विशेष आलेख : पुलिस की निरीहता से अपराधियों के हौंसले बुलन्द - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 10 जून 2014

विशेष आलेख : पुलिस की निरीहता से अपराधियों के हौंसले बुलन्द

देश मे शनैः शनैः आपराधिक प्रवृत्ति का विस्तार होता जा रहा है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड की तर्ज पर  देश के अन्य राज्य भी इससे अछूता नहीं है। अपराधी को अपराध करने मे कानून और पकड़े जाने का भय क्षींण हो रहा है। पुलिस की कार्यशैली ऐसी बन चुकी है कि गुंण्डे और अपराधियों से सामन्जस्य बना कर रखो तथा किसी भी तरह से समय व्यतीत करो और अपने निजी लाभ पर गिद्ध दृष्टि बनाये रखो। कभी कभार तो यह भी प्रकट होने लगता है कि शरीफ और इज्जतदार व्यक्ति की अहमियत पुलिस के समक्ष नागण्य है और गुण्डे व बदमाश को महत्व दिया जाने लगा है। शरीफ और इज्जतदार व्यक्ति के लिये तो समस्या यह भी है कि उसकी एफ.आई.आर. पुलिस थानों मे लिखा जाना मुश्किल कार्य हो गया है। अधिकांश शिकायतें ऐसी भी हैं कि पुलिस द्वारा एफ.आई.आर. फरियादी के बताये अनुसार सही-सही नहीं लिखी जाती है और बाद मे उसकी शिकायतें अधिकारियों को की जातीं हैं। मध्य प्रदेश के चम्बल एवं ग्वालियर संभाग मे अपराधियों सर्वाधिक हौंसले बुलन्द हैं। चम्बल संभाग के आधीन दतिया जिला मे लगातार ऐसी वारदातें हो रहीं हैं जिससे पुलिस अधिकारियों का मनोबल टूट रहा है। पुलिस पर अपराधी हावी हो चुके हैं। 

गत कुछ माह पूर्व दतिया रेल्वे क्रोसिंग के पास स्थित ट्रेफिक पुलिस चैकी पर हथियारों से लैस दबंगों ने लगभग 20 मिनिट तक कट्टा बंदूकों से फायरिंग करते हुये क्षेत्र मे आतंक का माहौल बनाया था। ट्रैफिक चैकी पर आरक्षक दुबक कर अपनी जान बचाते रहे और इस घटना के अपराधियों को पुलिस गिरफ्तार करने मे नाकाम रही। जबकि इसी स्थल से लगभग एक फलांग की दूरी पर पुलिस लाईन और दो फलांग की दूरी पर पुलिस आधीक्षक का बंगला है। गत माह पुलिस थाना जिगना (जिला दतिया) का थाना प्रभारी सुनुकेश तिवारी अपनी मोटर सायकिल से थाना इलाके मे गश्त पर था, तभी उस पर अपराधियों ने कट्टे से फायर किये थे, सुनुकेश तिवारी घायल होकर गिर गया था और अपराधी उसकी मोटर सायकिल लूट कर ले गये थे। गत अप्रेल 2014 मे मैरिज गार्डन संचालक अशोक पटेल का थाना क्षेत्र भाण्डेर मे अपहरण हुआ था, लेकिन अपहृत का पता पुलिस दो माह तक नहीं लगा सकी। अपहृत के परिवार वाले दो माह तक परेशान रहे और स्थानीय पुलिस निरीह की स्थिति मे बनी रही। कहा जा रहा है कि अपहृत डकैतों को चकमा दे कर भाग आया है या इसके पीछे कुछ लेना-देना भी हुआ है। 

गत माह मई 2014 मे भाण्डेर का सर्राफा व्यापारी पुरूषोत्तम सोनी दतिया के लिये आ रहा था, रास्ते मे उससे अज्ञात अपराधियों ने सोना व कई लाख रूपये लूट लिये और उसकी हत्या भी कर दी थी। इन अपराधियों का पुलिस आज तक कोई पता नहीं कर सकी है। पुलिस आधीक्षक दतिया ने अपनी निरीहता और अक्षमता का प्रदर्शन अखबार मे इस सूचना के प्रकाशित करते हुये प्रकट किया है कि जो भी व्यक्ति अज्ञात आरोपियों को विधि संगत तरीके से गिरफ्तारी कराने मे मदद करेगा, उसे 5000/- रूपये इनाम के तौर पर दिये जायेंगे। पुलिस आधीक्षक की ऐसी हास्यास्पद जारी हुई सूचना के कारण समूचे क्षेत्र मे मजाक बनाया जा रहा है। प्रथमतः तो यह, कि कौन से अज्ञात अपराधी को जनता गिरफ्तार कराने मे मदद करे ? अपराधी का कोई नाम नहीं है, उसकी कोई पहचान नहीं है, उसका कोई निवास स्थल इंगित नहीं है, तब ऐसी स्थिति मे पुलिस आधीक्षक आर.पी. सिंह जनता से किस अपराधी को गिरफ्तार करने मे मदद की अपेक्षा रखते हैं ? द्वितीयतः संदेश यह दिया गया है कि पुलिस अब स्वयं अपराधियों को गिरफ्तार करने मे अक्षम हो चुकी है और आम जनता ही इस जिम्मेदारी को वहन करे। गत माह मई 2014 मे पुलिस थाना कोतवाली दतिया का नगर निरीक्षक आर. के. सिंह गुर्जर दतिया के घने बाजार मे जब ट्रैफिक व्यवस्था को सुचारू करने मे लगे थे उसी समय एक व्यक्ति ने उनके सिर पर डण्डा मारा, टी.आई. मौके पर ही बेहोश होकर गिर गये, अस्पताल पहुंचने पर उनके सिर मे अनेकों टांके लगे और उन्हें मेडिकल काॅलेज ग्वालियर रेफर किया गया। आश्चर्य तो यह रहा कि अपराधी पुलिस थाने के टी.आई. को मार कर चला गया और टी.आई. के साथ चलने वाला पुलिस फोर्स या तो मूक दर्शक बना रहा या वहां से भाग गया, जिसका परिणाम यह निकला कि मारने वाला अपराधी घटना स्थल से भाग गया और पुलिस उसे नहीं पकड़ पाई थी। गत माह जिला भिण्ड के एक व्यक्ति की हत्या करने के बाद उसकी लाश को दतिया सेवढ़ा मार्ग पर दो किलो-मीटर तक घसीटा गया और पुलिस को खबर तक नही मिली। ऐसे हैं हमारे समाज के अपराधियों के बुलन्द हौंसले। 

अपराधियों के द्वारा पुलिस का पिटना एक गम्भीर और चिन्ताजनक समाचार होता है। ऐसी घटनाओं से आम जनता यह सोचकर भयभीत होने लगती है कि जब पुलिस स्वयं अपनी ही सुरक्षा नहीं कर पा रही है तो जनता की सुरक्षा की जिम्मेदारी वह कैसे वहन कर सकती है। अपराधियों के द्वारा भय और आतंक का वातावरण जब निर्मित होने लगे और पुलिस उन्हें पकड़ भी नहीं पाये तो इससे गुण्डे और असमाजिक तत्वों के हौंसले बुलन्द होने लगते हैं। पुलिस का एक कार्य यह भी है कि वह समय-समय पर गुण्डों के प्रति अपनी शक्ति का प्रदर्शन करती रहे। परन्तु थाना स्तर के पुलिस वालों को अपने वरिष्ठ अधिकारी की ताकत का सहारा नहीं मिल पाता है तब ऐसी स्थिति मे पुलिस निरीह व अक्षम प्रकट होने लगती है। सच तो यह है कि राज्यों के मुख्यमन्त्रियो को भी अपने अपने प्रदेश के गृहमन्त्रियों की कार्य-शैली का आकलन समय समय पर करते रहना चाहिये। जब अक्षम अधिकारियों के स्थानान्रण किये जा सकते हैं तो इससे अक्षम मन्त्री मुक्त क्यों हैं ? ऐसा नरेन्द्र भाई मोदी की सरकार मे चलने वाला नही है और कम्पलसरी रिटायरमेन्ट के लिये ऐसे मन्त्री तैयार रहैं। देश के अभी तक के सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र भाई मोदी ने स्पष्ट एक नियम बनाया कि 75 वर्ष से अधिक वृद्ध सांसदो को मन्त्री नही बनाया जावेगा। संम्भवतः इसके पीछे का कारण यही होगा कि आयु बढ़ने के साथ कार्य-क्षमता और इच्छा-शक्ति छींण होने लगती है। यही नीति राज्य सरकारों को भी अपनानी चाहिये। 

पुलिस की संवेदनशीलता व प्रशासनिक सक्रियता का सीधा सम्बन्ध आम नागरिक से जुड़ा होता है और दिनों दिन अपराधों मे हो रही वृद्धि के साथ-साथ पुलिस की कार्य-शैली व उसकी गुंणवत्ता का भी अवमूल्यन हो रहा है। देश की राज्य सरकारें भी पुलिस की आन्तरिक अव्यवस्था से परेशान होने का रोना रोतीं हैं। गत समय पूर्व केन्द्रीय मन्त्री कमलनाथ ने एक टी.वी. चेनल पर कहा कि बाबा रामदेव जब दिल्ली मे धरना दे रहे थे तो आधी रात को दिल्ली पुलिस ने उन पर लाठी चार्ज क्यों किया था, इसका जवाब तो पुलिस ही दे सकती है। उत्तर-प्रदेश मे लगातार बढ़ रहै बलात्कार व हत्या के अपराधों को रोकने मे या तो वहां की सरकार मे इच्छा शक्ति की कमी है या पुलिस निष्किय और निरंकुश हो गई है।  सरकारें बदलतीं जातीं हैं, उनके गृह-मन्त्री बदलते रहते हैं लेकिन होता यही आया है कि तंत्र के पुर्जे व्यतीत हुए समय के बने रहते हैं और उन्हें संचालित करने वाला तथा उनसे काम लेने वाला उनका कमाण्डर अंततः हार कर बिगड़े और बीमार तंत्र के सामने स्वयं को समर्पित कर देता है और आम जन-मानस, समाज-सुधारक व मीडिया जगत से जुड़े लोग कुछ नवीन परिवर्तन की आस लगाये रहते हैं। हम इससे इन्कार नही कर सकते हैं कि पदस्थापनायें भी तो लाभ-हानि और पद के व्यवसायीकरण की कसोटी पर होने की परम्परायें प्रशासनिक और राजनीतिक स्तर पर निर्मित हो चुकीं हैं। देश में प्रत्येक स्तर पर प्रत्येक कार्य का शनैः शनैः राजनीतिकरण एवं व्यवसायीकरण होता जा रहा है। जहां राजनीति है, वहां गुट है और जहां गुट हैं, वहां विरोध व खींचतान है। अपेक्षा यह की जाती है कि पुलिस की प्रशासनिक व्यवस्था राजनीति और गुटों की ओछी मानसिकता से परे बनी रहे। लेकिन व्यवहारिक स्तर पर ऐसा सम्भव होता नही दिखता है। 

 


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---राजेन्द्र तिवारी---
अभिभाषक, छोटा बाजार दतिया
फोन- 07522-238333, 9425116738
rajendra.rt.tiwari@gmail.com
नोट:- लेखक एक वरिष्ठ अभिभाषक एवं राजनीतिक, 
सामाजिक विषयों के समालोचक हैं। 

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

I think this is good that policeman are being beaten up by criminals. Because policeman are helping in the survival of crime & criminals. Now this is the time they should have to learn the lesson from these incidences.