विशेष आलेख : मोदी की अमेरिका यात्रा कितना प्रचार का हौआ कितनी गहराई - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 29 सितंबर 2014

विशेष आलेख : मोदी की अमेरिका यात्रा कितना प्रचार का हौआ कितनी गहराई

नरेंद्र मोदी की विदेश यात्राओं का भारतीय मीडिया में जोरशोर से प्रचार उनकी छवि संवद्र्धन की सुनियोजित मुहिम का हिस्सा है। भारत को लंबे समय तक गुलामी के शिकंजे में रहना पड़ा और संविधान निर्माता बाबा साहब डा. अंबेडकर कहते थे कि गुलामी न केवल शारीरिक दंश देती है बल्कि इससे किसी कौम या व्यक्ति में तमाम चारित्रिक दोष भी पनप जाते हैं सो गुलामी के साथ जो हीनता ग्रंथि भारतीयों में घर करती रही उसके अïवशेष आज भी खत्म नहीं हुए हैं। खास तौर से अमेरिका और पश्चिम में अगर भारतीय नेता को बढ़-चढ़कर सम्मान मिलना प्रदर्शित कर दिया जाए तो पूरे देश के लिए यह बड़े गौरव की बात हो जाती है और ऐसा नेता भारत में धाक और लोकप्रियता में एवरेस्ट की चोटी पर नजर आने लगता है।

बहरहाल मोदी की जापान यात्रा की समाप्ति के बाद वहां के एक मशहूर अखबार जापान टाइम्स में किसी जानेमाने विश्लेषक का लेख छपा है जिसके अनुसार जापान यात्रा के नाम पर मोदी की उपलब्धि में शोमैनशिप ज्यादा थी ठोस उपलब्धि कम। यहां तक कि चार वर्ष से जापान के साथ आणविक समझौते में चले आ रहे गतिरोध को भी मोदी की यात्रा के नतीजे से दूर नहीं किया जा सका। इलेक्ट्रानिक चैनल भले ही चौबीस घंटे तक उनके जापान भ्रमण का प्रसारण करते रहे हों लेकिन जापानी इलेक्ट्रानिक चैनल में उन्हें एक मिनट से ज्यादा का समय नहीं मिला यानी वहां की मीडिया ने मोदी को कोई भाव नहीं दिया।

इन दिनों मोदी अमेरिका की यात्रा पर हैं। यह यात्रा भारतीय मीडिया में ऐसे पेश की जा रही है जैसे मोदी ने सारे विश्व में चक्रवर्ती सम्राट बनने का लक्ष्य प्राप्त कर लिया हो। दूसरी ओर जो खबरें आ रही हैं उसके अनुसार अमेरिकी प्रशासन की प्राथमिकता में इस समय दक्षिण एशिया नहीं पश्चिम एशिया है। उसे ईराक, सीरिया, मिश्र में ज्यादा दिलचस्पी है जहां आईएसआईएस को नेस्तनाबूद करने के लिए अमेरिका चालीस देशों के गठबंधन के साथ अभियान चलाए हुए है। अमेरिका में मोदी संयुक्त राष्ट्र संघ के सालाना जलसे को संबोधित करने गए हैं। इसके बाद उनकी राष्ट्रपति ओबामा से मुलाकात होगी जो फिलहाल एक औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं होगी। इसमें कोई महत्वपूर्ण समझौता होने के आसार नहीं हैं। गैस, ऊर्जा व उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कुछ समझौते हो सकते हैं जो दोयम दर्जे के हैं लेकिन मोदी की यात्रा को लेकर ऐसा तूफान खड़ा किया गया है जैसे अमेरिका उन्हें रिझाने के लिए ओबामा से उनकी शिखर वार्ता में सबकुछ लुटाने को तत्पर है।

इस बीच मोदी संयुक्त राष्ट्रसंघ के 69 वें अधिवेशन को संबोधित कर चुके हैं। इसमें आत्मविश्वास की कमी के कारण उन्होंने अपने साथ-साथ देश की भी भद्द पिटवाई। हड़बड़ाहट में संयुक्त राष्ट्र महासचिव का नाम सैम कुटेसा की जगह सैम कुरेसा कह दिया। मल्टी लेटरलिज्म कहने में उनके बोल उच्चारण दोष के कारण लडख़ड़ा गए। उन्होंने भारत की जनसंख्या का जिक्र करते हुए जब वन प्वाइंट ट्वंटी फाइव बिलियन कहा तो उन्हें यह ध्यान नहीं रहा कि दशमलव के बाद अंक अलग-अलग करके बोले जाते हैं मिलाकर नहीं। वे स्पेस को स्पेश कह गए। इन गलतियों से उनका खूब मजाक बना।

दूसरी ओर उनकी यात्रा की शुरूआत में अमेरिकी अखबारों में उन्हें कोई महत्व नहीं मिला। वाशिंगटन पोस्ट के वेब पोर्टल पर लोगों ने बताया कि उनकी खबर ट्रेंड ही नहीं हो रही थी। जब सर्च बाक्स में मोदी कीवर्ड डाला गया तब कहीं छोटी सी खबर ट्रेंड हुई। न्यूयार्क टाइम्स में पांचवें स्थान पर उनकी खबर थी जबकि भारतीय मीडिया में वे बराबर छाए हुए थे।

एक टिप्पणीकार ने लिखा है कि मोदी की यात्रा को लेकर अमेरिका में बसे वे तीस लाख भारतवंशी उत्साह दिखा रहे हैं जो मानते हैं कि भारत गंदा, आलसी और न रहने लायक देश है लेकिन मोदी के व्यक्तित्व को विराटकाय बनाकर वे अपनी भी कुछ हैसियत बढ़ाना चाहते हैं। इन भारतवंशियों ने ही मैडिसन स्केवयर गार्डन में उनकी सभा का आयोजन किया जिसे लेकर इस तरह प्रचारित किया जा रहा है जैसे अमेरिकी प्रशासन द्वारा यह आयोजन किया गया हो। अमर उजाला में आज के ही अंक में एक लेख प्रकाशित हुआ है जिसके अनुसार चुनाव के पहले ही लेख लिखने वाले विश्लेषक ने जब वेबसाइट पर भाजपा समर्थक अमेरकियों को सर्च किया तो उनकी संख् या तेईस हजार से ज्यादा थी। दूसरी ओर कांग्रेस के बारे में सर्च करने पर केवल एक रिजल्ट मिला। कहने का तात्पर्य यह है कि अप्रवासी भारतीयों में पिछले कई दशक से हिंदू संगठन और उनकी राजनीतिक शाखा भारतीय जनता पार्टी अपने समर्थक वर्ग को तैयार करने की मशक्कत कर रही है। उसी के वितंडा का करिश्मा है कि मोदी की अमेरिका यात्रा को इतना महिमामंडित करके देश में प्रस्तुत किया जा रहा है कि उसकी चकाचौंध में उपचुनावों के माध्यम से उजागर हुई उनकी लोकप्रियता के ग्राफ में गिरावट का सच दब जाए। मोदी की विदेश नीति की सफलता की परीक्षा के लिए अभी काफी समय है। फिलहाल उनका आगाज बहुत अच्छा नहीं है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बहुप्रचारित भारत यात्रा के बाद चीन की सीमा पर भारत को जिस तरह की चुनौती का सामना करना पड़ा अगर बेबाकी से कहा जाए तो नीचा देखना पड़ा वह एक बहुत बड़ा झटका है और विदेश नीति के मामले में मोदी में दूरंदेशिता की कमी को उजागर करता है। विदेश नीति जैसे गंभीर मामलों के नतीजे वायवीय प्रचार के आधार पर तय नहीं होते। यथार्थ से मुठभेड़ करके ही उनकी तह में जाया जा सकता है।







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के पी सिंह 
ओरई 

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