जम्मू एवं कष्मीर में ठंड के दिनों में बहुत से सारे प्रवासी पक्षी आकर अपना डेरा जमा लेते हैं। जम्मू के घराना वेटलैंड रिज़र्व में भी नवम्बर आते ही प्रवासी पक्षियों की चहचहाहट सुनाई देने लगती है। यह प्रवासी पक्षी यहां फरवरी के आखिर तक रहते हैं। एक तरफ जहां इन पक्षियों की चहचहाहट से वातावरण खुषनुमा हो जाता है, वहीं दूसरी ओर यहां के किसानों के लिए यह प्रवासी पक्षी आफत बनकर आते हैं। यह प्रवासी पक्षी किसानों की फसल को पूरी तरह बर्बाद कर देते हैं। इस इलाके में तकरीबन दो सौ परिवार हैं और खेतीबाड़ी ही इन लोगों की रोज़ी रोटी का एक अहम ज़रिया है। लेकिन जिस ज़मीन पर यह परिवार खेती करते हैं, यह ज़मीन इन प्रवासी पक्षियों की दृश्ट्रि से भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। इस ज़मीन को सन् 1978 में जम्मू कष्मीर वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत वन्यजीव विभाग की ओर से आर्द्रभूमि संरक्षण रिज़र्व बनाने के अंर्तगत लाया गया था। इस इलाके के स्थानीय निवासी सोमा राम का कहना है कि पहले घराना वेटलैंड रिज़र्व में सिर्फ स्थानीय पक्षियों का जमावड़ा हुआ करता था, मगर पिछले दस सालों से यहां राजहंस का आना जारी है। यह राजहंस गेहंू की फसल के लिए किसी आपदा से कम नहीं हैं। राजहंस झुंड में चरते हैं जिसकी वजह से पूरी की पूरी फसल बर्बाद हो जाती है। उन्होंने यह भी बताया कि घराना वेटलैंड का इलाका कुछ ही मीटर तक फैला हुआ है, जबकि राजस्व विभाग का दावा है कि किसानों के ज़रिए घराना वेटलैंड की ज़मीन का अतिक्रमण किया गया है।
घराना वेटलैंड को विकसित करने के 200 एकड़ ज़मीन की ज़रूरत है। अगर विभाग ऐसा करता है तो किसानों से उनकी ज़मीन छीन जाएगी और वह दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज हो जाएंगे। इसके विपरीत इस इलाके के रहने वाले जगदीष राज जिनके पास अपनी चार एकड़ ज़मीन है, कहते हैं ,’’हम फसल उगाने पर काफी पैसा खर्च करते हैं, मगर राजहंस हर साल फसल को कुछ ही पल में तहस नहस कर देते हैं। इसकी जानकारी वन्यजीव विभाग को भी है। लेकिन विभाग की ओर से हमें किसी तरह का कोई मुआवज़ा नहीं दिया जाता। इसके अलावा अगर वन्यजीव विभाग घराना वेटलैंड को विकसित करने के लिए किसानों से ज़मीन ले लेता है तो उसके बदले किसानों को मामूली मुआवज़े के सिवा कुछ हाथ नहीं आएगा।’’ इस समस्या के बारे में गांव के एक नौजवान का कहना कि हम हर साल प्रवासी पक्षियों को खेतों से भगाने के लिए पटाखों के लिए पैसा इकठ्ा करते हैं। हमारे गांव की ज़्यादातर गलीयां कच्ची हैं। अगर सरकार किसानों के सामने यह षर्त रख दंे कि घराना वेटलैंड की ज़मीन को खाली करने के बदले में सारी गलियां पक्की कर दी जाएंगी तो षायद सबका जबाब न में ही होगा। इस बारे में सारे लोगों का यही जबाब होगा कि यह ज़मीन बहुत उनजाऊ है और यहां बासमती चावल की अच्छी पैदावार होती है।
वन्यजीव विभाग के अधिकारी भी इस समस्या का निपटारा करने में असफल रहे। इनका कहना है कि हमने जब भी किसानों से ज़मीन को खाली करने के लिए कहा तो हमें कई बार किसानों के गुस्से का सामना करना पड़ा। कुछ किसान ज़मीन खाली करने को राज़ी हो गयी थे क्योंकि सरकार ने पास के गांव चकरोई में ज़मीन देने के लिए कहा था। अगर सरकार इन किसानों को ज़मीन दे देती तो इस समस्या का निपटारा आसानी से हो जाता। राजस्व विभाग के अनुसार इस वक्त घराना वेटलैंड रिज़र्व का रक्बा 0.75 किलोमीटर है। 1978 में राज्य सरकार ने घराना वेटलेंड की हदबंदी 200 एकड़ करना प्रस्तावित किया था। लेकिन 35 वर्श बाद भी इसका रक्बा नहीं बढ़ाया जा सकता है। वन्यजीव विभाग के अधिकारियों के मुताबिक पहले आद्रभूमि का जलस्तर 5 से 6 फीट नीचे था, मगर मिट्टी के कटाव की वजह से अब जलस्तर 2 से 3 फीट नीचे ही है। साथ ही साथ मिट्टी के कटाव होने की वजह आद्रभूमि के सिरों पर मिट्टी के जमा होने से उपजाऊ ज़मीन का रक्बा बढ़ गया है। किसानों के ज़रिए उपजाऊ भूमि का अतिक्रमण कर लिया गया। इसी वजह से घराना वेटलैंड के रक्बे में कमी आती जा रही है। देष के दूसरे हिस्सों में किसी अनहोनी की वजह से खेती को नुकसान होने पर मुआवज़ा दिया जाता है और इसके लिए इंटीग्रेटेड वाइल्ड लाइफ हेबीटेट मैंनेजमेंट स्कीम के तहत फंड भी आवंटित होता है। लेकिन यहां के किसानों के मुताबिक उन्हें अभी तक किसी तरह का कोई मुआवज़ा नहीं दिया गया है। इस समस्या के बारे में जम्मू यूनिवर्सिटी के प्राणि विज्ञान विभाग में रिसर्च स्कालर आषिमा एनथल कहती हैं ,’’ घराना वेटलैंड अलग अलग प्रजाति के घरेलू और प्रवासी पक्षियों के लिए एक उचित स्थान रहा है। किसान घराना वेटलैंड को विकसित करने का विरोध करते आए हैं। इसकी वजह से घराना वेटलैंड का क्षेत्र घटता जा रहा है। जि़ला सांभा की मानसर झील जम्मू प्रांत की सबसे बड़ी झील है। पर्यटन के नज़रिए से देखते हुए इस झील को मानसर डेवलपमेंट आॅथोरिटी के ज़रिए विकसित किया गया था। मानसर झील में सर्दी का मौसम षुरू होते ही यहां पक्षियों की 15 प्रजातियां देखने को मिल जाती थीं। मगर झील के किनारों को सीमेंटेड किए जाने के बाद से सिर्फ सर्दियों के दिनों में यहां पक्षियों की 4 या 5 प्रजातियां ही देखने को मिलती हैं। इसके विपरीत घराना वेटलैंड रिज़र्व में सर्दियों के दिनों में आने वाले पक्षियों की प्रजातियों में लगातार इज़ाफा होता जा रहा है। ऐसे में घराना वेटलैंड को विकसित किया जाना इंतेहाई ज़रूरी है।
इसी समस्या पर अपनी राय रखते हुए भूतपूर्व वाइल्ड लाइफ वार्डन ताहिर षावाल कहते हैं कि कुछ किसानों ने घराना वैटलैंड की ज़मीन का अतिक्रमण कर लिया है जिसे अब वह अपनी ज़मीन बता रहे हैं, जबकि यह सरकारी संपत्ति है। इस समस्या का जल्द से जल्द समाधान किया जाना बहुत ज़रूरी है क्योंकि यह समस्या स्थानीय किसानों की रोज़ी रोटी और प्रवासी पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों के आगमन से जुड़ी हुई है। यह समस्या एक अनसुलझी पहेली की तरह हो चुकी है। इस समस्या के समाधान के लिए वन्यजीव विभाग के अधिकारियों को किसानों को विष्वास में लेना होगा। किसानों को विष्वास में लिए बगैर इस समस्या का समाधान निकलना काफी मुष्किल है। कोई ऐसा रास्ता ढूढ़ना होगा जिससे किसानों का भी काम हो जाए और घराना वेटलैंड आने वाले प्रवासी पक्षियों की तादाद में भी कोई कमी न आए।
अक्षय आज़ाद
(चरखा फीचर्स)

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