बिहार : संडेसभा की अनुभव और अभिव्यक्ति - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 31 अगस्त 2014

बिहार : संडेसभा की अनुभव और अभिव्यक्ति

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पटना। 31 अगस्त। संडेसभा। देशप्रेम अभियान के प्रशिक्षु लोककर्ता नीतेश, सोनू, प्रेम, नवल, पुष्कर, धन्नजय, मनोज और अंशुमाला ने कहा कि हम एक ऐसी शासन और शोषण करने वालो के द्वारा बनाई गई व्यवस्था में जीवन शैली को ढ़ो रहे हैं जहां मां के गर्भ से बाल अवस्था तक हमेें गुलाम बनाया जाता है। समाज हमें नौकर, सेल्समैन और दलाल बनाता है। जीवन नरक हो गया है ऐसे में देशप्रेम दर्शन और सुंदर जीवन की ओर... प्रशिक्षण ने हम लोगों को बदल दिया और हमलोग राहत की शंास लेतेे हैं ,खुश, शांत और आजाद रहते हैं। इस ज्ञान को जन-जन तक पहंुचायेगें, भारत को सुंदर बनाएंगे। हमसफर अशोक, चुनचुन, विकाश, मिथलेश, सुरेश, अमरेश, रामवृक्ष, धनेश्वर, गणेश, चंदन, रामजी, राजेशमिलन,  ने कहा कि संडेसभा के प्रशिक्षण और मार्ग दर्शन से हमारा शैक्षणिक, बौद्धिक, आर्थिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक प्रगति होना आसान हो गया है। हमारा समाजिक रोग (खैनी, गुटका चबाना, शराब पीना छूट गया ) हमारा मानसिक रोग समय से नींद आना, खाना खाना और दिनचर्या ठीक हो गया है। यहां आने के बाद हमलोग रिचार्ज हो जाते है और इस दिन का सप्ताह भर बेसब्री से इनतजार करते हंै। लागातार हमलोग आठ वर्षेां से आ रहे हैं।

कुमार राजीव (वैज्ञानिक) की अव्यिक्ति - पृथ्वी बुखार से तप रही है। औसतन 21 से 32 डिग्री तापमान होना चाहिए जो अभी 50 डिग्री हो गया है। मनुष्य को जब 98 डिग्री से ज्यादा तापमान होने पर बुखार का इलाज कराने डाॅक्टर के पास जाता है। तो धरती मां का इलाज कौन करेगा। विश्व का विज्ञान अभी प्राथमिक स्तर पर है । पूंजीवादी सरकारें इस विज्ञान का जनता को सुविधाभोगी बनाने का लालच देकर खुद निठल्ला बैठा रहता है। भ्रामक विकास के नारे पर लोकतंत्र के आड़ में शासन शोषण तंत्र चलता है। पर्यावरण से दुर रहने के कारण हम समाजिक, मानसिक एवं शारिरीक रोगी हो चुके हैं। मनुष्य और पृथ्वी एक दुसरे पर निर्भर है। संसाधनों का दुरूपयोग करने की प्रवृति हो गई है। यह भयावह स्थिति से उबरने हेतु हमें जीवन में नए रीती-रिवाज बनाना चहिए। भूमि, गगन, वायु, अग्नि, नीर (भगवान) को सुरक्षित और संरक्षित रखने और उसके साहवास में रहने की आदत डालनी चाहिए। ये तभी संभव है जब हममें देशप्रेम और वैज्ञानिक दृष्टिकोण जागेगा। पूंजीवाद हमें एकल जीवन जीने को वाध्य करता ह,ै मानसिक गुलाम बनाता है। सहयोग प्रणाली विकसित करें और सबको समान शिक्षा, चिकित्सा, यातायात और सरकारी आवास उपलब्ध होने से हममें केयरिंग और सेयरिंग बढ़ेगा। हम सुंदर होंगे, दुनिया हमसे सुंदर होगा।

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