बावा नहीं बाबा बनें राहुल !! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 1 जुलाई 2013

बावा नहीं बाबा बनें राहुल !!

वरिष्ठ भाजपा नेता प्रमोद महाजन अपने ही भाई के हाथों गोलियों से छलनी हो कर मृत्यु शैय्या पर पड़े थे। इस बीच मीडिया के साथ ही देशवासियों को भी मालूम हुआ कि महाजन के राहुल नाम का कोई बेटा भी है। मौत से जूझ रहे महाजन के इस बेटे पर पता नहीं क्यों मीडिया रीझ गया, और उसकी तुलना कांग्रेस के राहुल यानी राहुल गांधी से शुरू हो गई। कुछेक मीडिया ने तो महाजन राहुल को गांधी राहुल से अधिक धैर्यवान और व्यवहारिक करार दे दिया। लेकिन जल्द ही महाजन राहुल का असली चेहरा देश के सामने आ गया, जबकि कांग्रेस के राहुल की छ वि जनता में अब भी वैसी ही है। 

कहने का अभिप्राय यह है कि राहुल गांधी के सामने देश के लिए कुछ करने को काफी कुछ है। वे एक बड़े राजनेता घराने के वंशज हैं। समूचा देश जिसे एक नाम से जानता है। जो राजनीति में पीढि़यां गुजारने के बावजूद दूसरों के लिए यह दुर्लभ हैं। राहुल के पास कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी है, जिसका गांव - गांव में संगठन हैं। वे आधुनिक और पढ़े लिखे हैं। देश के लिए कुछ करने की उनकी सदिच्छा भी है। सवाल उठता है कि आखिर फिर क्यों राहुल गांधी एक प रिपक्व राजनेता बनने के बजाय अब तक नौसिखिया ही बने हुए हैं। उत्तर भारत में बाबा यानी पिता के पिता को कहते हैं. जबकि सभ्रांत तबका बच्चों को बावा कह कर पुकारते हैं। राहुल गांधी के साथ भी यही विडंबना हो रही है। देश उनसे प रिपक्वता की अपेक्षा रख रहा है। जबकि वे मानो बचपन से आगे नहीं बढ़ना चाहते। 
राहुल गांधी को यह बात समझनी चाहिए कि देश की जनता अब काफी परिपक्व हो चुकी है, वह किसी का सिर्फ इसलिए सम्मान नहीं कर सकती कि वह किसी खास वंश का उत्तराधिकारी है। नीतिश कुमार हों या नरेन्द्र मोदी या फिर कोई और, यदि जनता ने उन्हें मान - प्रतिष्ठा दी, तो इसलिए कि उन्होंने जिम्मेदारी स्वीकारी, और कुछ कर दिखाया। यह खासियत समाज के दूसरे क्षेत्रों में भी है। अब आधुनिक  क्रिकेट के जगमगाते सितारे महेन्द्र सिंह धौनी को ही लें। कुछ साल पहले तक वे प शिचम बंगाल के खड़गपुर शहर में रेलवे में सामान्य टिकट चेकर की नौकरी किया करते थे। 

आज उनकी लोक प्रियता शिखर पर हैं, तो इस लिए कि उन्होंने अपने क्षेत्र में कुछ करके दिखाया। लेकिन राहुल गांधी के मामले में उलटा ही हो रहा है। वे हमेशा बैक सीट ड्राइविंग करते हुए जिम्मेदारी स्वीकार करने से कतरा रहे हैं। जनसभाओं में कोरी भावनाएं व आक्रोश दिखाने से कुछ नहीं होगा। राहुल गांधी  से देशवासी बाबा बनने की उम्मीद रखता है, बावा नहीं। यह बात राहुल गांधी के साथ ही हर कांग्रेसी को भी समझनी होगी। 







तारकेश कुमार ओझा
लेखक दैनिक जागरण से जुड़े हैं। 
खड़गपुर ( पशिचम बंगाल) 
संपर्कः 09434453934

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