भूमि समस्या से जूझ रहे दिल्लीवासी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

भूमि समस्या से जूझ रहे दिल्लीवासी


  • दिल्ली की भूमि समस्या से जूझ रहे दिल्लीवासियों के प्रति संवेदना व्यक्त करने की जरूरत है। गरीब किसानों , कॉलोनीवासियों व यहां रह रहे मजदूरों को सहयोग करें।


भारत के ग्रामीण व जंगलों की जो समस्या है। वह अपने आप में एक बहुत बड़ी व जटिल समस्या है। जिसके निदान के लिए आप लोग वर्षों से लड़ाई लड़ते आ रहे हैं। लेकिन इसके साथ ही एक और गंभीर व जटिल समस्या भारत के महानगरों की है। जिस से शायद आप लोग अवगत न होंगे आप लोग समझते होंगे कि शहरों में रहने वाले सभी शहरवासी खुशहाल व सुखी सम्पन्न होंगे। परन्तु ऐसा नहीं है। यह विडम्बना ही कहे और यहां के लोगों का दुर्भाय है कि यहां के भूमिहीन व किसान और  मजदूर सभी अपने ही प्रतिनिधियों के सताये व मारे हुए हैं। परन्तु फिर भी हमें उनका ही साथ देना पड़ता है। कोई ना कोई मजबूरियां रही होंगी । यूं ही कोई बेवफा नहीं होता है। भारत की राजधानी लगभग तीन करोड़ आबादी वाली दिल्ली ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे बाहरी ग्रामीण किसानों व भूमिहीन निवासियों की समस्या से आप लोगों को अवगत कराना चाहता हूं। जिसे सरकार व दलालों ने मिलकर भारत की राजधानी दिल्ली महानगर के निकट बसने वाले देहातों गांव ग्रामीण क्षेत्र के किसानों की जमीनों को कौड़ियों के भाव खरीद कर हजारों व लाखों रूपयों के भाव में उन्हीं किसानों और जरूरतमंद लोगों को बेचे जा रहे हैं। जिन किसानों से जमीन ली गयी उनमें से बहुतों को मुआवजा के लिए सालों साल तक कचहरियों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। या फिर अपने अधिकार के लिए उन्हें सालों साल तक कोर्ट कचहरी का दरवाजा खटखटाते हुए स्वर्ग सिधारना पड़ता है। जिन समस्याओं से इस राजधानी के ग्रामीण लोग जूझ रहे हैं। आज उन समस्याओं के कुछ बिन्दुओं को आप के समक्ष पेश कर रहा हूं। यंू तो समस्याएं काफी है। लेकिन कुछ बिन्दुओं को छूआ जा रहा है जिस से आप लोगों को यह समझते देर नहीं लगेगी कि दिल्ली के किसानों,भूमिहीनों व कॉलोनियों में रहने वाले निवासियों की किस प्रकार की गंभीर समस्याएं हैं। इन समस्याओं को हल करने के लिए भी बड़े आंदोलन की आवश्यकता है। 

दिल्ली में कुछ जमीनों को छोड़कर जिनका लगभग 20 प्रतिशत है। 80 प्रतिशत जमीनों की रजिस्ट्री का न होगा। मालिकाना अधिकार का न मिल पाना। इस से माफियाओं का फायदा होता है। क्योंकि कोई भी सरकारी रिकॉड आंकड़ों के साथ नहीं बन पाता। पुनर्वास कॉलोनियों की समस्या, 20 सूत्री कार्यक्रम के तहत दिये हुए प्लॉटों की समस्या, डीएसआईडीसी द्वारा दिये गये प्लॉटों की खरीद फरोख्त की समस्या इसके प्रति कोई भी स्पष्ट नीति का न होना। गांव के विकास के लिए गांव की ग्राम सभा की जमीन का उचित उपयोग न होना। डीडीए अपने द्वारा दिये गये फ्लैटों को तो चार्ज लेकर फ्री होल्ड व बढ़ाने का हक देती है। परन्तु एक गांव में जब लोग सन 1908 से पहले जो परिवार रहते आ रहे हैं और आबादी बढ़ने के कारण गांव की विस्तार होने पर लाल डोरा का विस्तार नहीं होना, इस से भी बड़ी समस्या गांव की भलाई के लिए कहीं भी पुस्तकालय, डाकघर, फायर स्टेशन, हॉस्पीटल, मैटेरनीटी सेंटर, स्कूलों को विस्तार, बाल कल्याण व महिला कल्यान के लिये किसी भी प्रकार की सुविधा का विस्तार नहीं किया जाना। रिर्जव लैण्ड जैसे हॉस्पीटल, तालाब शमशान घाट, कब्रिस्तान, पशुओं का हॉस्पीटल, चौपाल जैसी जगहों का दुरूप्रयोग किया जाना। ग्राम सभा की जमीनों का चन्द आदमियों द्वारा निजी स्वार्थ के लिए उपयोग। हर विवाद पर फास्ट  ट्रैक कोर्ट लागू कर अन्य समस्याओं का समाधान तो किया जाता है। परन्तु दिल्ली में जमीन की जटिल समस्या के लिये आज तक फास्ट टैªक कोर्ट कहीं भी किसी ने भी कोई आवाज नहीं उठाई। जबकि आज इस की विशेष आवश्यकता है। क्यांेकि किसानों को अपनी जमीन के मुआवजे सम्बंधी केसों में 20 - 30 - वषों तक उसको उचित इन्साफ के लिए भटकते-भटकते अपने प्राण त्यागने पड़ते है। आखिर क्यों?.......

गांव में चकबन्दी सम्बंधी समस्याएं खड़ी है। कुछ गांव ऐसे भी है जिन्होंने मतदान तक का बहिष्कार किया परन्तु कोई फायदा नहीं मिला। दिल्ली में जमीनों का लैण्ड यूज चेंज करने में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है। जमीनों के मामले में स्थानीय तहसीलदार एसडीएम कार्यालयों में भूमि दस्तावेजों के साथ छेड़ छाड़ व धोखाधड़ी और अधिकार मांगने वाले व्यक्तियों के साथ दुर्वव्यवहार। आज के दिन की सबसे बड़ी समस्या जो अन - आर्थराइज कॉलोनी है जो सत्तारूढ़ पार्टी की बैक बोन यानी रीढ़ की हड्डी - मात्र अपने वोट बैंक की खातिर लाखों निवासियों को मालिकाना हक देने के लिए पिछले लगभग 20 सालों से सरकार गुमराह कर रही है इस जटिल समस्या को हल करने के बजाय गरीब मध्य वर्गीय लोगों  को उलझाया जा रहा है। दिल्ली देहात के गांव में जहां खेती बाड़ी होती है। किसानों द्वारा 15 -20 सालों तक खेती करने पर उगाई गई फसल की खसरा गिरदावरी का पटवारी तहसीलदार द्वारा न भरा जाना। जिसके  लिए लोगों को हाई कोर्ट तक पैसे व समय दोनों ही बर्बाद करने पड़ते हैं। किसानों की जमीनों पर धारा 81 लगाकर ग्रामसभा में बेस्ट कर देना इस धारा का दुरूपयोग दिल्ली में सरेआम देखा जा सकता है।  



---अलोक कुमार---
पटना 
9939003721

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