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रविवार, 31 अगस्त 2014

आलेख : जापान संबंध भारत, को देगा नए आयाम

काफी हद तक सफल है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जापान यात्रा। भारत के साथ बेहतर संबंध जापान की एक महाशक्ति के रुप में फिर से स्थापित होने की आकांक्षा की पूर्ति और विश्वस्तर पर चीन की निरंतर बढ़ती शक्ति को संतुलित करने की दृष्टि से भी बहुत जरुरी है। क्योंकि चीन व जापान के रिश्ते तनावपूर्ण है। दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर के बारे में दोनों देशों की साझा राय शामिल हो सकती है, जो चीन को पसंद नहीं है। जापान के साथ रक्षा रिश्तों को मजबूत करने का संकल्प लेने की बात भी चीन को खटकेगा। जबकि मोदी ने दो टूक में कह दिया है कि जापान के साथ नौसैनिक रिश्ते भी प्रगाढ़ होंगे। क्योटों की आधुनिकता से काशी की विरासत को संवारने के लिए हुआ करार दोनों देशों से संबंध बेहतरी के लक्षण है। इस करार से काशीवासियों को लाभ तो मिलेगा ही, वर्षो पुरानी काशी की महत्ता में भी अब लग जायेगा चार चांद।  

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मोदी के जापान दौरे पर व्यापार, निवेश से लेकर दोस्ती में नया रंग भरने की कोशिश हो रही है। दरअसल, इस यात्रा का मुख्य मकसद भारत में बुनियादी ढ़ाचें के विस्तार की परियोजनाओं के लिए जापानी सहयोग बढ़ाने और परमाणु समझौते के साथ-साथ वैश्विक, राजनीतिक व आर्थिक परिदृश्य में अपनी उपस्थिति को सुदृढ़ करना है। वैसे भी भारत के साथ बेहतर संबंध जापान की एक महाशक्ति के रुप में फिर से स्थापित होने की आकांक्षा की पूर्ति और विश्वस्तर पर चीन की निरंतर बढ़ती शक्ति को संतुलित करने की दृष्टि से भी बहुत जरुरी है। जिसमें भारत प्रधानमंत्री अपने दौरे में सफल होते नजर आ रहे है। दौरे की सार्थक परिणाम का ही नतीजा है कि एक झटके में तीनों लोकों में न्यारी धर्म की नगरी काशी को जापान के क्योटों की तर्ज पर विकसित करने का करार हो गया। मतलब साफ है काशी ही नहीं मथुरा, गया, अमृतसर, अजमेर और कांचीपुरम जैसे कई धार्मिक शहरों के लिए भी ऐसी ही योजना हैं। ये शहर धार्मिक पर्यटन के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण हैं, मगर हाल के वर्षो में ये विकास की रफ्तार में पीछे रह गए हैं। लेकिन करार के बाद काशी भी अब दुनिया के चुनिंदा शहरों में एक होगा। हालांकि बाबा विश्वनाथ के त्रिशुल पर टिकी काशी वैसे भी पूरी दुनिया में जाना जाता रहा है, परन्तु यहां की बदहाल इंफ्रास्टक्चर इसकी साख पर पलीता लगा रहा था। पर अब ऐसा नहीं होगा। बाबा विश्वनाथ की महिमा में आड़े आ रही उबड़-खाबड़ सड़के, जाम नालिया-सीवर, अतिक्रमण, बेइंतहा बिजली कटौती जैसे समस्याओं से निजात दिलाकर एकबार फिर से काशी को हर तरह की सुविधाओं से सुसज्जित करने की तैयारी है। यह कारनामा कोई और नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करने वाले है। करेंगे भी क्यों नहीं उनका संसदीय क्षेत्र जो है काशी। 

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प्रधानमंत्री मोदी अंतराष्टीय और द्विपक्षीय मामलों में पिछली सरकार के टाल-मटोल व अनिर्णय वाले रवैये से बाहर निकलकर भारत की पहुंच और उपस्थिति को सुदृढ़ करना चाहते है। दक्षिण ऐशिया, ब्रिक्स, विश्व व्यापार संगठन को लेकर रुख के अलावा पाकिस्तान को दो टूक जवाब, गाजा पर इजराइली हमले पर संयुक्त राष्ट में मतदान जैसे कई मसलों पर मोदी सरकार ने राष्टीय हितों के आधार पर व्यावहारिक व त्वरित निर्णय क्षमता का परिचय दिया है। मोदी की जापान यात्रा का एक प्रमुख तत्व 2008 के द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग समझौते को समुचित तौर पर लागू कराने का प्रयास भी है। इसके अलावा जापान के साथ परमाणु सहयोग, समुद्र पर उतर सकने वाले एम्फीबियस प्लेन यूएस-2 को भारत की भारत को सप्लाई करने की हरी झंडी व अहमदाबाद-मुंबई के बीच बुलेट टेन संचालन पर समझौता होने है। जिसमें वह बहुत हद तक सफल भी हो रहे है, ऐसा संकेत मिल रहा है। बहरहाल, सवाल यहां इस बात का है कि काशी को आधुनिक बनाने के लिए मोदी ने टोक्यों को ही चुना। दरअसल इसके पीछे उनकी मंशा यह थी कि काशी को सिर्फ आधुनिक ही नहीं, बल्कि यहां के हर हाथ को काम मिले, कोई भुखा न रह जाएं इस मकसद से उन्होंने टोक्यों को चुना। वजह यह थी कि क्योतो जापान का स्मार्ट शहर है, जो विरासत व आधुनिकता का संगम है। वहां से बड़ी संख्या में पर्यटकों का  काशी अना-जाना होता है। यानी शिव के भक्त अब बौद्ध भक्तों का स्वागत करेंगे। वैसे भी काशी अगर मंदिरों का शहर है तो क्योतों भी इससे पीछे नहीं, क्योंकि काशी में करीब 2300 मंदिर है तो क्योटों में 2000। बनारस भारत का सांस्कृतिक राजधानी माना जाता है, तो क्योंतों हजारों साल से जापान की राजधानी रहा, और जापान की पहचान भी है क्योतों। जहां काफी संख्या में बौद्ध अनुयायी दर्शन को जाते है। जबकि काशी का सारनाथ जहां भगवान बुद्ध ने ज्ञान दिया और सारनाथ भी भारत ही नहीं पूरे विश्व का पहचान है। काशी अगर गंगा के किनारे बसा है तो क्योतो समुंदर किनारे। ऐसे में काशी की ऐतिहासिकता भी बनी रहेगी और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। जाहिर सी बात है जब पर्यटन बढ़ेगा तो काशीवासियों की आमदनी भी बढ़ना लाजिमी है। काशी के गंगा निर्मलीकरण, गंगा घाटों की सफाई सहित अन्य योजनाओं की कार्यवाही पहले ही शुरु हो चुकी है।

दोनों देशों के बीच भागीदार शहर संबद्धता समझौते पर हस्ताक्षर के साथ ही स्मार्ट विरासत शहर कार्यक्रम की शुरुवात क्योतो के मेयर और भारतीय राजदूत के बीच लिखापढ़ी के साथ हो गयी है। क्योतो का इतिहास नारा शासन 794 ईसा बाद की समाप्ति के बाद शुरु होता है। करार के तहत धरोहर संरक्षण, शहर के आधुनिकीकरण, कला, संस्कृति और शैक्षणिक क्षेत्र में सहयोग पर सहमति जताई गयी है। दोनों शहर समानता और आपसी मान-सम्मान पर आधारित सिद्धांतों के तहत आदान-प्रदान और सहयोग का प्रयास करेंगे। ये सहमती वाले खेत्रों में लगातार सूचनाओं और विचारों का आदान-प्रदान और महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग करेंगे। मतलब अब बनारस क्योतों के सहयोग व अनुभव से काशी का स्मार्ट सिटी बनना तय हो गया है। क्योतो-काशी स्मार्ट सिटी प्रोग्राम पर दस्तखत क्योतो के मेयर क्योतो कादोकावा और जापान में भारतीय राजदूत दीपा गोपालन वाधवा के बीच हुआ। इस दस्तखत के गवाह स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके समकक्ष आबे बनें। यहां बताना जरुरी है कि मोदी ने वादे के मुताबिक अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी यानी काशी को इसकी सांस्कृतिक धरोहर को बरकरार रखते हुए 21वीं शताब्दी के शहर के तर्ज पर विकसित करने काशीवासियों को सपना दिखाया था कि वे देश में सौ स्मार्ट शहर विकसित करेंगे, जिसमें काशी भी होगा। काशी के विकास की ललक में प्रधानमंत्री ने अपनी जापान यात्र के कार्यक्रम में फेरबदल करते हुए सबसे पहले क्योटो जाने का फैसला किया था ताकि वे इस शहर के अनुभव से सीख सकें। यहां तक कि जापानी प्रधानमंत्री भी पारंपरिक औपचारिकता को तोड़ते हुए स्वागत करने के लिए राजधानी टोक्यो को छोड़ यहां पहुंच गए। दोनों की मौजूदगी में इस समझौते पर दस्तखत किए गए। यह समझौता दोनों देशों के बीच स्मार्ट विरासत शहर कार्यक्रम की शुरुवात है। मोदी की काशी समेत 100 शहर स्मार्ट बनाने की योजना के अनुरुप है। इसके जरिए विकास का विस्तृत खाका तैयार होगा। जो आने वाले दिनों में आगे और आपसी सहमती का आधार बनेगा। इसके अलावा वाराणसी की विरासत, पवित्रता और पारंपरिकता को कायम रखने और शहर के आधारभूत ढांचे को आधुनिकतम बनाने में मदद करेगा। इसके साथ ही कला, संस्कृति और अकादमिक क्षेत्र में भी शहर के विकास में दोनों देश सहयोग करेंगे। और काशी को स्मार्ट शहर के तौर पर विकसित करने में जापान मदद करेगा।

क्या है संभवनाएं 
ढ़ाचागत विकास पृथ्वी की दुर्लभ खनिज संपदा पर चर्चा। रक्षा व असैन्य परमाणु क्षेत्रों पर करार, बुलेट टेन सहित अहम समझौतों पर करार, 85 अरब डाॅलर के व्यापारिक समझौते, सामयिक व वैश्विक भागीदारी को आगे बढ़ाने, एक्सपोटर्स और स्माल एंड मीडियम इंटरप्राइजेज की भी संभावनाएं है। 

क्या है दोनों शहरों में अंतर 
क्योटो में कोई सरेराह थूक नहीं सकता, कचरा नहीं फेंक सकता, नदियों में फूलमाला या गंदगी नहीं कर सकता। कुछ ऐसी ही करना होगा काशीवासियों को भी।  घाटों-गलियों की साफ-सफाई, गंगा किनारे शौच आदि पर पूर्णतः प्रतिबंध, बेतरतीब लगे खटालों को हटाना, ऑटो, रिक्शा व टैक्सी आदि कायातायात नियमों का कड़ाई से पालन, गलियों व घाटों पर समुचित प्रकाश, पर्यटन के लिहाज से जगह-जगह साइन बोर्ड, जाम वाले इलाकों में अरोवरब्रिज, सीवर लाइनों का विस्तार, शुद्धपेयजलापूर्ति, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट आदि पर विशेष ध्यान देना होगा। क्योटो शहर बुलेट ट्रेन की सुविधा के साथ जापान के प्रमुख शहरों से जुड़ा है। क्योटो में सभी तरफ सब-वे, पाथ-वे हैं। क्योटो में इकोफ्रेंडली ट्रांसपोर्टेशन है जिसके चलते क्लोरो-फ्लोरो कार्बन फ्री वाहन दौड़ते हैं। उसी पर अब काशी भी होगा। उच्च तकनीक, कम आबादी और ठंडे मौसम के कारण क्योटो के साथ ही जापान अब बिजली संकट से पूरी तरह पार पा चुका है। जबकि काशी में बिजली का घोर संकट है। सारनाथ हो या गंगा घाट, उन्हें संरक्षण के उच्च बिन्दु की ओर ले जाने की जरूरत पड़ेगी। क्योटो में योदा, कामोगावा व कत्सुरा नदी सहित बीवा झील, नहर बेहद स्वच्छ व दर्शनीय हैं। जबकि काशी में गंगा किनारे के 84 घाट के अलावा काशी में उत्सर्जित 400 एमएलडी मलजल निस्तारण की भी व्यवस्था करना होगी। क्योटो में अंतर्राष्ट्रीय स्तर की अद्यतन सुविधाओं वाले दर्जनों अस्पतालों है जबकि काशी में बीएचयू के अलावा कुछ भी नहीं। हालांकि एम्स की घोषणा हो चुकी है, लेकिन इसे जल्दी ही वास्तविकता के धरातल पर लाना होगा। आबादी-15 लाख, क्षेत्रफल-827.9 वर्ग किमी, व्यवसाय-कसीदाकारी, खिलौना, रेशम के कपड़े आदि। जबकि काशी की आबादी-35 लाख से अधिक, क्षेत्रफल-3131 वर्ग किमी, व्यवसाय-बुनकरी, बनारसी साड़ी, लकड़ी के खिलौने आदि। इसके अलावा दोनों मंदिरों के शहर है, दोनों की अपनी-अपनी विरासतें है। दोनों ही धर्म एवं आध्यात्म से जुड़े है। दोनों ही अपने देश के केंद्र बिन्दु है। 

क्या है काशी की प्रमुख समस्याएं  
काशी का असली जीवन घाटों पर ही बसता है। बिजली, सड़क, पानी, सीवर जैसी समस्याओं से लोग जूझ रहे हैं। मोक्ष की नगरी में शवदाह तक के ठीक इंतजाम नहीं हैं। गलियों में मलजल तो घाटों पर किचकिच है। हरिश्चंद्रघाट पर शवदाह गृह बना भी तो इसका लाभ नहीं मिल पाता। गंगा तट पर घाटों की विशाल श्रृंखला धीरे-धीरे दरक रही है। वाराणसी में ज्ञान और कला की परंपरा मृतप्राय है। 300 एमएलडी सीवेज हर दिन गंगा में बहाया जा रहा है। अस्सी नदी के तो अस्तित्व पर संकट आन पड़ा है। बिजली के संकट के समाधान के लिए 33 केवी के कई विद्युत उपकेंद्रों की लगाने की योजना लटकी पड़ी है। शिक्षा, संस्कृति, साहित्य, सांस्कृतिक गतिविधियों पर लगता ग्रहण, कछुआ सेंक्चुरी के नाम पर सरकार ुिर से गंगा की खोदाई का न होना। साड़ी बिनकारी पर लगता ग्रहण, व्यापार में लगातार गिरावट, डीएलडब्ल्यू की तर्ज पर अन्य औद्योगिक ईकाईयों की स्थापना न होना, रिंग रोड का अभाव, सीवेज ट्रीटमेंट का न होना, अतिक्रमण व जाम आदि प्रमुख समस्याएं है। 

जो धड़कायेंगे दिल 
क्योटो शहर पर्वतीय तलहटी में है 3 नदियों से घिरा है, जिससे सड़कों पर जलभराव नहीं होता, काशी में हल्की बारिश में ही स़ड़के तो दूर जलभराव का पानी लोगों के घरों में घूस जाता है। काशी में आर्ट गैलरी तथा म्यूजियम का नितांत अभाव है, जबकि क्योटो में 32 म्यूजियम तथा आर्ट गैलरी है। जनसंख्या के मामले में भी क्योटो काशी से पीछे है। वहां आबादी थमी है, लेकिन यहां लगातार बढ़ रहा है। हाल यह है कि जो जहां पा रहा है मकान-दुकान बना ले रहा है। गंगा घाट पर अतिक्रमण इस कदर है कि पता नहीं चलता यह घाट भी है। ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण की बात यहां बेमानी है। वर्ष 1994 में क्योटों वल्र्ड हेरिटेज सिटी का दर्जा मिल गया, लेकिन काशी में बने बेतरकीब मकान-दुकान सब गड़बड़ है। लोग सड़कों को ही कब्जा कर रखे है। क्योटों में कलात्मक भवनों के साथ वह बाग-बगीचों का भी शहर है पर काशी तो कंक्रीटों का शहर बन चुका है। आर्थिक मामले में तो क्योटों की तुलना में काशी काफी पीछे है। यहां हर गली-मुहल्लों में भुखो-नंगों को आसानी से देखा जा सकता है। क्योटो जापान फिल्म निर्माण का प्रमुख केंद्र होने के साथ ही आईटी हब के रूप में भी जाना जाता है। क्योटो ने पुराने शहर को संरक्षित करने के साथ ही विकासात्मक गतिविधियों के लिए अलग से आधुनिक शहर भी बसाया है। जहां नये तरह के भवन व जरूरी निर्माण कराये गये हैं, पर काशी में दूर-दूर तक इसकी परछाई भी नहीं दिखती। टूरिज्म का बड़ा केंद्र तो है ही। यहां हर साल तीन करोड़ टूरिस्ट आते हैं। क्राफ्ट का भी यह प्रमुख केंद्र है। इसकी तुलना में काशी धार्मिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र तो है लेकिन अन्य आर्थिक गतिविधयों के मामले में बहुत पीछे हैं। यहां का साड़ी व कालीन कुटीर उद्योग पर संकट के बादल मंडरा रहे है। आंतरिक ट्रांसपोर्ट के मामले में भी वाराणसी की खस्ताहाल सड़कें, सिटी बस सेवा का क्योटो से कोई मुकाबला नहीं है। जापानी शहर क्योटो में स्थानीय लोग साइकिल से चलना पसंद करते हैं। वहां जगह जगह साइकिलों के लिए पार्किंग का इंतजाम है। शहर में साइकिल चोरी की कोई घटना मुश्किल से सुनने को मिलती है। वाराणसी में साइकिल चलाने के लिए अलग से कोई पाथ अथवा पार्किग नहीं है। साइकिलों की सुरक्षा यहां अलग मुद्दा है। क्योटो में अपना एयरपोर्ट नहीं है लेकिन बुलेट ट्रेन के नेटवर्क से जुड़ा होने के कारण देश के किसी भी हिस्से में आना जाना आसान है, पर काशी इस मामले में भी पीछे हैं। यहां अभी तक राजधानी अथवा शताब्दी जैसे ट्रेनों की भी सुविधा नहीं उपलब्ध है। 



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(सुरेश गांधी)

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