मनरेगा की झूठी कहानी से नहीं होता भारत निर्माण - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 29 जून 2013

मनरेगा की झूठी कहानी से नहीं होता भारत निर्माण

चुनाव का समय करीब आने के साथ ही केंद्र सरकार ने एक बार फिर मनरेगा को अपना हथियार बनाया है। इसके तहत देष भर के समाचारपत्रों में विज्ञापन प्रकाषित किए गए हैं। इसके माध्यम से सरकार की भारत निर्माण योजना को अमलीजामा पहनाया जा रहा है। लेकिन सरकार ने अपने ही विज्ञापन के माध्यम से झूठ का पर्दाफाष किया है। 15 मई 2013 को देषभर के अखबारों में सूचना और प्रसारण मंत्रालय की ओर से भारत निर्माण के तहत विज्ञापन प्रकाषित हुआ, जिसका मजमून था-‘‘मनरेगा का षुक्रिया, अब कोई बंधुआ मजदूर नहीं।‘‘ यह विज्ञापन झारखंड के पाकुड़ जिला स्थित धोवाडंागा पंचायत के पाड़रकोला गांव पर आधारित थी। जिसमें गांव में बंधुआ मजदूरों के बारे में बताया गया जिन्हें विज्ञापन के अनुसार मनरेगा के तहत काम करने के कारण आज़ादी मिली। जबकि वास्तविकता इसके विपरीत है। स्थानीय समाजसेवी दिगंबर साहा ने भारत सरकार के विज्ञापन डीएवीपी संख्या 2211/13/0001/1314 के संबंध में पत्र लिखकर विरोध जताया और अविलंब सच को प्रकाषित करने की मांग की है। साहा ने अपने पत्र में लिखा है कि भारत निर्माण, सबका हित-सबका हक, के अंतर्गत झारखंड के गरीब आदिवासियों की समृद्वि दिखाकर देष की जनता को गुमराह किया गया है। सच तो यह है कि इस गांव में कभी कोई बंधुआ मजदूर था ही नही। 

स्थानीय लोगों के अनुसार विज्ञापन में मनरेगा अंतर्गत रालखन बांध सह कैरिेनियल जोवी तालाब के जीर्णोंद्वार से आई समृद्वि के संबंध में विस्तार से जिक्र किया गया है, जो पूरी तरह झूठ पर आधारित है। सच तो यह है कि दषकों से धोवाडंगाल पंचायत के पाड़रकोला गांव में कुदरती झरना के पानी को जमा रखने के लिए गांववालों ने श्रमदान किया है। इस गांव में लगभग 150 परिवार निवास करते हैं। परंपरानुसार दो टोले के लोग बारी बारी से इस तालाब में मछली पालन करते आ रहे हैं। इस प्रकार नियमानुसार प्रत्येक परिवार के हिस्से 250 ग्राम मछली मिलता है। विज्ञापन में मछली के जरिये गांववालों के आर्थिक समृद्धि की बात दर्षायी गई है, जो सरासर गलत है। पाड़रकोला के ग्राम प्रधान जीसू हांसदा और गुडैत राम बास्की बताते हैं कि आदिवासियों के साथ यह विज्ञापन महज छलावा है। उनका कहना है कि वर्श 2008-09 में एनआरईपी के द्वारा मनरेगा के तहत 6 लाख की राषि से कैरेनियल जोवी तालाब का जिर्णोद्धार किया गया है। इस योजना में मात्र 25 हजार की राषि खर्च कर तालाब से कीचड़-मिट्टी ही निकाली गई है। पाड़रकोला के ग्रामीणों का कहना है कि कैरेनियल जोवी तालाब से आज भी खेती नहीं होती, लेकिन विज्ञापन में सिंचाई की बात कही गई है। ग्रामीणों ने बताया कि आज भी गांव के लोग रोजगार की तलाष में बंगाल जा रहे हैं। विज्ञापन में सिंचाई नाली की चर्चा है जो अव्यवहारिक है। इसके विपरीत इससे गांव वालों को हानी ही हुई है क्यूंकि इस झरना तालाब से पानी का अनावष्यक निकास हो जाता है, जिससे तालाब का पानी सूख जाता है और नहाने और पीने का पानी मिलना भी दुष्वार हो जाता है। मांझी परगना के बैसी सदस्य जयविद सिंह यादव बताते हैं कि पाड़रकोला गांव को मनरेगा के कार्य के नाम पर विज्ञापन द्वारा प्रचारित किया गया है जबकि वहां बोर्ड तक लगा हुआ नहीं है। उन्होंने बताया कि जब मनरेगा के काम को देखने दिल्ली से टीम आई तो स्थानीय प्रषासनिक अधिकारियों ने अपनी असफलता को छुपाने के लिए टीम को इस गांव में लाने का काम नहीं किया और उन्हें पाकुड़ जि़ला से ही विदा कर दिया। पाड़रकोला गांव के राजन दत्ता बताते हैं कि वर्श 2012-13 में इस पंचायत में 1073 परिवारों में मात्र 537 को ही मनरेगा से काम मिला। वर्श 2012-13 में पाडरकोला गांव के मात्र 11 परिवारों को सौ दिन काम मिला है। जबकि वर्श 2013-14 में अबतक एक भी परिवार को मनरेगा के तहत काम नहीं मिला है। आदिवासी बहुल इस गांव के आधे से अधिक परिवार रोजगार की तलाष में बंगाल पलायन कर रहे हैं। 

विज्ञापन में केवल गांव के बारे में ही झूठ नहीं दर्षाया गया है बल्कि इस बात का भी जि़क्र किया गया है कि यहां काम करने वाले मनरेगा मजदूरों को उंचे दर पर मजदूरी का भुगतान किया जा रहा है और वे गरिमा व आत्म-सम्मान के साथ जी रहे हैं। जबकि सच्चाई यह है कि यहां की अधिकतर आबादी गरीबी रेखा से भी नीचे जीवन बसर कर रही है बावजूद इसके यहां कभी कोई बंधुआ मजदूर रहा ही नहीं है। ऐसे में भारत निर्माण विज्ञापन इस गांव में बंधुआ मजदूरी से मुक्ति को प्रचारित करना देष को दिग्भ्रमित करनवाला है। सामाजिक कार्यकर्ता बाबूधन मरांडी दावा करते हैं कि भारत निर्माण के विज्ञापन में जो कार्यरत मजदूरों की तस्वीर दिखाई गई है, वह भी पाडरकोला गांव के निवासी नहीं हैं। दरअसल मनरेगा केंद्र की यूपीए सरकार की सबसे सफल योजना साबित हुई है। जिसे यूपीए के पहले कार्यकाल में षुरू किया गया था और इसी योजना ने इसे दूसरी बार सत्ता तक पहुंचाया है। ऐसे में सरकार की कोषिष है कि चुनाव में एक बार फिर से मनरेगा को भुनाकर तीसरी बार सत्ता की सीढ़ी चढ़ा जाए। साल में सौ दिनों का रोजगार देने वाली यह योजना धरातल पर जितनी सफल हुई है, उतना ही इसमें भ्रश्टाचार ने भी अपनी पकड़ मजबूत बनाई है। कई अलग अलग रिपोर्टों और आंकड़ों ने इस बात को साबित किया है कि मनरेगा भ्रश्टाचार के चंगुल में फंसा हुआ है। ऐसे में विज्ञापन के माध्यम से इसका झूठा प्रचार इसकी विषवसनियता पर भी प्रष्नचिन्ह लगाता है। भारत निर्माण का क्रियान्वयान यदि पाड़रकोला गांव उचित माध्यम से होता तो यहां की तकदीर बदल सकती थी। हिरणपुर प्रखंड में 84 हजार की आबादी पर मात्र एक प्राथमिक स्वास्थय केन्द्र, एक हाई स्कूल है, रोजगार का जरिया मवेषी बेचकर जीवन चलाना है। ऐसे में सरकार बताऐ कि पाडरकोला गांव के लोगों का भारत के इस निर्माण में उनका हित और हक कब मिलेगा। क्या ऐसे झूठे विज्ञापन के माध्यम से भारत निर्माण संभव है। 





शैलेन्द्र सिन्हा
(चरखा फीचर्स) 

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