मरण हो, इसी आर्थिक सर्वेक्षण के ज़रिए यह ख़ुलासा हुआ था कि आम आदमी की रोज़ी-रोटी के साथ-साथ ईंधन-अनाज तक पर खुला डाका डालने वाली डॉ .मनमोहन सिंह की सरकार ने 'राहत-पैकेज' के नाम पर 2012-13 के वित्तीय वर्ष में 5.20 लाख करोड़ जैसी भारी-भरकम राशि बिना उगाहे छोड़ दी थी।

यह सवाल डॉ . मनमोहन सिंह-मोंटेक सिंह अहलुवालिया-पी .चिदंबरम के साथ-साथ तथाकथित ऊंची विकास दर का ढिंढोरा पीटने वाले हर व्यक्ति चाहे वह काँग्रेसी हो या सरकार के 'बिस्तर-बंद' पत्रकार राजदीप सरदेसाई, नलिनी सिंह, तवलीन सिंह, गुरचरण सिंह वग़ैरह-वग़ैरह सभी से पूछा जाना चाहिए कि आख़िर क्यों अरब-खरब पति उद्योगपति-पूंजीपतियों के ऊपर हर संभव और असंभव मेहेरबानी दिखाने वाली सरकारों को ग़रीब आदमी की थाली ही दिखाई पड़ती है? गत वर्ष पूंजीपतियों से न वसूला गया राजस्व, देश के बजट में कुल वित्तीय घाटे से ढाई गुना था! यानि, वित्तीय घाटा, सब्सिडी का बोझ जैसी हर बात सिरे से ही झूठी है। सरकार  और उद्योग-पतियों-पूंजीपतियों की जेब में जाने वाला हर पैसा आम आदमी की ही जेब से जाता है, कोई मनमोहन या मोंटेक सिंह या चिदंबरम अपनी जेब से सब्सिडी नहीं देता। पूंजीपतियों को दी जाने वाली राहत से लेकर हर सरकारी काम में दोनों हाथों  वसूल की जाने वाली रिश्वत और राजनैतिक दलों के खातों में दिन-दूनी , रात चौगुनी गति से बढ़ने वाले चंदे में जमा होने वाला एक-एक पैसा मज़दूर-मेहनतकश की ही कमाई  से, उसी की जेब से जाता है।

यदि गाँधी-नेहरू परिवार के अलमबरदारों को देश की, आम आदमी की या काँग्रेस की ज़रा सी भी चिंता है तो सबसे पहले उसे आम आदमी के इन सबसे बड़े शत्रुओं को बाहर का रास्ता दिखाना ही होगा। यही समय है, जब आम आदमी के मन से लगभग पूरी तरह बाहर हो चुकी काँग्रेस की छवि को किसी सीमा तक उजला बनाया जा सकता है। वास्तव में, देश का कोई भी स्थिर-प्रज्ञ नागरिक कम से कम नरेन्द्र मोदी जैसे व्यक्ति को देश के प्रधानमंत्री के पद पर नहीं देखना चाहता। काँग्रेस यदि आम आदमी की इसी नैतिक कमज़ोरी का लाभ उठा कर फिर सत्ता पाने की उम्मीद में है, तो उसे याद रखना चाहिए कि इसी आम आदमी ने इंदिरा जी जैसी महान और आम आदमी की सबसे बड़ी पक्षधर नेता होने के बावजूद, सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाने में भी कोई रियायत नहीं की थी। मनमोहन-सोनिया तो वैसे भी नज़र से उतरे हुए लोग हैं।



---सुरेश स्वप्निल---
भोपाल -462014 ( म . प्र .)
मोबाइल: 094256-24247, 07354848123

कोई टिप्पणी नहीं: