- 2012-13 सत्र के उत्तीर्ण छात्र हैं प्रतीक्षारत और नए सत्र के परीक्षा की घोषणा
- पारदर्शिता का अभाव, बैंक पीओ भर्ती के लिए आयोजित परीक्षा(पीओ-2) में घोर अनियमितता
आईबीपीएस अपनी स्थापना से ही विवादों में है । इस संस्था में हमेशा से पारदर्शिता का अभाव रहा है। कुछ दिन पहले ही बैंक पीओ भर्ती संबंधी अपने विवादास्पद शैक्षणिक अर्हता संबंधी मानदंडों हेतु इसे घोर विरोध का सामना करना पड़ा तथा इसे अपनी इस निर्णय से भी पीछे हटना पड़ा । आईबीपीएस द्वारा आयोजित 2012-13 सत्र के लिए परिविक्षन पदाधिकारी (पीओ) भर्ती परीक्षा में एक तरफ जहां सभी सफल उम्मीदवारों को अभी तक नौकरी नहीं मिली है तो दूसरी तरफ पीओ -3 के लिए आवेदन पत्र भरे जा चुके हैं । आईबीपीएस-2 के प्रतीक्षित उम्मीदवारों को पी चिदंबरम के उस बयान से कुछ उम्मीद की कुछ किरणें नजर आयी थी जिसमें उन्होंने 2013-14 वित्तीय वर्ष में बैंकिंग क्षेत्र में 50,000 नए भर्ती की बात कहा था लेकिन आईबीपीएस द्वारा नई भर्ती द्वारा इन पदों को भरने की बात कि गयी(यदि रिक्तियां उपलब्ध हुई तो) जो कि आईबीपीएस-2 के सफल प्रतीक्षित उम्मीदवारों के लिए अन्याय होगा क्यूंकी इनकी वैद्यता आईबीपीएस के अनुसार 31 मार्च 2014 तक है । ज्ञातव्य हो कि आईबीपीएस द्वारा एक ही प्रश्न के उत्तर अलग-अलग उम्मीदवारों को भिन्न-भिन्न जवाब दिया जाता है और प्रश्न का जवाब भी घुमा फिराकर दिया जाता है । सबसे दिलचस्प बात तो यह है की यह संस्था पूर्ण रूप से निजी है और कोई भी जानकारी देने से कतरा रही है क्योंकि यह संस्था सूचना के अधिकार कानून के तहत नहीं आती है जबकि उम्मीदवारों से परीक्षा शुल्क के नाम पर मोटे रकम वसूलती है । हजारों हजार सफल उम्मीदवार अपनी भविष्य को लेकर चिंतित है क्यूंकी लगभग 1 वर्ष बीत जाने के बाद भी उन्हें सिर्फ और सिर्फ अंधेरे में रखा गया है । उनमें से बहुत से उम्मीदवार जिनके लिए ये अंतिम प्रयास था ख़ासे चिंतित हैं क्यूंकी यह शायद देश में पहला मामला होगा जब उम्मीदवार को नौकरी हेतु सफल करार तो दे दिया जाता है किंतु नौकरी नहीं दी जाती और पूछने पर ई-मेल द्वारा आईबीपीएस द्वारा यह जवाब दिया जाता है कि सफल होना नौकरी की गारंटी नहीं है ।
अगर प्रतियोगिता परीक्षा में सफल होना नौकरी की गारंटी नहीं है तो सफल घोषित ही नहीं करना चाहिए । इस मामले की जाँच होनी चाहिए जिससे सारा माजरा लोगों के सामने आ जाए । आईबीपीएस द्वारा चुप्पी इस मामले को जहां गंभीर बनाता है वहीं सरकार द्वारा भी कुछ भी आश्वासन नहीं दिया जा रहा है और शायद इस पर उनका ध्यान भी नहीं होगा । उम्मीदवार सभी संबंधित अधिकारियों/मंत्रालयों को पत्र लिख रहे हैं लेकिन इसका कुछ भी जबाव नहीं दिया जा रहा है। अलग-अलग बैंकों द्वारा भी सूचना के तहत मांगे गए जानकारी का जवाब भी संतोषप्रद नहीं है । बहुत वर्ष पूर्व बीएसआरबी के विघटन के बाद जब आईबीपीएस का कुछ वर्ष पूर्व में गठन हुआ तो लोग काफी प्रशन्नता महसूस कर रहे थे जबकि अब अनुभव के आधार पर लोग यही कह रहे हैं की इसे अब बंद कर देना चाहिए क्यूंकी पारदर्शिता के बजाए यह नित्य नए विवादों को जन्म दे रहा है । देश के भिन्न – भिन्न भागों में पीओ-2 के प्रतीक्षित उम्मीदवार अब इस मामले को न्यायालय में ले जाने के लिए लामबंद हो गए हैं ।
ज्ञात हो की सफल उम्मीदवारों को जब पीओ-2 के बाद बैंक आबंटित किए गए तो इसके प्रति भी काफी संदेह हुई और विरोध के बाद एक दिन बाद ही आईबीपीएस ने आबंटन को रद्द कर पुनः आबंटन किया । इसमें शक नहीं है की आईबीपीएस द्वारा एकतरफा निर्णय और रहस्यमयात्मक रूप से मानदंडों का प्रयोग इसके प्रति लोगों में काफी आक्रोश और संदेह पैदा कर रहा है । कुछ लोगों का तो यहां तक मानना है कि अगर आईबीपीएस के खिलाफ जाँच हुई तो देश के सामने हरियाणा शिक्षक घोटाले से भी बड़ा घोटाला सामने आएगा । देश के बहुत सारे अखबारों ने इसके बारे में बहुत कुछ छापा है अब समय आ गया है कि आईबीपीएस सामने आकर सभी प्रश्नों का जवाब दे कि किस आधार पर इतनी बड़ी संख्या में इतने उम्मीदवारों को प्रतीक्षा-सूची में रखा गया है । मेधा सूची अभी तक क्यूं नहीं प्रकाशित किया है तथा किस सिद्धांत को अपनाते हुए विभिन्न वर्गों के उम्मीदवारों को अंतिम रूप से भर्ती हेतु सफल घोषित किया गया तथा ऐसा करने के लिए कौन से मापदंड निर्धारित किए गए । आईबीपीएस को कोई हक नहीं है कि उम्मीदवारों के भविष्य के साथ खेले । वित्त मंत्रालय को भी इस संबंध में स्पष्टीकरण देना चाहिए क्यूंकी नौकरी की उम्मीद लगाए बेचारे छात्र जाएं तो जाएं कहां ।

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