मोदी सरकार ने की श्रम कानूनों में बड़े बदलाव की पहल - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 1 अगस्त 2014

मोदी सरकार ने की श्रम कानूनों में बड़े बदलाव की पहल



मोदी सरकार ने श्रम सुधारों की दिशा में साहसिक पहल कर दी है। केंद्रीय कैबिनेट ने तीन अहम श्रम कानूनों से संबंधित संशोधन विधेयकों को हरी झंडी दे दी है। इनमें फैक्ट्रीज एक्ट, अप्रेंटिसशिप एक्ट तथा श्रम नियम (कुछ प्रतिष्ठानों को रिटर्न भरने तथा रजिस्टर बनाने से छूट) एक्ट शामिल हैं। श्रम मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा कि सरकार इन विधेयकों को संसद के चालू सत्र में ही पारित कराने का प्रयास करेगी।

केंद्रीय मंत्रिमंडल की ओर से बुधवार को लिए गए फैसलों के तहत फैक्ट्रीज एक्ट 1948 में सर्वाधिक संशोधन प्रस्तावित हैं। इनमें कर्मचारियों के ओवरटाइम के समय को तिमाही 50 घंटे से बढ़ाकर 100 घ्ाटे करना तथा सुरक्षा व ट्रांसपोर्ट सुविधा की शर्त पर महिलाओं की नाइट शिफ्ट पर पाबंदियों में ढील देना शामिल हैं। इसके अलावा सवेतन वार्षिक अवकाश की पात्रता को 240 दिनों से घटाकर 90 दिन करने का संशोधन भी मंजूर हुआ है। अन्य प्रस्तावों के तहत गर्भवती महिलाओं और विकलांगों को ऐसे कार्यो में लगाने की मनाही होगी, जिनमें गतिशील मशीनों का इस्तेमाल होता है। कर्मचारियों की छंटनी के मामले में उद्योगों को ज्यादा अधिकार देने से सरकार फिलहाल पीछे हट गई लगती है, क्योंकि इस पर यूनियनों से राय लेने का निर्णय किया गया है। जो सरकार के रवैये से नाराज हैं। यूनियनों ने इस मसले पर शीघ्र ही बैठक करने का निर्णय लिया है।

अप्रेंटिसशिप एक्ट 1961 में ऐसे संशोधनों को मंजूरी दी गई है, जिनसे अधिकाधिक युवाओं को प्रशिक्षित किया जा सके और कारखाना मालिकों को बेवजह परेशान न होना पड़े। इनका उद्देश्य प्रधानमंत्री मोदी के भारतीय युवाओं को विभिन्न पेशों में दक्ष बनाने के सपने को साकार करना है। इसके लिए अप्रेंटिसशिप एक्ट में 500 नए पेशे (ट्रेड)शामिल किए जाएंगे। इनमें आइटी एनेबल्ड सेवाएं भी होंगी। यही नहीं, अप्रेंटिसशिप एक्ट न लागू करने वाले फैक्ट्री मालिकों को अब गिरफ्तार या जेल में नहीं डाला जाएगा। अभी पचास फीसद प्रशिक्षुओं को काम पर रखना अनिवार्य है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आम बजट में अप्रेंटिसशिप एक्ट में संशोधन का वादा किया था। उन्होंने कहा था कि मौजूदा एक्ट युवाओं को प्रशिक्षित करने के उद्देश्य में विफल रहा है। देश में प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षण के लिए 4.90 लाख सीटें हैं। मगर केवल 2.80 लाख प्रशिक्षुओं को ही प्रशिक्षण मिल रहा है।

जहां तक श्रम नियम [कुछ प्रतिष्ठानों को रिटर्न भरने तथा रजिस्टर बनाने से छूट] अधिनियम, 1988 का सवाल है, तो इससे अति लघु व लघु इकाइयों को लाभ होगा। संशोधन के बाद 40 कर्मचारियों तक वाली फर्मे इस कानून के प्रावधानों से मुक्त हो जाएंगी। साथ ही इन फर्मो को मौजूदा नौ के बजाय 16 श्रम कानूनों की संयुक्त अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने की सहूलियत मिलेगी।

केंद्र सरकार के श्रम कानूनों में सुधार के इस कदम का देश के उद्योग संगठनों ने स्वागत किया है। इसके उलट ज्यादातर ट्रेड यूनियनों ने इसको लेकर नाराजगी जताई है। प्रमुख उद्योग चैंबर सीआइआइ के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा है कि सरकार ने जिस शीघ्रता से यह कदम उठाया है वह श्रम सुधारों को लेकर उसकी प्रतिबद्धता को दिखाता है। इसकी वजह से अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ेगी और रोजगार के मौके पैदा होंगे।प्रमुख ट्रेड यूनियन एटक के सचिव डीएल सचदेव ने खास तौर पर कथित स्त्री-पुरुष समानता के नाम पर महिलाओं को रात्रि पाली में काम करने संबंधी बदलाव की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि देश में अभी महिलाओं के रात में काम करने लायक सुरक्षित माहौल नहीं है।

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