विशेष : इस कसाब पर क्यों खामोश...!! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


रविवार, 15 दिसंबर 2013

विशेष : इस कसाब पर क्यों खामोश...!!

bangaladesh terror
यह विडंबना ही है देश के नागरिक समाज व मीडिया में जितना महत्व मिस्त्र के तहरीर चौक में चले आंदोलन को मिला, उसका एक अंश भी विगत वर्ष पड़ोसी देश बंगलादेश की राजधानी ढाका के शाहबाग स्कवायर में कट्टरपंथियों के खिलाफ स्थानीय निवासियों द्वारा लगातार कई दिनों तक किए गए आंदोलन को नहीं मिला। जब कि पड़ोस में होने और जटिल राजनयिक व कूटनीतिक परिस्थितियों के चलते ढाका के शाहबाग आंदोलन का महत्व हमारे देश के लिए कहीं अधिक सामयिक, महत्वपूर्ण व अर्थपूर्ण  था। मुझे याद है कि जब  यह आंदोलन चल रहा था, तब सांप्रदायिकता व कथित धर्म निरपेक्षता की जुगाली करने वाले किसी भी राजनैतिक दल ने इसकी चर्चा तक नहीं की। किसी राष्ट्रीय चैनल पर भी इस खबर की चर्चा नहीं हुई। 

केवल एक बंगला चैनल ने शाहबाग स्कवायर में चले अनवरत आंदोलन का न सिर्फ उचित कवरेज किया, बल्कि बुद्धिजीवियों को लेकर इस पर बहस भी कराई। दरअसल बंगलादेश की राजधानी ढाका के शाहबाग स्कवायर में धरने पर बैठे नागरिक 1971 के मुक्ति आंदोलन के दौरान पाकिस्तान का साथ देने वाले और मुक्ति योद्धाओं के साथ पाशविक अत्याचार करने वाले कट्टरपंथियों को सजा देने की मांग कर रहे थे। कदाचित इसी आंदोलन के चलते विगत 12 दिसंबर को कट्टरपंथी  नेता कादिर मुल्ला को फांसी हुई। भारत के अजमल कसाब की तरह ही कादिर मुल्ला को भी अत्यंत गुपचुप तरीके से फांसी पर लटकाया गया। क्योंकि इसे लेकर देश में बवाल की आशंका थी। बवाल हो भी रहे हैं। फांसी के बाद अब तक हुई हिंसा में पांच लोगों की मौत हो चुकी है। मुल्ला को फांसी की सजा सुनाने वाले न्यायधीशों तक को धमकियां दी जा रही है। वैसे  बंगलादेश के कादिर मुल्ला के कारनामे हमारे देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर हमला करने वाले अजमल कसाब से ज्यादा अमानवीय रहे। बंगलादेश में मीरपुर का कसाई कहे जाने वाले कादिर मुल्ला पर 1971 के बंगलादेश मुक्ति आंदोलन के दौरान पाकिस्तानी सेना का साथ देते हुए हजारों आजादी समर्थक खास कर अल्पसंख्यक हिंदुओं को लगातार कई दिनों तक बंधक बनाए रख कर अमानवीय यातनाएं देने के बाद हत्या करने का आरोप था। 

कहा जाता है कि कादिर मुल्ला के नेतृत्व में बंगलादेश के कट्टरपंथियों ने असंख्य महिलाओं के साथ बलात्कार तो किया ही, किशोर से लेकर वृद्ध तक उसकी क्रूरता का शिकार होकर  असमय ही मौत के मुंह में चले गए। कट्टरपंथियों के चंगुल में छटपटा रहे बंगलादेश के नागरिक समाज से ही यदि मानवता के ऐसे मुजरिम को सजा देने की मांग उठती है, और  आंदोलन होता है, तो यह भारत के लिए अत्यधिक अर्थ पूर्ण है। क्योंकि चरमपंथियों के चलते बंगलादेश से भारत को पाकिस्तान के बनिस्बत कहीं ज्यादा खतरा है। लेकिन अफसोस कि इतने महत्वपूर्ण मसले व घटनाक्रम को देश के नागरिक समाज व मीडिया में उचित महत्व नहीं मिला। 



तारकेश कुमार ओझा, 
खड़गपुर ( पशिचम बंगाल) 
संपर्कः 09434453934
लेखक दैनिक जागरण से जुड़े हैं। 

कोई टिप्पणी नहीं: