बनारस के बुनकरों को 'अच्छे दिन' की आस - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 31 मई 2014

बनारस के बुनकरों को 'अच्छे दिन' की आस

banaras handicraft
देश की सांस्कृतिक राजधानी और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र बन चुके बनारस (वाराणसी) के बुनकरों को अच्छे दिन आने की आस है। रेशमी साड़ियां बुनने वाले प्रधानमंत्री से मिलकर अपनी समस्याएं हल करना चाहते हैं। मोदी ने लोकसभा की वाराणसी सीट अपने पास रखी है। इससे बुनकरों को पक्का यकीन हो गया है कि उनकी सुध अब जरूर ली जाएगी। इस बीच पूर्व विधायक झुल्लन साहू के पुत्र और मोदी के करीबी श्याम सुंदर और हाल ही में भाजपा में शामिल हुए फिरोज खां मुन्ना ने प्रधानमंत्री के दूत के रूप में बुनकरों के सरदार मकबूल हसन से मुलाकात की है। बताया जा रहा है कि अब जल्द ही बुनकरों का एक प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री से मुलाकात करने दिल्ली जाएगा।

बुनकरों के सामने सबसे बड़ी समस्या है नकली रेशमी साड़ियों का कारोबार का बढ़ना। वाराणसी में हर साल लगभग 400 करोड़ रुपये की नकली रेशमी साड़ियों का कारोबार होता है। गुजरात में पॉलिएस्टर यार्न से बनने वाली ये सस्ती साड़ियां यहां के बुनकरों की कड़ी मशक्कत पर पानी फेर रही हैं। असली बनारसी सिल्क काफी महंगा पड़ता है। इसलिए बाजार नकली रेशमी साड़ियां ज्यादा बिकती हैं। केंद्रीय सिल्क बोर्ड के मुताबिक, बनारस में हर साल लगभग 500 करोड़ रुपये की रेशमी साड़ियों का कारोबार होता है, जिसमें करीब 400 करोड़ रुपये का कारोबार सिर्फ नकली साड़ियों का होता है। इस तरह की साड़ियों पर मौलिक सिल्क-मार्क नहीं लगाए जाते हैं। 

सिल्क बोर्ड के अफसरों का कहना है कि यहां के कारोबारी खासकर विदेशी क्रेताओं को शिकार बनाते हैं, जो असली-नकली की पहचान नहीं कर पाते। उन्हें सस्ते में मन माफिक रेशमी (नकली) उत्पाद मिल जाते हैं तो वे महंगी असली बनारसी साड़ियां भला क्यों लेंगे। दूसरी बात कि चीन के रेशमी उत्पादों की मांग एशियाई और यूरोपीय बाजारों में लगातार बढ़ रही है। ऐसे में यहां के बुनकरों को भी हाईटेक होना पड़ेगा, ताकि वे विदेशी माल का मुकाबला कर सकें।

बोर्ड के मुताबिक, वह बनारसी साड़ियों के बड़े कारोबारियों को रियायती दर पर एक हाईटेक क्वालिटी कंट्रोल मशीन उपलब्ध करा रहा है। लगभग 6000 रुपये की मशीन के लिए 50 फीसद सब्सिडी के साथ 3000 रुपये ही भुगतान करने हैं। लेकिन स्थानीय कारोबारी इस हाईटेक मशीन में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं।  गौरतलब है कि वैश्विक बाजारीकरण के अस्तित्व में आने के पहले ही बनारसी साड़ी एक अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड के रूप में स्थापित था। इसकी मांग श्रीलंका, नेपाल, मालदीव, मॉरीशस सहित अन्य देशों में अधिक है। देश के करोड़ों लोगों के लिए बनारसी साड़ी आज भी सामाजिक स्टेटस व वैवाहिक संस्कार का अनिवार्य हिस्सा है। 

सिल्क बोर्ड के अफसरों का कहना है कि नकली साड़ियों के कारोबार के चलते विश्व में बनारसी साड़ियों की मांग कम हो रही है। इसके चलते बुनकरों के हाथों से उनका पुश्तैनी काम भी छिन रहा है। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी ने जब बुनकरों की समस्याओं के समाधान करने में दिलचस्पी दिखाई है तब बुनकरों और साड़ी कारोबारियों में नई उम्मीद जगी है। मोदी की ओर से भेजे गए श्याम सुंदर और फिरोज खां मुन्ना से मुलाकात करने वाले बिरादराना तंजीम चौदहों के सरदार मकबूल हसन का कहना है कि बुनकरों को उनका हक मिले और रोजी-रोटी सही तरीके से चल सके तो उन्हें और क्या चाहिए। अगर प्रधानमंत्री बुनकरों से मिलना चाहते हैं तो बुनकर भी उनकी इस दरियादिली का खुले दिल से स्वागत करते हैं। 

उन्होंने बताया कि जल्द ही सभी तंजीमों के सरदारों के साथ बैठक कर दिल्ली में प्रधानमंत्री से मुलाकात करने पर चर्चा होगी। वहीं सूत्रों का कहना है कि बुनकर प्रधानमंत्री से गुजरात में चल रहे रेट के आधार पर यहां भी पॉलिस्टर यार्न और सस्ता रेशम उपलब्ध कराने की मांग रख सकते हैं, ताकि बंद पड़े करघे फिर शुरू हो सकें।

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