तारीफ पाने के मोहताज न रहें, बुरे लोगों और अज्ञानियों से - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

तारीफ पाने के मोहताज न रहें, बुरे लोगों और अज्ञानियों से

यह जरूरी नहीं कि हम जो भी अच्छे काम करते हैं उनकी हर कोई तारीफ करे ही सही। यों देखा जाए तो दुनिया में अधिकांश लोग अच्छे कार्यों व अच्छाइयों को सहजता के साथ स्वीकार नहीं कर पाते, चाहे इन श्रेष्ठ कार्यों से उनका भी भला क्यों न होता हो। लोग दूसरों के अच्छे कर्मों और श्रेष्ठ लोगों की तारीफ करने में सर्वाधिक कंजूस और अनुदार होते हैं और उन्हें हमेशा यह लगता है कि दूसरों की तारीफ करने का सीधा सा अर्थ है अपने आपको कमजोर और प्रतिभाहीन अथवा हीन समझना। जबकि ऎसा होता नहीं है। जो अच्छे कामों और अच्छे लोगों की तारीफ करता है उसकी अच्छाइयां बहुगुणित होती जाती हैं जिसका लाभ उसके व्यक्तित्व विकास के साथ ही उसकी यश कीर्ति में विस्तार के लिए अवश्य प्राप्त होता है। आम आदमी के लिए किसी की आलोचना या निन्दा करना जितना सहज, सरल और प्रसन्नतादायी होता है उतना ही कष्टदायी और असाध्य है दूसरों की प्रशंसा करना, अच्छे लोगों और अच्छे कर्मों की तारीफ करना।

यही एक मात्र आरंभिक अंतर है आम और खास में। दूसरों की प्रशंसा करने का काम हर कोई सामान्य आदमी नहीं कर सकता। इसके लिए उदारता और निरपेक्ष भाव का होना नितांत जरूरी है और यह भाव उन्हीं लोगों में आ सकता है जो जमीन से जुड़े हुए हैं, संस्कारित और उदार हैं तथा जिनमें दैवीय और दिव्य गुण विद्यमान हैं। औरों की तारीफ करने वाला दुनिया के उदार लोगों की श्रेणी में गिना जाता है जिनमें यह माद्दा होता है कि औरों को तौल सकें और अच्छे-बुरे या हल्के-भारी का अन्तर स्पष्ट कर सकें। इन लोगों में ही हुआ करती है स्वस्थ और स्वच्छ दिशा दृष्टि और मूल्यांकन का सामथ्र्य। आज के दौर में निन्दा और आलोचना करने वाले लोग भी हैं और विरोध करने वाले भी। ऎसे लोग अपने क्षेत्र में भी हैं और दूसरे इलाकों में भी। कई स्थानों पर कई-कई गिरोह बने होते हैं जो किसी न किसी पॉवर को हाथ में ले लेने के बाद अपने औजारों को ग्रेनेड़ तथा राकेट या मिसाईल की तरह इस्तेमाल करते रहते हैं और जमाने भर को इतना परेशान और त्रस्त करते रहते हैं जैसे कि इन्हीं के जिम्मे है अंधेरों के देवता के सारे काम।

इस किस्म के लोग अपने क्षेत्र में अपने आपको ठीक उसी तरह सिकंदर मानते हैं जैसे कि गलियों के एकाधिकार प्राप्त श्वान। इस किस्म के लोगों से सर्वाधिक त्रस्त होता है समाज और समय, जो इनकी हरकतों और हथकण्डों तथा बाधाओें से परेशान होता रहता है। इन लोगों को स्पीड़ ब्रेकरों का मानवी संस्करण कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस प्रजाति के लोग सभी स्थानों पर धुंध या भ्रष्टाचार की तरह छाए हुए हैं। ऎसे में सभी स्थानों पर श्रेष्ठ कर्मों को आकार लेने में कई प्रकार की दिक्कतों का आना स्वाभाविक है ही। इससे समाज की सेवा करने वाले समर्पित लोगों के मानस पटल पर बुरा प्रभाव पड़ता है और समाजसेवा की गतिविधियों को अपेक्षित प्रोत्साहन प्राप्त नहीं हो पाता। यही आज का सबसे बड़ा कारण है जिसकी वजह से हमारा समाज पिछड़ा हुआ ही है और इसके पिछड़ेपन को दूर करने के लिए किए जा रहे प्रयास अपेक्षित गति प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। इन तमाम स्थितियों में समाज के लिए जीने और मरने तथा समाजसुधार एवं विकास के साथ ही तमाम प्रकार की रचनात्मक प्रवृत्तियों में जुड़े हुए लोगों को चाहिए कि वे जिस दिन से अच्छे काम की शुरूआत करते हैं उसी दिन से उन्हें यह संकल्प ले लेना चाहिए कि वे समाज के बुरे और नकारात्मक, कमीन लोगों से यह अपेक्षा न करें कि ये उनकी तारीफ करेंगे।

ऎसा कभी नहीं होता कि नकारात्मक लोग सकारात्मक प्रयासों की तारीफ करें। ऎसा वे चाहते हुए भी नहीं कर पाते क्योंकि उनका अन्तर्मन और स्वभाव भी उन्हें इसकी इजाजत नहीं देता। समाज जीवन में जो लोग अच्छे काम करते हैं उन सभी के साथ ऎसी स्थितियां जीवन में कई-कई बार सामने आती ही हैं। ऎसे में अच्छे लोगों को विचलन छोड़ कर श्रेष्ठ कर्मों के निरन्तर चिंतन और कर्मयोग को आकार देते रहने चाहिए। चाहे उन्हें कहीं प्रोत्साहन मिले ही नहीं और हतोत्साह एवं तिरस्कार का ही सामना क्यों न करना पड़े। समाज में नकारात्मक लोगों का संख्या बल ज्यादा होने की वजह से श्रेष्ठ पुरुषों को इन लोगों से आदर और प्रोत्साहन की कामना कभी नहीं करनी चाहिए। फिर आजकल जिस किस्म के लोग हमारे सामने आ रहे हैं उनमें बुद्धि या प्रतिभा का कोई वजूद नहीं होकर षड़यंत्रों और कामचलाऊ संबंधों तथा समझौतों का ही चलन चल पड़ा है।

हम कितने ही अच्छे कम करें इसकी तारीफ बुरे लोगों के मुँह से सुनने को कभी बेताब न रहें। अपने कामों और जीवन व्यवहार की तारीफ यदि बुरे लोग भूल से कर भी लें तो समझना चाहिए कि यह अपने विरूद्ध उनका कोई बहुत बड़ा षड़यंत्र पक रहा है। हम जो भी काम करें उसकी अच्छे लोग, विद्वजन और श्रेष्ठीपुरुष प्रशंसा या सराहना करें, उसी में हमारा और जगत का कल्याण है। हर वो काम करें जो समाज और राष्ट्र के हित में हो, भले ही लोग उसकी तारीफ करें या न करें। चरेवैति-चरेवैति के मूल मंत्र को अपनाते हुए निरन्तर आगे बढ़ते रहें और पीछे मुड़कर न देखें, तभी लक्ष्य तक की दूरी को कम किया जा सकता है और लक्ष्य सिद्धि को सहजतापूर्वक आशातीत सफल।





---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com


2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Unknown ने कहा…

.............SAARTHAK AUR SACHCHEY AALEKH HETU LEKHAK KO BADHAAI .......PAR PRASHANSAA SE KAISEY VIMUKH HUAA JAAYEE.........HAM SABKI PRAKRATI HI AISI HO GAI HAI ............!!