भारत दक्षिण चीन सागर में अतिरिक्त तेल ब्लॉक स्वीकार करेगा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 28 अक्तूबर 2014

भारत दक्षिण चीन सागर में अतिरिक्त तेल ब्लॉक स्वीकार करेगा

चीन को संभावित तौर पर नाराज करने वाले एक कदम के तहत भारत और वियतनाम कल यहां दक्षिण चीन सागर में तेल की खोज पर एक समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे. भारत यात्रा पर आए वियतनामी प्रधानमंत्री नगुएन तान डुंग ने घोषणा की है कि चीन के विरोध के बावजूद उनका देश क्षेत्र में भारतीय जहाजों को आने की अनुमति देगा. सूत्रों के अनुसार, भारत ने ओएनजीसी विदेश लिमिटेड की तकनीकी-वाणिज्यिक व्यवहार्यता रिपोर्ट के आधार पर दक्षिण चीन सागर में 2 से 3 वियतनामी तेल ब्लॉकों को स्वीकार करने करने का फैसला किया है और वार्ता के बाद कल इस संबंध में एक समझौते पर हस्ताक्षर किया जाएगा.

मौजूदा तीन तेल ब्लॉकों के अतिरिक्त वियतनाम ने भारत को पांच तेल ब्लॉकों की पेशकश की थी और ओएनजीसी विदेश लिमिटेड उनपर व्यवहार्यता के आलोक में गौर कर रहा था. हाल में वियतनाम ने एक और साल के लिए दक्षिण चीन सागर में दो तेल ब्लॉकों के लिए भारत की लीज का नवीकरण किया था.

दक्षिण चीन सागर को लेकर गतिरोध के कारण चीन और वियतनाम के बीच संबंध शत्रुतापूर्ण है. दक्षिण चीन सागर हाइड्रोकार्बन का बड़ा स्रोत है. चीन विवादित क्षेत्रों में भारत की तेल अन्वेषण परियोजनाओं पर आपत्ति कर रहा है. इस बीच, मोदी से वार्ता से पहले वियतनामी प्रधानमंत्री नगुयेन तान डुंग ने सभी विवादों का शांतिपूर्ण समाधान करने के लिए भारत के सक्रिय समर्थन का आह्वान किया और क्षेत्र में उसके अधिक जुड़ाव की मांग की.

 एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने कहा, ‘‘वियतनाम दक्षिण पूर्व एशिया के साथ भारत के बहुआयामी संपर्क को बढ़ाने का समर्थन करता है. मैत्री और आदान-प्रदान के उद्देश्य के लिए हम भारत समेत अन्य देशों के जहाजोंे को वियतनाम आने की अनुमति देना जारी रखेंगे.’’ उन्होंने कहा, ‘‘वियतनाम को उम्मीद है कि भारत अपनी बढ़ती महत्वपूर्ण भूमिका के साथ क्षेत्र और दुनिया में शांति और स्थिरता को कायम रखने में सकारात्मक और जिम्मेदार योगदान देगा.’’

वियतनामी प्रधानमंत्री की टिप्पणी हो सकता है चीन को रास न आए. चीन विवादास्पद दक्षिण चीन सागर में तेल अन्वेषण परियोजनाओं को लेकर भारत की मौजूदगी पर आपत्ति व्यक्त कर रहा है. पिछले महीने, चीन ने भारतीय नौसैनिक जहाज आईएनएस ऐरावत से जल क्षेत्र को ‘‘चीनी जलक्षेत्र’’ बताते हुए वहां से चले जाने को कहा था. आईएनएस ऐरावत वियतनामी बंदरगाह के लिए जा रहा था और दक्षिण चीन सागर में खुले अंतरराष्ट्रीय जल क्षेत्र में यात्रा कर रहा था. दक्षिण चीन सागर विवाद पर उन्होंने कहा, ‘‘पूर्वी सागर में शांति, स्थिरता, समुद्री सुरक्षा और संरक्षा और क्षेत्र में नौवहन की स्वतंत्रता के लिए विवादांे का उचित समाधान क्षेत्र और उसके बाहर देशों के साझा हित में है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘उसी भावना में वियतनाम को उम्मीद है कि क्षेत्र और दुनिया में बड़ी शक्ति के रूप में भारत सभी विवादों का शांतिपूर्ण तरीके से समाधान करने के लिए संबद्ध पक्षों का सक्रियता से समर्थन करेगा और उन कार्रवाइयों से बचेगा जो हालात को और जटिल बना सकते हैं. इस प्रकार पूर्वी सागर में शांति, स्थिरता, समुद्री सुरक्षा एवं संरक्षा तथा नौवहन की स्वतंत्रता को कायम रखने में योगदान देगा.’’ दक्षिण चीन सागर में क्षेत्र संबंधी विवाद में द्वीपीय और समुद्री दावे दोनों शामिल हैं. इसपर क्षेत्र के सात संप्रभु देश ब्रूनेई, चीन, ताइवान, मलेशिया, फिलीपीन और वियतनाम दावा करते हैं.


पूर्वी सागर पर अपने रख को स्पष्ट करते हुए तान ने कहा कि वियतनाम और अन्य आसियान देशों ने लगातार अंतरराष्ट्रीय कानून 1982 के यूएनसीएलओएस का पालन करने तथा पूर्वी सागर में शांति, स्थिरता, समुद्री सुरक्षा और नौवहन की स्वतंत्रता को कायम रखने के महत्व को रेखांकित किया है. यह पूछे जाने पर कि क्या वियतनाम पूर्वी सागर में फिलहाल सक्रिय विदेशी तेल एवं गैस कंपनियों के हितों को सुनिश्चित करने में सक्षम होगा तो उन्होंने कहा, ‘‘वियतनाम विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र और वियतनाम के कंटीनेंटल शेल्फ में वियतनामी कानून और अंतरराष्ट्रीय कानून खासतौर पर 1982 के यूएनसीएलओएस को ध्यान में रखते हुए भारतीय कंपनियों समेत अपने विदेशी भागीदारों और वियतनामी तेल एवं गैस कंपनियों के बीच सामान्य आर्थिक सहयोग गतिविधियों के लिए सभी तरह की अनुकूल दशा पैदा करने के लिए प्रतिबद्ध है और उसका स्वागत करता है.’’ भारत और वियतनाम कल नालंदा विश्वविद्यालय पर एक एमओयू पर हस्ताक्षर करेंगे. तान आज बिहार पहुंचे. उन्होंने बोधगया की यात्रा की और बोधगया से हनोई के लिए सीधी उड़ान और आगमन पर वीजा सुविधा पर जोर दिया.

भारत और वियतनाम के सैन्य सहयोग को बढ़ाने और क्या इसे चीन को लक्षित समझा जाए, यह पूछने पर तान ने कहा, ‘‘वियतनाम की विदेश नीति सतत है. हम किसी अन्य देश के खिलाफ किसी सैन्य गठबंधन में शामिल नहीं होते हैं.’’ यह पूछे जाने पर कि क्या वियतनाम चीन के साथ विवाद का समाधान द्विपक्षीय तरीके से करेगा या अंतरराष्ट्रीय कानूनों के आधार पर कार्रवाई करेगा तो वियतनामी प्रधानमंत्री ने कहा कि उनका देश चीन के साथ हमेशा पारंपरिक मैत्री और व्यापक सहयोग को सम्मान देता रहा है और उन्होंने संकेत दिया कि वह चाहेगा कि विवाद का अंतरराष्ट्रीय कानूनों के दायरे में समाधान किया जाए.

उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, वियतनाम होआंग सा और ट्रूओंग सा द्वीपसमूहों पर अपनी संप्रभुता की रक्षा करने के साथ-साथ इन जल क्षेत्रों में अपने संप्रभु अधिकारों और अधिकार क्षेत्रों की रक्षा करने को प्रतिबद्ध है.’’ तान ने कहा, ‘‘सौहार्द और सतत विदेश नीति की परंपरा के अनुसार वियतनाम हमेशा बल के इस्तेमाल बिना या धमकी का सहारा लिए बिना शांतिपूर्ण साधनों के माध्यम से अपने सभी विवादों का समाधान करने पर दृढ़ रहा है. उसने ऐसा आत्मनियंत्रण के आधार पर किया है और अंतरराष्ट्रीय कानून, 1982 के यूएनसीएलओएस, दक्षिण चीन सागर में पक्षों के आचरण पर घोषणापत्र (डीओसी) और आचार संहिता :सीओसी: का पालन करते हुए वह ऐसी कार्रवाई से बचता रहा है जो स्थिति को और जटिल बना सकती है.’’

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