बिहार के पूर्व राज्यपाल देवानंद कुंवर को त्रिपुरा का नया राज्यपाल नियुक्त किए जाने पर राज्य सरकार ने मंगलवार को केंद्र सरकार के रवैए की तीखी आलोचना की और कहा कि केंद्र को एकतरफा फैसला नहीं लेना चाहिए था। त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने कहा, "किसी राज्य में एकपक्षीय निर्णय लेते हुए राज्यपाल की नियुक्ति करना अनुचित है।" उन्होंने आगे कहा, "केंद्रीय गृह मंत्री ने राज्यपाल की नियुक्ति से पहले राज्य से मशविरा करने की पारंपरिक पद्धति का पालन नहीं किया।"
गौरतलब है कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शिंदे की सिफारिश पर शनिवार को केरल, बिहार, नागालैंड, ओडिशा तथा त्रिपुरा के लिए राज्यपालों की नियुक्ति की थी। त्रिपुरा के राज्यपाल डी.वाई. पाटील को बिहार भेजा गया और बिहार के राज्यपाल देवानंद कुंवर को त्रिपुरा भेज दिया गया। माणिक साफ तौर पर नाराज दिखे। उन्होंने कहा, "पिछले सप्ताह जब गृह मंत्री सुशीलकुमार शिंदे ने मुझे बुलाकर इस बात की जानकारी दी कि कुंवर त्रिपुरा के नए राज्यपाल होंगे तो मैंने उनसे ऐसा न करने का अनुरोध किया था।"
मुख्यमंत्री ने कहा, "लेकिन मेरे विरोध के बावजूद एकपक्षीय फैसला लेकर राज्यपाल की नियुक्ति कर दिए जाने के बाद केंद्रीय गृह मंत्री ने दिल्ली में मौजूद त्रिपुरा के आयुक्त को राष्ट्रपति भवन बुलाकर नए राज्यपाल की नियुक्ति संबंधी कागजात सौंप दिए।" उधर, बिहार में उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी सहित कई कैबिनेट मंत्री राज्यपाल देवानंद कुंवर के हाथों राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों (वीसी), प्रति-कुलपतियों (प्रो-वीसी) और कालेजों के प्रिंसिपलों की नियुक्ति में 'लेनदेन' का आरोप लगाते हुए सोमवार को धांधली की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कराने की मांग कर चुके हैं।
पिछले दिनों बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी इन नियुक्तियों में राज्य सरकार से सलाह नहीं लिए जाने पर नाराजगी प्रकट की थी। कई विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति गलत तरीके से किए जाने का मुकदमा पटना उच्च न्यायालय में विचाराधीन है। त्रिपुरा में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेतृत्व वाले वाम मोर्चा की सत्ता में वापसी के बाद फिर से मुख्यमंत्री का पद संभाल चुके माणिक सरकार ने बताया कि उन्होंने शिंदे से फिर बात की है और उनसे पूछा है कि जब राज्य को पहले से पदासीन राज्यपाल से कोई दिक्कत नहीं थी, तब अचानक नए राज्यपाल को नियुक्त करने की क्या जरूरत आन पड़ी?
सरकार ने आगे कहा, "केंद्र सरकार पहले परंपरा को निभाते हुए राज्यपाल पद के लिए नामों की सूची राज्य सरकार को भेजती थी। फिर हम सूची में से किसी एक का चुनाव करते थे या कुछ नामों के ेप्रति हम अपना विरोध या आपत्ति प्रकट करते थे। इसके बाद केंद्र सरकार फिर से संशोधित सूची भेजती थी। राज्य सरकार की सलाह से राज्यपाल की नियुक्त होती थी। यही परिपाटी चली आ रही थी, लेकिन इस बार केंद्र सरकार ने इस सामान्य परिपाटी को तोड़ा है।"
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