ये दौलत भी ले लो , ये शोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझ से मेरी जवानी !
मगर मुझ को लौटा दो मेरा वो बचपन
वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी
अरे "विजय माल्या " तेरी क्या औकात , तेरी तो सिर्फ "किंगफ़िशर एयरलाइन्स " ही बर्बाद हुई है , मुझ से पूछ मेरा क्या क्या खो गया ! तू जानता नहीं अभी "अहमद अंसारी" को ! तुझ से ज्यादा मेरी दौलत हुआ करती थी ! मै तुझ से ज्यादा अमीर हुआ करता था ! तेरी तो सिर्फ असमान में चन्द जहाजे उडती है, लेकिन मेरी तो असमान में जहाज़ के साथ साथ पानी पर भी जहाज चलती थी ! और जहाज ही नही पानी का पूरा समुन्द्र अपना हुआ करता था , मेरी हुकूमत थी उस पुरे समुद्र पर , सिर्फ मै जहाज चलाता था !
मेरे बचपन के वो दिन भी बड़े सुहाने थे जब बारिश के मौसम में हलकी से बारिश होने के बाद भी मेरे घर के आंगन में ढेर सारा पानी जमा हो जाता था ! और फिर हम अपनी स्कूल बैग से कापी निकल कर कागज की पन्नो की नाव बनाया करते थे ! हमारी नाव चलती थी , कुछ दूर जाती थी फिर डूब जाती थी , मै और मेरे भाई बाहेंन और आस पड़ोस के कुछ लड़के इकठ्ठा हो जाते थे फिर तो कम्पटीशन शुरू हो जाता था कि "किस की नाव पानी के उस पार जाती है"
नाव भी कई तरह की होती थी "परदे वाली" और "बिना परदे 'वाली ! मुझे सिर्फ परदे वाली नाव पसंद थी ! पर्दे वाली नाव में पानी कम घुसता था इस लिए वो देर तक तैरती थी ! कभी कभी उस कागज़ की नाव में कुछ सामान भी रख दिया करते थे जैसे लकड़ी का तिनका और छोटी ईट गिट्टी और वो कागज की नाव धीरे धीरे
आगे बढती थी ! जब नाव बीच पानी में जाकर रुक जाती थी तो पानी में ईट पत्थर का टुकड़ा फेंक कर एक गोल कर्व का उठाओ बनाते थे जिस के सहारे नाव धीरे धीरे आगे बढती थी ! और जाकर किनारे को लग जाती थी फिर तालिया बजाते थे बहुत ख़ुशी होती थी मनो कोई जंग जीत लिया हो हमने !
लेकिन अब कहाँ वो दिन ! बारिश तो आज भी होती है , लेकिन अब नाव नहीं चलती , दिन भर की दौड़ भाग में ही दिन कट जाता है , अब तो पानी में भीगने की की भी फुर्सत नहीं , बड़े सुहाने थे वो दिन बचपन के जो बीत गए गए , न जाने कब हम बड़े हो गए ! अब नए अंदाज़ में , फेसबुक और गूगल के सहारे मुझे मेरा बचपन छोड़ कर चला गया !
- अंदाज़ है अपने नए-नए और नया नया दिवानापन
पहना के ताज जवानी का चुपके से लौट गया बचपन
स्वतंत्र पत्रकार
नयी दिल्ली

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