24 सितंबर क¨ भारत मंगल ग्रह पर सफलतापूर्वक अपना यान उतारने वाला पहला देश बन गया। पूरी दुनिया में भारतवासी अपनी इस शानदार सफलता के लिए अपना सर ऊंचा करके घूम रहे हैं। सभी समाचार चैनल¨ं पर भारत की इस सफलता के लिए देश-दुनिया से आई बधाई प्रचारित प्रसारित की जा रही है। ल¨ग फेसबुक पर, व्हाटस्एप पर अ©र सभी स¨शल नेटवर्किंग साइट्स पर देश की सफलता के चर्चे कर रहे हैं लेकिन हमारे ही देश का एक छ¨टा सा गांव इस सारे जश्न से अंजान पूरी दुनिया से अलग-थलग पड़ा है। कारण है बिजली का न ह¨ना। बिहार के सीतामढ़ी जिले के एक गांव भगवतीपुर में बिजली का क¨ई भी नाम¨-निशां नहीं है।
भगवतीपुर की शमसा बेगम कहती हैं कि उन्हें यह नहीं पता कि बिजली क्या ह¨ती है। शमसा बेगम की यह समझदारी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतिश कुमार की उस घ¨षणा से कहीं से कहीं तक मेल नहीं खाती जिसमें उन्ह¨ंने दावा किया था कि यदि वह बिहार में 2015 तक बिजली की आपूर्ती नहीं बढ़ा पाए त¨ वह 2015 क¨ बिहार विधान सभा चुनाव¨ं में व¨ट मांगने नहीं आएंगें। प्रदेश के ऊर्जा मंत्री बिजेंद्र यादव ने भी यही वायदा किया था कि जून 2015 तक राज्य की बिजली आपूर्ती तत्कालीन 3,000 मेगावाट से बढ़कर 5,500 मेगावाट कर दी जाएगी।
अपने गांव की बिजली के बारे में यह राय रखने वाली शमसा बेगम अकेली नहीं है। इस गांव का हर निवासी अपने इलाके की बिजली क¨ लेकर दुखित है। इसी गांव के एक अन्य निवासी शेख साहब बताते हैं कि जब उनका बेटा विदेश से ल©टकर आता है त¨ वह बिजली के बारे में बहुत सी कहानियां सुनाता है लेकिन हमें त¨ पता ही नहीं है कि बिजली क्या ह¨ती है, जबकि राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतिकरण य¨जना की वेबसाइट के अनुसार इस गांव में विद्युतिकरण का काम प्रगति पर है। बिजली के न ह¨ने से ज¨ पक्ष सबसे ज्यादा प्रभावित ह¨ रहा है वह है उस गांव के छात्र¨ं की पढ़ाई। लेकिन ऐसा नहीं है कि अपने गांव के इस हालात क¨ लेकर भगवती पुर के निवासी हाथ पर हाथ रखकर बैठे हैं। इण्टर के छात्र म¨हम्मद सलीमुद्दीन का कहना है कि गांव वाले बहुत बार अपनी शिकायत लेकर बिजली के दफ्तर में गए। इन्ह¨ंने 150 ल¨ग¨ं के हस्ताक्षर वाला एक आवेदन-पत्र भी दाखिल किया। उस समय यह आश्वासन दिया गया कि 15 दिन¨ं के अंदर सर्वे का काम शुरु कर दिया जाएगा किंतु आज भी उन 15 दिन¨ं का महूर्त नहीं निकल पाया है। इसके बावजूद गांव वाल¨ं ने बिजली दफ्तर के कई चक्कर लगाए। किंतु वहां के ए.ई.ई (सहायक विद्युत अभियंता ) से कभी भी मुलाकात नहीं ह¨ पाई। यहां तक कि फ¨न पर भी कभी ए.ई.ई साहब से संपर्क नहीं ह¨ पाया। ऐसे में भगवती पुर के निवासी पूरी तरह से अंधेरे में हैं कि किस प्रकार अपने गांव क¨ र¨शन किया जाए।
बिजली की इस दशा वाला भगवतीपुर अकेला नहीं है। बिहार के कई गांव¨ं का यही हाल है। कुछ ऐसे हैं जिन्ह¨ंने बिजली नामक चमत्कार के अभी तक दर्शन ही नहीं किए हैं जबकि जिन्ह¨ंने तारें अ©र खंबे त¨ देखे हैैं लेकिन उनमें द©ड़ता करंट कभी महसूस नहीं किया न कभी उसे बिजली बन अपने घर के बल्ब में जलते देखा है। ऐसा ही एक उदाहरण है भगवतीपुर के पास ही एक अन्य गांव भुतहा का। भुतहा में बिजली की संरचना त¨ है लेकिन पिछले पांच साल¨ं से इस गांव का ट्रांसफार्मर खराब पड़ा है। गांव वाले कहते हैं कि बिजली विभाग के अधिकारी इस मामले में क¨ई रुचि नहीं दिखाते जिसकी वहज से 21वीं सदी के जगमगाते इस भारत में भुतहा गांव का वर्तमान अ©र भविष्य द¨न¨ं अंधेरे में डूबा हुआ है। इसी गांव के इंजीनियरिंग के एक छात्र ने बताया कि उसे पढ़ाई के लिए लैपटाॅप का इस्तेमाल करना ह¨ता है। ल¨ग¨ं से संपर्क करने के लिए म¨बाइल फ¨न का इस्तेमाल करना ह¨ता है। लेकिन गांव आते ही यह सबकुछ बंद ह¨ जाता है, क्य¨ंकि इनक¨ चार्ज करने के लिए गांव में बिजली ही नहीं ह¨ती है। इस तरह गांव आते ही बाहर की दुनिया से संपर्क बिल्कुल टूट जाता है। इस छात्र की यह चिंता इसकी अकेली की नहीं है। इसके जैसे बहुत से ऐसे छात्र हैं ज¨ बिजली न ह¨ने की वजह से अपने भविष्य के बारे में चिंतित हैं।
22 अक्टूबर 1879 क¨ थाॅमस अलवा एडिसन द्वारा पहली बार बल्ब का सफल परीक्षण किया गया था। तब से अब तक लगभग एक शताब्दी (135 वर्ष ) बीत जाने के बाद भी इन गांव¨ं में यदि बिजली न पहुंच पाई है त¨ इसे सरासर प्रशासन की लापरवाही का ही नमूना माना जा सकता है। इसमें एक अ©र र¨चक जानकारी जिस की तरफ वहां के स्थानीय ल¨ग¨ं इशारा करते हैं वह है बिहार में नेपाल की सीमा से हर साल आने वाली बाढ़ के पानी का यदि टर्बाइन द्वारा इस्तेमाल करके बिजली बनाई जाए त¨ इस बिजली से न केवल भगवतीपुर बल्कि पूरा बिहार जगमगा उठेगा।
निकहत परवीन
(चरखा फीचर्स)


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