व्यंग्य : अमीरजादे कभी बूढ़े होते हैं क्या...!! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 7 अक्तूबर 2013

व्यंग्य : अमीरजादे कभी बूढ़े होते हैं क्या...!!

sanjay manyataअपने देश में बात - बेबात विवाद- बहसें होती ही रहती है। इसके कई विषय हो सकते हैं। मसलन देवालय या शौचालय। मोदी या राहुल... या फिर सचिन तेंदुलकर  क्रिकेट से संन्यास लें या नहीं। अब ताजा बहस देश के युवराज राहुल गांधी  द्वारा विवादित अध्यादेश को बकवास करार दिए जाने पर हो रही है। जबकि युवराज ने अपने किए पर शर्मिंदगी जाहिर कर दी है। उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि अभी उनकी उम्र महज 45 साल के आस - पास है। इस लिहाज से वे युवा अथवा बच्चे हैं, लिहाजा उनसे गलती स्वाभाविक है, तो अब इस पर भी बहस शुरू हो गई है कि क्या 40 से ऊपर की उम्र वाले व्यक्ति को बच्चा या युवा समझा जाए। 

saif kareenaअब ऐसे लोगों को कैसे समझाया जाए कि अमीरजादे कभी बूढ़े होते ही नहीं। वे जवान रहने तक बच्चे और बूढ़े होने तक जवान रहते हैं।ईश्वर ने इसके बाद की कोई अवस्था बनाई ही नहीं, तो यह उनकी गलती है। गरीबों की बात अलग है। गरीब का बच्चा तो बचपन पूरा कर सीधे बुढ़ापे में प्रवेश करता है। अमीरजादे कभी बूढ़े नहीं होते। इसके कई उदाहरण आपको मिल जाएंगे। फिल्म व राजनीति जगत की महान हस्ती स्व. सुनील दत्त पुत्र संजय  ने 33 साल की उम्र में घर में अवैध हथियार रखने की गलती कर दी। क्योंकि उस समय वे नादान बच्चे थे। महान कांग्रेसी दिग्विजय सिंह ने खुद इसकी पुष्टि करते हुए उन्हें तत्कालीन बच्चा करारा दिया था। सयानी बेटी की शादी की चिंता छोड़ संजय ने मान्यता से पांचवी या छठी शादी रचाई तो इसलिए कि वे कोई बूढ़े नहीं हो गए। अपने देश में ऐसे ढेरों उदाहरण है। 

फिल्म जगत के अपने दबंग सलमान खान ने राजस्थान में काला हिरण मारा, तो महज इसलिए कि वे नादान थे। अमीर खान और सैफ अली खान ने अधेड़ावस्था में बड़े होते बच्चों की मांओं को घर से खदेड़ कर नई -नवेली ले आए, तो इसलिए क्योंकि अभी वे बच्चे या बूढ़े हैं। उनका ऐसा करना बनता है। वे कोई गरीब - गुरबा की संतान तो हैं नहीं कि बचपन की दहलीज लांघने के दौर में ही घर - परिवार की चिंता में बूढ़ों को भी मात देने लगे। इसलिए नागरिक समाज के लिए यही उचित है कि ऐसे मसलों को बहस का विषय बनाना ही नहीं चाहिए। ऐसी गुस्ताखियों पर बस यही सोचना चाहिए--- अमीरजादे कभी बूढ़े होते हैं क्या ...








तारकेश कुमार ओझा, 
खड़गपुर ( प शिचम बंगाल) 
जिला पशिचम मेदिनीपुर
लेखक दैनिक जागरण से जुड़े हैं।