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शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

अध्यादेश पर राष्ट्रपति की सहमति नहीं.

दोषी मंत्रियों की सदस्यता खत्म वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए लाए गए अध्यादेश पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अड़ंगा लगा दिया है। प्रणब इससे सहमत नजर नहीं आ रहे हैं। इस सिलसिले में राष्ट्रपति ने गुरुवार को कानून मंत्री कपिल सिब्बल, लोकसभा में सदन के नेता एवं गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे और संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ से बातचीत की।

समझा जाता है कि तीनों मंत्रियों ने राष्ट्रपति को बताया कि अध्यादेश के जरिए सिर्फ उन सांसदों और विधायकों को मौका दिया जा रहा है, जो उच्च अदालत में अपील करेंगे। इस दौरान उनकी सदस्यता भले ही नहीं जाए, लेकिन उन्हें संसद या विधानसभा में वोट देने का अधिकार नहीं रहेगा। इस प्रकार अध्यादेश के जरिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पूरी तरह से पलटा नहीं जा रहा है।

केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंगलवार को हुई बैठक में इस अध्यादेश को मंजूरी दी गई थी। इसे लेकर कई किस्म के सवाल उठे थे। एक तो यह कि इससे संबंधित बिल संसद में लंबित है। इसलिए आनन-फानन में अध्यादेश लाने की क्या जरूरत है। भाजपा समेत कई पार्टियां इसके विरोध में हैं।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गुरुवार को तीन केन्द्रीय मंत्रियों को बुलाकर दोषी सांसदों और विधायकों से संबंधित अध्यादेश की जरूरत को लेकर सवाल पूछे। उधर, विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर अपना हमला तेज किया। कांग्रेस में भी इस मुद्दे पर असंतोष के स्वर सुनाई दिये।

केन्द्रीय कैबिनेट ने मंगलवार को अध्यादेश को मंजूरी देकर इसे स्वीकृति के लिए मुखर्जी के पास भेजा था। मुखर्जी ने इस मुद्दे पर गृहमंत्री एवं लोकसभा में सदन के नेता सुशील कुमार शिंदे, विधि मंत्री कपिल सिब्बल और बाद में संसदीय कार्य मंत्री कमल नाथ को बुलाया। इस अध्यादेश का उद्देश्य उच्चतम न्यायालय के उस फैसले को निष्प्रभावी करना है जिसमें शीर्ष अदालत ने गंभीर अपराधों में दोषी पाये गये सांसदों और विधायकों को तत्काल अयोग्यता से बचाने वाले जनप्रतिनिधि कानून के प्रावधानों को निरस्त कर दिया था। कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति इस अध्यादेश को स्वीकृति देने के लिए किसी जल्दबाजी में नहीं हैं और वह चाहते हैं कि सरकार इस मुद्दे पर अध्यादेश की जरूरत पर स्पष्टीकरण दे। इस अध्यादेश की विपक्षी दल और समाज के सदस्य आलोचना कर रहे हैं। मुखर्जी मंजूरी से संबंधित फैसला करने से पहले विशेषज्ञों से कानूनी राय ले सकते हैं।

संविधान के तहत, राष्ट्रपति के लिए अध्यादेश को मंजूरी देने से पहले उपस्थित परिस्थितियों से संतुष्ट होना जरूरी है। राष्ट्रपति पुनर्विचार के लिए अध्यादेश को सरकार के पास भेज सकते हैं लेकिन फिर उन्हें इस पुनर्विचार के बाद सरकार द्वारा दी गई सलाह के अनुसार कदम उठाना होगा। सरकार ने राष्ट्रपति के साथ मंत्रियों के विचार-विमर्श के बारे में कुछ भी आधिकारिक रूप से नहीं कहा है। लेकिन माना जा रहा है कि सरकार ने इसके महत्व के बारे में जानकारी दी। सरकारी सूत्रों ने कहा कि इस मुद्दे पर संसद में एक विधेयक लंबित है और चूंकि यह मानसून सत्र में पारित नहीं हो सका, सरकार को इस अध्यादेश को तत्काल लाना पड़ा।

राष्ट्रपति के साथ मंत्रियों की बैठक से पहले लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा के उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति से मुलाकात करके उनसे अध्यादेश को पुनर्विचार के लिए सरकार के पास भेजने का अनुरोध किया क्योंकि उसके अनुसार यह असंवैधानिक और अनैतिक है।

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