बदलते स्वरूप में पर्यटन बनाम भारत - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 25 अगस्त 2013

बदलते स्वरूप में पर्यटन बनाम भारत

संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा विष्व में पर्यटन के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए तथा एक दूसरी सभ्यता और संस्कृति को समझने और आर्थिक तथा सामाजिक परिवेष की जानकारी बांटने के उद्देष्य से प्रतिवर्ष 5 सितंबर को विष्व पर्यटन दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत गणराज्य दक्षिण एषिया के सबसे बड़े देष का नाम है, इसे भारत और हिन्दुस्तान आदि नामों से जाना जाता है, भारत 28 राज्यों और 7 संघ शासित प्रदेषों का ऐसा संघ है जो विष्व की बारहवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक मानी जाती है । आज यह विष्व के विकासषील देषों में अपनी प्रमुखता रखता है, प्रमुख शहरों की बात करें तो नई दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चैन्नई और बैंगलोर बड़े शहरों में गिने जाते हैं इन शहरों की बदौलत ही आज भारत प्रगतिरत विष्व देषों में प्रमुखता रखता है। 
यहां की संस्कृति अनूठी है क्योंकि यहां सभी धर्मावलम्बियों को समान अधिकार प्राप्त हैं हिन्दु, मुस्लिम बौद्ध जैन सिक्ख ईसाई  मुख्य धर्मों के मानने वाले सम्पूर्ण भारत में निवास करते हैं। यह अनूठा इसलिए भी है कि यह विष्व में सर्वधर्म समभाव रखने वाला एकमात्र देष है। अभी हाल ही में 19 वें राष्ट्रमण्डल खेलों का सफल आयोजन भारत ने किया है। खेल प्रिय देष होने के साथ-साथ पर्यटन की दृष्टि से भी यह पर्यटकों की पहली पसंद बना हुआ है । राष्ट्रीय खेल हाॅकी है और यहां महिलाओं और विकलांगों के लिए भी खेल उतना ही महत्व रखता है जितना पुरूषों के लिए । भारत के तीरंदाजों और बाॅक्सरों तथा महिला भारोत्तोलक आदि का लोहा विष्व ने माना है और बहुप्रचलित खेल क्रिकेट ने इसे बहुत बड़ा नाम दिया है। खान-पान और रीति-रिवाज यहां पग-पग पर बदलते दिखते हैं इस कारण यह विविध्ता में एकता वाला देष भी है, अद्भुत कला चाहे वह नक्काषीदार झरोंखें हों या अभेद्य किले हों, चाहे हस्तकला हो भारत एक पर्यटन के रूप में देष में रोजगार की दृष्टि से बहुत बड़ी औद्योगिक इकाई के रूप में उभर कर सामने आ रहा है। हाल ही में यूनेस्को द्वारा जैसलमेर किले सहित राजस्थान के छः किलों को विष्व धरोहर घोषित किया गया है जिनमे गागरोन, चित्तौड़गढ़, रणथम्भौर, आमेर कुम्भलगढ़ आदि प्रमुख हैं इस दृष्टि से भी भारत बहुत महत्वपूर्ण पर्यटन विषय बन गया है।
आज के परिप्रेक्ष्य में भारत में घूमने आने वाले पर्यटकों के लिए मुख्य  आकर्षण के केन्द्र बिन्दु आगरा का ताजमहल, खजुराहों के मंदिर, केरल, वन्य प्राणियों के चरागाह, गोवा, लेह-लद्दाख, दार्जिलिंग, अजन्ता एलोरा के गुफा मंदिर, राजस्थान के मखमली रेगिस्तानी धौरे, और हवेलियां, वन्य जीव अभ्यारण्य और समुद्री किनारों पर सजे पर्यटन स्थल और जयपुर का हवामहल आदि रहते हैं। कांजीरंगा राष्ट्रीय पार्क , हैदराबाद की चारमीनार, यूनेस्को द्वारा विष्व विरासत घोषित किये गये पटना बिहार का महाबोधी मंदिर, दिल्ली का लोटस टंेपल, गोवा के समुद्री किनारे, हिमाचल के बर्फीले पहाड़, प्राचीन मंदिरों और मस्जिदों तथा विषाल भू-दृष्यों के लिए भारत का स्वर्ग कष्मीर, कर्नाटक का मैसूर पैलेस, केरल के नावघर भारत के हृदय मध्यप्रदेष में स्तूप, किले, षिलालेख, खजुराहों के मंदिर, आधुनिक नगरी मुम्बई, नैनीताल के प्राकृतिक झरने, उड़ीसा में कोणार्क सूर्य मंदिर, पंजाब में स्वर्ण मंदिर, सिक्किम स्थित विष्व की तीसरी सबसे बड़ी पर्वत चोटी कंचनजंगा, उत्तराखंड की हरी-भरी वादियां , उत्तरप्रदेष का फतेहपुर सीकरी, बनारस में गंगा के पवित्र धार्मिक घाट, कुंभ मेला, लखनउ का बड़ा इमामबाड़ा का दरवाजा, कोलकाता का विक्टोरिया मेमारियल आदि भी पर्यटन की दृष्टि से बहुत महत्व रखते हैं । 
बदलते समय ने एडवेंचर ट्यूरिज्म , जिसे साहसिक पर्यटन भी कहा जाता है जैसे नये आयामों को भारतीय पर्यटन से जोड दिया है जिससे यहां आने वाले पर्यटकों को नये अनुभव मिल रहे हैं यहां सालाना आयोज्य धार्मिक और सांस्कृतिक मेलों ने भी पर्यटकों को अपनी ओर खासा आकर्षित किया है।
पर्यटक यहां ग्रामीण परिवेष की झलक लेने, दुर्गम पहाड़ी रास्तों पर चढ़ाई चढ़ने, तेज बहती नदियों में रिवर राफ्टिंग करने, रेतीले धोरों में उंटों पर सवार होकर सांझ के डूबते सूरज की झलक पाने के लिए बरबस ही खिंचे चले आते हैं और आये भी क्यूं नहीं भारत ने हमेषा मेहमानों को भगवान माना और अपणायत तथा आवभगत में कभी कोई कमी नहीं छोड़ी यही बात विदेषियों को भारतीय पर्यटन की और बार-बार ले आती है , हर साल लाखों सैलानी सम्पूर्ण भारत भ्रमण करते हैं यहां दो प्रकार के पर्यटक इस व्यवसाय की प्रमुख कड़ी है। देषी और विदेषी सैलानी। देषी सैलानियों में बंगाली पर्यटकों  की अधिकता रहती है वहीं विदेषी पर्यटकों में फ्रांस, जर्मनी अमेरिका, स्पेन और जापानी पर्यटकों की बहुतायत रहती है।
पर्यटकों के लिए भारत भ्रमण एकदम अनूठा अनुभव है क्योंकि यहां वे भांति-भांति के रंग चलते फिरते कहीं भी देख सकते हैं वे इसे आज के परिप्रेक्ष्य में कई नजरियों से देखते हैं और अपने प्रियजनों और दोस्तों के लिए भी ज्ञान के रूप में भली-भांति बांट रहे हैं , फेसबुक, ट्विटर, इंटाग्राम, आदि सामाजिक जुडाव की वेबसाइटों पर वे अपने अनुभव फोटों और विडियों सहित साझा कर रहे हैं । इन सभी बातों ने भी भारत में पर्यटन की दृष्टि से एक उद्योग को जन्म दिया है और पष्चिम के लोगों के लिए भारत के द्वार को और बड़ा कर दिया है। यहां के धर्मगुरूओं ने भी अपने ज्ञान और योग से विदेषियों के लिए नई शरणस्थली और ज्ञान पाने का स्थान बनाया है, विदेषियों  ने जहां यहां के रीति-रिवाजों को समझा है वहीं कई यहां के लोगों से  इतने प्रभावित हुए हैं कि वे आये और यहीं को होकर रह गये वापिस फिर अपने घर नहीं गये। विदेषियों ने हिन्दी भाषा सीखने में भी अपनी खासी रूचि दिखाई है जिस कारण आज भारत पर्यटन की दृष्टि से विष्व मानचित्र पर मुखर होकर सामने आया है। राष्ट्रीय सकल उत्पाद के रूप में पर्यटन का योगदान छः प्रतिषत है।
धार्मिक, सामाजिक और साहसिक पर्यटन आज के नये आकर्षण हैं जिनमें एडवेंचर टूरिज्म को बहुत बढ़ावा मिल रहा है। साहसिक पर्यटन में कैमल सफारी, पर्वतारोहण, पैराग्लाइडिंग, स्कूबा डाइविंग, स्कीइंग, ट्रेकिंग, वाटर राफ्टिंग ऐलिफंेट सफारी आदि प्रमुख हैं। थार के रेगिस्तान में कैमल सफारी छुट्टियां बिताने आने वाले पर्यटकों की पहली पसंद है। जैसलमेर में रेत के मखमली धोरों पर उंटों की सवारी का आनंद छोटी और बड़ी यात्रा दोनों रूप में लिया जा सकता है। उंचे-उंचे रेत के टीलों पर से सूर्यास्त का अनूठा नजारा सफर का आखिरी पड़ाव होता है, फिर रेत में नृत्य और राजस्थानी लोकगीतों और लोकवाद्यों की संगत सैलानियों को बरबस थिरकने पर विवष कर ही लेती है उसके साथ ही राजस्थानी पारंपरिक वेषभूषा की अमिट छाप के लिए कई सैलानी यहां के साफे अथवा पगड़ी ले जाना नहीं भूलते यहां का पारंपरिक खाना खाने के लिए भी विषेष तौर पर सैलानी आते हैं ।
सालाना आयोजित डेजर्ट फेस्टिवल या मरू महोत्सव जनवरी - फरवरी में आयोजित होता है, उंट दौड़ प्रतियोगिता, साफा बांधों प्रतियोगिता, रस्सा कस्सी प्रतियोगिता, विभिन्न राजस्थानी लोकनृत्य, रात्रि के समय की गई आतिषबाजी मेले के मुख्य आकर्षण हैं। केवल देखने भर नहीं प्र्यटक खुद इस मेले का हिस्सा बनने यहां आते हैं विलुप्ती की कगार पर कठपुतली कला भी जैसलमेर में पनाह लिए हुए हैं और संस्कृति की जड़ों को मजबूती दे रही है। 
यह राजस्थान का बहुप्रचलित इलाका है, जो विष्व में नक्काषीदार झरोखों और हवेलियों के लिए पहचान बनाये हुए हैं, इसे स्वर्णनगरी या गोल्डन सिटी भी कहा जाता है क्योंकि यहां की इमारतें और घर सभी यहां निकलने वाले एक विषेष प्रकार के पीले प्रस्तर से बने हुए हैं जिस पर सूर्य की किरणें जब पड़ती हैं तब यह और भी गहरा सुनहरा पीला होकर चमकने लगता है जिस कारण यह सोने के रंग सा एहसास दिला जाता है, घर हवेलियां, किला, गलियां, बाजार सब इसी पत्थर से बने होने के कारण एक से रंग में रंग जाते हैं इसी कारण इसे स्वर्णनगरी नाम दिया गया है। विष्व का एकमात्र जीवित दुर्ग भी यहीं पर हैं यहां आज भी लोग राजषाही के समय से किले में निवास करते आ रहे हैं । 
पर्वतारोहण एक साहसिक यात्रा के रूप में भारत में तेजी से उभर कर सामने आया है । पर्यटकों को टूर पैकेज के रूप में सम्मिलित रूप से आज पर्वतारोहण, पैराग्लाइडिंग, स्कूबा डाइविंग, स्कीदंग, ट्रेकिंग, वाटर राफ्टिंग जैसी पर्यटन सुविधाएं एक साथ दी जाने लगी हैं। कई पर्यटन से जुड़ी एजेंसियों ने शहरों और रमणीक स्थलों पर अपने ट्रेवल एजेंटों के माध्यम से एक वृहद् कड़ी सी बना रखी है जो भारत में पर्यटन के साथ-साथ रोजगार उपलब्धि में कारगर सिद्ध हो रही है। ये एजेंसियां इन कडि़यों के रूप में यहां घूमने आने वाले पर्यटकों की जेब को भी ध्यान में रखकर टूर पैकेज उपलब्ध करवा रही है ताकि पर्यटक अपनी हैसियत से पर्यटन का लाभ ले सकें।
पर्यटन का दौर अब भारत में नये नये आयाम स्थापित कर रहा है, इस दिषा में और भी असीम संभावनाएं खोजी जा रही है ताकि पर्यटकों को और भी अच्छे अनुभवों से अवगत करवाया जा सके । षिक्षा पर्यटन के रूप में भी भारत में कई संभावनाएं खोजी जा सकती हैं प्रबंधन और कला के छात्रों के रूप भी पर्यटक हर साल यहां की कला को निहारने के लिए पंहुचने लगे हैं। स्थापत्य कला और ग्रामीण तथा यहां के ठेठ देहादी रहन-सहन के तरीकों को जानने के उत्सुक कई विद्यार्थी भी भारत को अध्ययन का विषय चुन रहे हैं।
हर रमणीक स्थल के पास पर्यटक सहायता केन्द्र खोले गये हैं जो हरसंभव पर्यटकों को मदद के लिहाज से कार्य करते हैं। विभिन्न राज्यों में शास्त्रीय संगीत और नृत्य ने भी पर्यटकों के लिए नये रास्ते खोल दिये हैं। तमिलनाडु में भरतनाट्यम्, बंगाल में गुडिया नृत्य, उत्तरप्रदेष मे कत्थक, केरल मे ंकथकली और मोहिनीअट्टम, आंध्रप्रदेष में कुचिपुड़ी, मणिपुर में मणिपुरी, ओडिषा में ओडिषी और आसाम में सत्रीय नृत्य को देखने के लिए भी समय-समय पर लोक कला संस्थानों के सौजन्य से पर्यटन को बढ़ावा दिया जा रहा है। 
वर्ष 2011 की पहली छमाही तक भारत ने पर्यटन के द्वारा 82 करोड़ का व्यवसाय अर्जित कर लिया था ये आंकड़े इस बात के लिए  भी जरूरी हैं कि पर्यटन का भारत की प्रगति और विकास के दृष्टिकोण में बहुत बड़ा योगदान है। प्रतिवर्ष तकरीबन दस लाख विदेषी सैलानी भारत कों निहारने पंहुचते हैं।

साहित्य का सहारा लेकर भी आज पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित किया जा रहा है कई बार देखा गया है कि पर्यटकों में ऐसे सैलानियों की संख्या भी होती है जो ऐसी गाइड बुकों की सहायता से खुद ब खुद घूमना पसंद करते हैं सरकारी और गैर सरकारी एजेंसियां पर्यटकों से किसी न  किसी रूप में वेबसाइटों के माध्यम से भी जुड़ी हुई हैं और चूंकि भारत त्यौंहारों वाला देष है इसलिए त्यौंहारों पर विषेष पैकेज टूर विषेषकर नये साल के आगमन ओर क्रिसमस पर दिये जाने लगे हैं । भारत में पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं और इन्हें तराषा और तलाषा भी जा रहा है जो प्रभावी तौर पर रोजगार मुहैया करवाने में कामयाब तरीका है। मनी एक्सचैंज, यातायात, पर्यटक गाइड, होटल रेस्तरां , गेस्ट हाउस, बोट हाउस तथा स्थानीय विषेष से जुड़ी वस्तुओं की दुकानों तथा एम्पोरियमों से काफी हद तक स्वरोजगार से भारत मजबूत हुआ हैं।






आनन्द हर्ष
जैसलमेर,(राज.)

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