सरकारी उपक्रम को स्वायत्तता देने की जरूरत: मनमोहन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 21 नवंबर 2013

सरकारी उपक्रम को स्वायत्तता देने की जरूरत: मनमोहन

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनाने की अपील करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिह ने आज कहा कि सरकारी कंपनियों को कामकाज में ज्यादा स्वायत्तता देने और नौकरशाही के नियंत्रण से मुक्त करने की जरूरत है। साथ ही इन्हें निजी क्षेत्र की प्रतिस्पर्धा से बचाने की जरूरत नहीं है।
    
सिंह ने कहा कि आने वाले दिनों में हमारी सरकारों को ज्यादा से ज्यादा प्रतिस्पर्धा-निष्पक्ष नीतियां अपनानी होंगी। निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा के लिए आवश्यक है कि सरकार निजी क्षेत्र के मुकाबले अपने कारोबार को बेजा फायदा पहुंचाने के लिए वैधानिक और राजकोषीय शक्तियों का उपयोग नहीं करेगी।
    
ब्रिक्स अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा सम्मेलन में यहां सिंह ने कहा इसका समाधान सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को कामकाज में ज्यादा स्वायत्तता देने और नौकरशाही के नियंत्रण से मुक्त करने में है न कि उनकी प्रतिस्पर्धा में ढिलाई को बर्दाश्त करने और फिर उन्हें प्रतिस्पर्धा से बचाने में है। ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) के प्रतिस्पर्धा रोधी नियामक प्राधिकार के अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा सिंह ने कहा कि सार्वजनिक खरीद बाजार के प्रतिस्पर्धी होने से गड़बड़ी करना मुश्किल होगा।
    
प्रधानमंत्री ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों या सरकारी कंपनियों को लंबे समय तक सीमित (केप्टिव) बाजार मिला। उन्होंने कहा कि ऐसी इकाइयों में सरकार के स्वामित्व का यह मतलब नहीं कि इन उपक्रमों का प्रतिस्पर्धा से बचाव होगा।मनमोहन सिंह ने कहा प्रतिस्पर्धी कानून के लागू करने और खरीद के लिए बाजार को उदार बनाने के बीच पूरकता को पहचानने की जरूरत है। प्रधानमंत्री ने कहा कि सार्वजनिक खरीद राजकीय खर्च का उल्लेखनीय हिस्सा है। उन्होंने कहा कि प्रतिस्पर्धी खरीद बाजार से बहुमूल्य राजकोषीय संसाधन बचाने में मदद मिल सकती है।
    
मनमोहन सिंह ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को प्रतिस्पर्धा के दायरे में लाना महत्वपूर्ण मुद्दा है। उन्होंने कहा सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों पर सरकार का स्वामित्व हो सकता है और वह स्वामित्व के सामान्य अधिकारों का उपयोग कर सकती है। इसका यह मतलब नहीं है कि उसे कंपनी का प्रतिस्पर्धा से भी बचाव करना चाहिए।
    
पांच देशों के इस समूह के बारे में सिंह ने कहा कि ब्रिक्स देशों की कुल आबादी तीन अरब है। इनका कुल सकल घरेलू उत्पाद 14,000 अरब डॉलर है और इनके पास 4,000 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है। उन्होंने कहा कि प्रतिस्पर्धा प्राधिकार, परिपक्व और नई प्रतिस्पर्धा इकाइयों के बीच के अंतराल को पाटने की आदर्श स्थिति में हैं।

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