पुस्तक समीक्षा : गहरी सर्जनात्मकता से लैस जाबिर हुसेन की कथा-डायरी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 14 मार्च 2014

पुस्तक समीक्षा : गहरी सर्जनात्मकता से लैस जाबिर हुसेन की कथा-डायरी

  • किताब के बहाने


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'ये शहर लगै मोहे बन' ( प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, १-बी, नेताजी सुभाष मार्ग, दरियागंज, नई दिल्ली-११०००२/ पहला संस्करण : २०१४/ मूल्य : ₹३००) बहचुर्चित साहित्यकार जाबिर हुसेन की लंबी कथा-डायरी है। इस कथा-डायरी का प्रकाशन एक सुखद साहित्यिक घटना की तरह है। जाबिर हुसेन की कथा-डायरी-परंपरा में 'ये शहर लगै मोहे बन' एक असाधारण बदलाव लाती दिखाई देती है। इस कथा-डायरी में जो कुछ भी उदघाटित हुआ है, विलक्षण है, अदभुत है, रहस्य-रोमांच से भरा है। इस कथा-डायरी में जो सामाजिक जीवन उभरकर सामने आया है, अवतरित हुआ है, वह वैविध्य है और व्यापक भी। इस कथा-डायरी के माध्यम से जाबिर हुसेन अपनी एक नई तहरीर, एक नई भाषा के साथ विश्व-साहित्य को समृद्ध और विस्तीर्ण करते दिखाई देते हैं। 

इस कथा-डायरी में बाईस क़िस्तें हैं और सारी क़िसतें अपने पाठ के समय यह एहसास दिलाती हैं कि पाठक एक ऐसे धारावाहिक से गुज़र रहा हैं, जो उसे निरंतर बांधे रखता है। इस कथा-डायरी में जो सबसे ख़ास है, वह यह कि इसमें जो अनुभूतियां हैं, इसका जो विस्तृत संसार है, इसका जो यथार्थ है बेहद सर्जनात्मक है और पाठकों को उस तहज़ीब से, उस संस्कृति से यह किताब जोड़ती है, जो लेखक का अपना अतीत रहा है। 

मेरे विचार से, दिल को छू लेने वाली इस लंबी कथा-डायरी-पुस्तक 'ये शहर लगै मोहे बन' से पाठकों कों ज़रूर रू-ब-रू हपना चाहिए।




--- शहंशाह आलम---

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