विशेष आलेख : अंधविश्वास के स्टार प्रचारक होती है नामचीन हस्तियां - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 27 नवंबर 2014

विशेष आलेख : अंधविश्वास के स्टार प्रचारक होती है नामचीन हस्तियां

रामपाल ने अपने आसपास महान संत और समुदाय के दिव्य सवेसवा होने का जो भ्रमजाल रचा था, वह खुद उसी के शिकार हो गए। परंतु उनका या उनके अनुयायियों का जिस प्रकार का आचरण अराजकता के रूप में सामने आया है वह किसी भी हालत में धर्मानुकूल नहीं कहा जा सकता। लेकिन अफसोस है नेताओं-माफियाओं व सत्ता के ओहदादार लोगों के चलते इनकी दुकान फल-फूल रही है। भीलवाड़ा के पं नाथू लाल व्यास ने मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी को राष्टपति बनने का सब्जबाग दिखा डाला तो क्या कहा जाएं। ईरानी जी को लगता है कि वह सास भी कभी बहू जैसे टीबी सीरियल से निकलकर सियासी गलियारे से होते हुए इस मुकाम पर पहुंची है तो वह बाबा की ही बदौलत। शायद वह भूल गयी कि इस सीरियल के बूते महिलाओं की दिलों पर राज करने के पीछे उन्हें कितनी पापड़ बेलनी पड़ी होगी। स्क्रिप्ट तैयार करने से लेकर हावभाव प्रदर्शित करने के लिए कितने पन्ने फाड़ने पड़े होंगे, कितने चप्पले घिस गयी होंगी। रामपाल जैसे लोगों की लोकप्रियता कुछ इन्हीं वजहों से ही होती है 

rampal ashram
जी हां, यहां बात हो रही है हाल के तथाकथित बाबाओं, मुल्लों व इससे जुड़े पाखंडियों की, जिनके यहां नामचीन हस्तियां मत्था टेकती है तो झूठ-फरेब की बुनियाद पर टिकी इनकी दुकान तेजी से आगे बढ़ निलती है। ये नामचीन हस्तियां अपनी तरक्की का सेहरा इन्हीं पाखंडियों के सिर इस कदर मढ़ती है कि आम आदमी भी इनकी चैखट पर मत्था टेकने को विवश हो जाता है। जबकि सच तो यह है कि जो लोग उंचाईयों की बुलंदियों पर पहुंचते है तो इसके पीछे उनकी हाड़तोड़ मेहनत ही होती है और वह अपने लगन, सूझबूझ, तौर-तरीकों पर चलकर मुकाम हासिल करते है। लोगों को अक्सर कहते सुना जा सकता है कि अगर फलनवा इतना आगे निकल गया तो इसके पीछे अमूक बाबा, मौलाना, संत का आर्शीवाद था। स्मृति ईरानी अकेले ऐसी महिला नहीं है जो अपने भाग्य बदलवाने बाबा के दर पहुंची, बल्कि सैकड़ो-हजारों की तादाद है जो इन पाखंडियों की शरण में पहुंचकर इन्हें महिमा मंडित करते है। इन्हीं नामचीन हस्तियों का हवाला दें पाखंडी न सिर्फ अपना साम्राज्य स्थापित कर लेते है बल्कि लाखों-करोड़ों को अंधविश्वास की खाई में झोक संत रामपाल जैसे पाखंडी जो स्वर्ग में अमृत पाने व जन्नत में तस्नीम पाने सहित न जाने क्या-क्या, की आकांक्षा पाले भोलेभाले लोगों को ठग अपनी महल खड़ी कर लेते है। मतलब साफ है जिन बाबाओं, संतों व मौलवियों को अपने प्रवचन के माध्यम से लोगों में व्याप्त दुर्भावनाओं, द्वेष, ईष्र्या, भेदभाव आदि विकृतियां दूर कर इंसान को इंसानियत के राह पर चलने की नसीहत देनी है, वह अपने को आस्था का प्रतिनिधि बताकर न सिर्फ गुमराह बल्कि अंधविश्वास फैला रहे है। यहां जिक्र करना जरुरी है कि ज्योतिषी से अपनी कुंडली दिखाना, हाथ दिखाना अपना भविष्य पूछना या उनकी शरण में जाकर ज्ञान अर्जित करना ये कोई अपराध नहीं है, लेकिन जब देश की मानव संसाधन विकास मंत्री, जिनके पास देश की भविष्य सुधारने की कमान है वह किसी ज्योतिषी से मिलें, घंटों तक अपना भविष्य बंचवाएं तो सवाल जरूर उठेंगे। कहा जा सकता है कि स्मृति ईरानी जैसे ही नामचीन हस्तियों के बरदहस्त के चलते ही विज्ञान को चुनौती दें अंधविश्वास फैलाने वालों की चांदी कट रही है। हालांकि सभी साधु-संत, मौलाना, पादरी ऐसा नहीं है, लेकिन जब कोई रामपाल जैसा व्यक्ति धर्म की दुकान लगा नकदी लेकर मुक्ति बेचने लगे तो यह चिंता की बात है। यह भ्रम का सौदा है, जिसे धूर्तता की आड़ में बेचा जा रहा है। जिसका समाधान पुलिस नहीं बल्कि राजनीतिक नेतृत्व की प्रबोधक क्षमता है। ईश्वर को उसके स्यवंभू संतो-मोलवियों-पादरियों से बचाने के लिए हमारे नेताओं को आगे आना चाहिए।  

rampal in custody
लेकिन अफसोस है नेताओं-माफियाओं व सत्ता के ओहदादार लोगों के चलते इनकी दुकान फल-फूल रही है। भीलवाड़ा के पं नाथू लाल व्यास ने मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी को राष्टपति बनने का सब्जबाग दिखा डाला तो क्या कहा जाएं। ईरानी जी को लगता है कि वह सास भी कभी बहू जैसे टीबी सीरियल से निकलकर सियासी गलियारे से होते हुए इस मुकाम पर पहुंची है तो वह बाबा की ही बदौलत। शायद वह भूल गयी कि इस सीरियल के बूते महिलाओं की दिलों पर राज करने के पीछे उन्हें कितनी पापड़ बेलनी पड़ी होगी। स्क्रिप्ट तैयार करने से लेकर हावभाव प्रदर्शित करने के लिए कितने पन्ने फाड़ने पड़े होंगे, कितने चप्पले घिस गयी होंगी। शायद वह इस शेर को नहीं जानती, हाथो की लकीरों पर यकीन मत करना, तकदीर तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते। फिरहाल रामपाल जैसे लोगों की लोकप्रियता कुछ इन्हीं वजहों से ही होती है। व्यापक धार्मिक संगठनों के स्वरूप ज्यादा व्यक्ति निरपेक्ष होते हैं, लेकिन ऐसे धमगुरुओं से लोगों को व्यक्तिगत संपर्क और सहारे का एहसास होता है। दूसरी बात यह है कि हिंदू धर्म में अब भी निचली जातियों को धार्मिक संगठनों और मंदिरों आदि से दूर ही रखा जाता है, पारंपरिक धर्म में उनकी जगह हाशिये पर होती है, ऐसे में इस तरह के मठ और डेरे उनकी धार्मिक आस्था के आधार बन जाते हैं। इनसे बड़ी तादाद में लोग जुड़े होते हैं, इसलिए राजनीति और प्रशासन से भी ऐसे गुरुओं को संरक्षण मिल जाता है। भारत में ऐसे स्वायत्त धार्मिक समूह ज्यादा हैं, लेकिन अमेरिका जैसे विकसित देशों में भी ऐसे कई ‘कल्ट’ हुए हैं, जिनसे सुरक्षा बलों को बाकायदा वैसा ही जूझना पड़ा है, जैसे हरियाणा में हुआ। रामपाल का मामला नया-अनोखा नहीं है। बीते साल एक कथावाचक आसाराम की गिरफ्तारी के समय भी ऐसा ही दृश्य सामने आया था। रामपाल खुद को धार्मिक और आध्यात्मिक गुरु घोषित करते हैं, परंतु उनका या उनके अनुयायियों का जिस प्रकार का आचरण अराजकता के रूप में सामने आया है वह किसी भी हालत में धर्मानुकूल नहीं कहा जा सकता। यह मानव समाज और संस्कृति की अजीबोगरीब गुत्थियों में से एक है, लेकिन यह कितनी खतरनाक हद तक जा सकता है, इसे रामपाल के उदाहरण से समझा जा सकता है। 

सभी हैरत में हैं कि गीता और कुरान जैसे पवित्र ग्रंथों को अपने नजरिए से लिखने का दावा करने वाला रामपाल का दोहरा रवैया कैसे हो गया? अब सवाल उठ रहा है कि सब दिखावा था या फिर कुछ और। भगवान श्रीकृष्ण यानि योगेश्वर ने अहिंसा का सबसे विश्वदाय गीता के ग्रंथ को रच दिया। आज भक्तों में यही योगेश्वर बांके बिहारी से लेकर रास रचैया कृष्ण कन्हैया घट-घट में व्याप्त हैं। इन्हीं की तर्ज पर रामपाल ने संत तक की उपाधि पाने के लिए अहिंसा बतौर जाने वाले ग्रंथों पर कलम चलाने का दावा किया। असल उद्देश्य तो संत की उपमा पाना बताया जाता है। लाखों श्रद्धालु जुड़े भी। देशभर में यूपी, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि तक अनुयायियों की भीड़ जुटी। नेपाल, भूटान आदि पड़ोसी देशों तक धमक पहुंची। अब तमाम सवाल हैं कि खुद को अहिंसा के पुजारी बतौर पेश करने वाले रामपाल के दामन दाग से भर गए। ऐसे में धार्मिक, आध्यात्मिक चेतना का संदेशा देने वाले व्यक्ति का दोहरा आचरण कैसे हो गया। अभी जांच बाकी है और तमाम रहस्यों से पर्दा उठना बाकी है। वेबसाइट के मुताबिक, कुरान शरीफ के अलावा कबीर को अल्लाह कबीर बताने की कोशिश की। खुद को  अवतार बताने के लिए हरि आए हरियाणा नूं से लेकर धरती पर अवतार, भक्तों की आत्म कथा तक का लंबा सिलसिला है। हां, गीता पर अपने तरीके से लिखने का दावा करते हुए गहरी नजर गीता तक में खुद को धार्मिक और आध्यात्मिक महापुरुष बतौर पेश किया है। कार्ल मार्क्‍स ने जब धर्म को अफीम की संज्ञा दी थी तो उसका साफ मतलब था कि धर्म कई बार आस्था के नाम पर भाव शून्यता और अंधभक्ति को बढ़ाता है। सच यह है कि धार्मिक नेता स्वयंभू बनकर लोगों की गहन आस्था और उनकी अंधभक्ति का लाभ उठाकर उनमें एक छद्म धार्मिक चेतना का संचार कर देते हैं। धर्म के नाम पर यह एक प्रकार का सम्मोहन है। इसके माध्यम से धर्म गुरु अपनी हर क्रिया को नैतिकता का लबादा ओढ़ाता है और भक्तों के सामने स्वयं की छवि को ईश्वर के नजदीक ले जाता है। 

स्वयंभू बाबाओं की यही वह स्थिति है जहां वे अपनी धार्मिक सत्ता को धनोन्मुख सत्ता में रूपांतरित करने में कामयाब हो जाते हैं। शायद इसी वजह से तमाम धार्मिक संस्थानों और धर्मगुरुओं के पास अकूत धन, संपत्ति, जमीन, निजी सेना व बाहुबल का विस्तार होता चला जाता है। इन सभी का इस्तेमाल ये लोग अपनी धार्मिक सत्ता को देश व विदेश में फैलाने में अधिक करते हैं। कड़वा सच यह है कि धर्म अब धीरे-धीरे नैतिकता के लिबास को छोड़ रहा है। सामुदायिक ढांचे के कमजोर होने से समाज में बढ़ती वैयक्तिक असुरक्षा और रातों-रात भौतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने की लालसा लोगों को इन धर्मगुरुओं के नजदीक जाने को मजबूर कर रही है। केवल इतना ही नहीं, इस धर्म की सत्ता से अब राजनीति की वैतरणी पार करने के दावे भी सामने आने लगे हैं। ऐसे तमाम उदाहरण हैं जहां अनेक राजनेता इन धर्मगुरुओं के समक्ष दंडवत करते नजर आते हैं। इसी से जुड़ा यहां यक्ष प्रश्न यह भी है कि आखिर बाबा रामपाल और उनके समर्थकों ने कानून के सारे नियम व कायदों को ताक पर रखकर हिंसा के सहारे न्यायपालिका की अवमानना करने की हिम्मत कैसे और क्यों दिखाई। वह इसलिए, क्योंकि वे अपने राजनीतिक और प्रशासनिक रसूख और उनकी गहराई व कमजोरियों को बखूबी जानते हैं। अब समय आ गया है कि देश की तमाम ऐसी धार्मिक संस्थाओं व ऐसे धर्म गुरुओं की धर्म और अंधविश्वास के नाम पर जुटाई धन-संपत्ति की जांच करते हुए उसे कानून के दायरे में लाया जाए। आज ये संस्थान काले धन को श्वेत करने के भी माध्यम बन गए हैं। आश्रमों अथवा डेरों का धर्म, नैतिकता और अध्यात्म से कोई लेना-देना नहीं है। फिर भी समाज में इनकी पैठ लगातार बढ़ रही है। कानून के दबाव में रामपाल और उनके समर्थकों की घेराबंदी तो हो चुकी है, परंतु भविष्य में जनता ऐसे बाबाओं के चंगुल में न फंसे, इसके लिए समाज को भी आस्था और अंधविश्वास में फर्क करना आना चाहिए। ऐसे बाबाओं से देश के संविधान को भविष्य में चुनौती न मिले, इसके लिए भी राजनेताओं को समय रहते आत्ममूल्यांकन करने की आवश्यकता है। 

बच्चे पैदा कराने से लेकर स्वर्ग तक का मार्ग 
रामपाल कई लाइलाज बीमारियों का निदान महज आशीर्वाद से करने का दावा करता है। इसके लिए साधक को स्पेशल पाठ कराना पड़ता है। इस पाठ पर 10 हजार रुपए खर्च आता है। कैंसर से पीडि़त कई लोग भी आश्रम आते हैं। यहां आश्रम के प्रबंधक पहले उन्हें गुरु दीक्षा लेने और फिर आशीर्वाद मिलने की बात करते हैं। ऐसा प्रचार किया जाता है कि रामपाल का सत्संग सुनने से भूत-प्रेत का साया चला जाता है। आश्रम की किताब में चरखी दादरी की एक महिला के हवाले से बताया गया है कि एक हादसे के बाद उसके पति की कमर के चारों तरफ खून टपकता था। गुरुजी की दीक्षा लेने से पति सही हो गए। रामपाल के आश्रम में कई ऐसे लोग भी आते हैं, जो मृत्यु शैया पर होते हैं। प्रबंधन कमेटी कई ऐसे किस्से सुनाती है, जिसमें बाबा के दर्शन मात्र से मृत प्राय व्यक्ति भी जिंदा हो उठा। अम्बाला के रामस्वरूप का उदाहरण भी ऐसे शख्स के रूप में दिया जाता है, जिसे बाबा ने नया जीवन दे दिया। रामपाल अपने साधकों को दीक्षा देकर सतलोक यानी स्वर्ग की प्राप्ति का दावा करता है। पहले दीक्षा दिलाता है, फिर चार महीने लगातार सत्संग में आने में सत्यनाम देते हैं। अंत में सारनाम मिलता है, जो बहुत कम साधकों को मिलता है। आश्रम में उनकी गिरफ्तारी से पहले मोर्चाबंदी करने वाले तमाम साधकों को रामपाल ने सारनाम देने का ऐलान कराया था। समर्थकों को आध्यात्म की घुट्टी पिलाकर रामपाल ने खुद भौतिकता का दामन थाम रखा था। हिसार के बरवाला में लगभग 12 एकड़ में फैले रामपाल के सतलोक आश्रम में उसने ऐशोआराम की तमाम सुविधाएं जुटा रखी थीं। अब तक लोगों की नजरों से दूर रहे आश्रम का तिलिस्म आखिरकार सार्वजनिक हो ही गया। रामपाल की विलासितापूर्ण जिंदगी की तस्वीरें उजागर हो गई। आश्रम में पांच एकड़ में तो तहखाना ही है, जिसमें अभी घुसा नहीं जा सका है। पल-पल की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए यहां 800 सीसीटीवी कैमरे लगाए हुए थे। भवन में जगह-जगह लिफ्ट लगी हुई हैं। आश्रम में बड़ा आलीशान स्वीमिंग पूल बना है। साथ में बड़ा लग्जरी सुविधाओं वाला बाथरूम भी है। इसमें विदेशी फिटिंग लगी है। आश्रम से बाहर आने पर महिलाओं ने भी चैंकाने वाले अनेक खुलासे किए। उनके अनुसार रामपाल के निजी कमांडो उन्हें बंधक बनाकर दुष्कर्म तक करते थे और ऐसी जगह रखते थे कि किसी तक उनकी आवाज नहीं पहुंच सकती थी। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दिनों से उनसे दुष्कर्म किया जा रहा था। राजस्थान के बीकानेर के चिरंजी, बिरमो, जयपुर की रोशनी व उदयपुर की राजबाला ने बताया कि हमें प्रसाद दिया था। उसे खाने के थोड़ी ही देर बाद नशा हो गया था। इसके बाद हमें कुछ नहीं मालूम कि हमारे साथ क्या किया जा रहा है। प्रसाद ऐसा होता है कि उससे दिमागी संतुलन ही बिगड़ जाता है। 

कुछ इस तरह का है रामपाल का इतिहास 
वह पहली बार 2006 में आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती की पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश पर विवादास्पद टिप्पणी कर चर्चा में आए थे। रामपाल का सबसे बड़ा हिंसक संघर्ष 2006 में आर्य समाज के अनुयायियों के साथ हुआ था, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। उसी हिंसक संघर्ष से जुड़े मुकदमे रामपाल पर चल रहे हैं, वे कुछ वक्त जेल में भी रहे, फिर उन्हें जमानत मिल गई। लेकिन अदालत में पेशियों पर गैर-हाजिरी की वजह से उनकी जमानत रद्द कर दी गई। अगर वह सभी समुदायों से शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व बनाए रखते, तो अनेक ऐसे धमगुरुओं की तरह उनका भी कामकाज चलता रहता। रामपाल का जनाधार वैसे भी ऊंची और ताकतवर जातियों के मुकाबले दलित और अति पिछड़ी जातियों में ज्यादा था, लेकिन उन्हें अपनी शक्ति और महानता पर जरूरत से ज्यादा विश्वास हो गया था, जिसका फल पिछले दिनों के हिंसक टकराव में देखने को मिला है। रामपाल इंजीनियर से कथित संत बने। उन्होंने कबीर पंथ को अपनाकर 1999 में करौंथा में सतलोक आश्रम की स्थापना की। आज यह आश्रम 16 एकड़ की भूमि में फैला है। आश्रम किसी किले से कम नहीं है। तीन पर्तो में बनी दीवारों को आसानी से पार नहीं किया जा सकता। इसमें एक लाख भक्तों के बैठने और 50 हजार से अधिक के रहने व खाने की पूरी व्यवस्था है। उन्होंने कई और आश्रम स्थापित किए, जिनमें बरवाला का आश्रम भी शामिल है। बाबा के पास इस समय सत्तर से अधिक महंगी गाडि़यां हैं। दिल्ली, राजस्थान व मध्य प्रदेश में भी रामपाल की करोड़ों की संपत्ति है। कुल मिलाकर पिछले एक दशक में बाबा ने सौ करोड़ से भी अधिक का अपना साम्राज्य खड़ा कर लिया। जहां तक स्वयंभू संत बाबा रामपाल का सवाल है तो वह अचानक ही सुर्खियों में नहीं आए। गाड़ी के बीच में पर्दा इस तरह से लगाया गया था कि ड्राइवर भी रामपाल को नहीं देख सकता था। गाड़ी के सारे शीशे बुलेट प्रूफ होने के अलावा अंदर की साइड एक प्लेट लगी हुई है। जिससे रामपाल भी शीशे से नहीं देखे जा सकते थे। सतलोक आश्रम के प्रमुख रामपाल की खीर खासी चर्चा में रही है। कहते हैं कि एक बार यदि कोई बाबा की खीर खा ले तो वह उसका मुरीद बन जाता है। कबीरपंथी होने का दावा करने वाले रामपाल के आशीर्वाद से निःसंतान को संतान प्राप्ति और हर बीमारी के इलाज का दावा भी किया जाता है। ऐसे किस्से सतलोक आश्रम की किताबों में भी बताए गए हैं। ज्ञान और गंगा किताब में कई किस्सों का उल्लेख है। संत रामपाल की खीर को लेकर कई कहावतें प्रचलित हैं। सतलोक आश्रम में हर महीने की अमावस्या पर तीन दिन तक सत्संग होता है। तीनों दिन साधकों को खीर जरूर मिलती है। दूसरे व्यंजन भी परोसे जाते हैं। साधकों का मानना है कि बाबा की खीर की मिठास से जीवन में भी मिठास आती है। कुछ अनुयायियों ने बताया कि रामपाल को दूध से नहलाया जाता था और फिर उस दूध की खीर बनाकर प्रसाद के रूप में लोगों में बांटी जाती थी। कहा जाता कि इस प्रसाद से सभी तरह के दुख दूर हो जाएंगे। बाबा रामपाल ने अपने बरवाला (हिसार, हरियाणा) स्थित सतलोक आश्रम में गलत काम होने की बात कबूल कर ली है। हालांकि, उसने सारे अनैतिक कार्यों का ठीकरा अपने कर्मचारियों पर फोड़ते हुए खुद को पाक साफ बताया है। कहा, आश्रम में गलत काम होए, पर मन्नै नहीं करे। किसने किए ये गलत काम, इस सवाल के जवाब में रामपाल ने सेवादार और समिति वालों को जिम्मेदार ठहराया। आश्रम में हर जगह सीसीटीवी कैमरे लगे होने पर रामपाल ने कहा कि यह अनुयायियों के सामान की सुरक्षा के लिए लगाए गए हैं। हालांकि, उसने इस बात से इनकार किया कि महिलाओं के टॉयलेट में भी सीसीटीवी लगे हैं। आश्रम में हथियारों व कमांडोज की मौजूदगी, अलमारियों के पासवर्ड्स, कैमरों की हार्ड डिस्क के लापता होने, स्वमिंग पूल और अन्य लक्जरी की मौजूदगी से जुड़े सवालों पर रामपाल चुप्पी साध गया। आश्रम से पुलिस ने रामपाल की बुलेट प्रूफ गाड़ी और लग्जरी बस समेत 88 वाहन बरामद किए। एक जिप्सी, दो ट्रैक्टर ट्राली और तेल का एक टैंकर मिला। टैंकर में 1200 लीटर केरोसीन है। करीब साढ़े तीन लाख रुपए की नकदी भी मिली है। कमांडोज की 400 पोशाक, 8 हार्ड डिस्क, 250 डंडे भी मिले हैं। यहीं से वह शक के घेरे में आ जाते है।

हमेशा विवादों के घेरे में रहे रामपाल 
रामपाल नौकरी के दौरान से ही विवाद के चलते 1995 में सिंचाई विभाग में जेई पद से इस्तीफा दिया। हालांकि यह वर्ष 2000 में मंजूर हुआ। इसको लेकर भी विवाद है कि उन्होंने मर्जी से इस्तीफा दिया या बर्खास्त किया गया। इस्तीफा मंजूर होने से पहले ही रामपाल ने अध्यात्म के क्षेत्र में हाथ आजमाना शुरू कर दिया था। सबसे पहले अपने घर से ही सत्संग करना शुरू किया। बाहर से तो कुछ लोग आते लेकिन  गांव वालों पर ज्यादा असर नहीं पड़ा। गांव में बात नहीं बनी तो 1996-97 में जींद की राम कॉलोनी (इंप्लाइज कॉलोनी) में सत्संग शुरू किया। 500 गज में आश्रम और ‘तपस्या’ के लिए गुफा बनाई। सुबह-शाम तपस्या होती। बताते हैं कि रामपाल के अनुयायियों ने उसे कबीर का अवतार प्रचारित करना शुरू किया। मासिक सत्संग में भीड़ जुटने लगी तो विरोध भी खड़ा होने लगा। पांच साल यहां ठिकाना बना रहा। इसी बीच रामपाल ने करौंथा में चार एकड़ में आश्रम बनाना शुरू किया। बाद में जींद से उनका ठिकाना शिफ्ट हो गया। जिस भवन में आश्रम था, अब उसमें रामपाल का अनुयायी प्रकाश परिवार के साथ रहता है। कॉलोनी के लोग कहते हैं कि करौंथा में आश्रम बनने के बाद रामपाल जींद में नहीं लौटा। वर्ष 2003 में रामपाल ने यमुनानगर के दशहरा ग्राउंड में समागम के लिए टैंट लगवाया। समागम 9 दिन चलना था लेकिन दो दिन बाद ही रामपाल की पुस्तक में आर्य समाज व सिख धर्म के लिए बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी का विवाद खड़ा हो गया। सिख व आर्य समाज के लोगों ने रामपाल का विरोध किया। सरदार अजिंदरपाल सिंह के अनुसार, सिख समुदाय की मांग थी कि रामपाल का कार्यक्रम बंद किया जाए। आमने-सामने की नौबत आ गई। तत्कालीन एसपी राजेंद्र सिंह हरकत में आए और रामपाल को रात के समय कार्यक्रम बंद कर तंबू उखाड़कर जाना पड़ा। उसके बाद रामपाल ने यहां पर कोई कार्यक्रम नहीं करवाया। चर्चा है कि रामपाल यमुनानगर में भी आश्रम बनवाना चाहता था। 2003 में रामपाल ने करौंथा आश्रम में डेरा डाला। 2006 में स्वामी दयानंद की पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश पर टिप्पणी के बाद आर्य समाजियों ने ग्रामीणों की मदद से आश्रम घेर लिया। 13 जुलाई 2006 की रात पुलिस ने रामपाल को अर्धसैनिक बलों की मदद से चार घंटे चले ऑपरेशन के बाद बाहर निकाला। हत्या के आरोप में रामपाल व उसके 37 अनुयायियों को गिरफ्तार किया गया। उसके बाद के सात साल इस आश्रम पर कब्जे को लेकर विवाद चलता रहा। फरवरी 2013 में सुप्रीम कोर्ट से आश्रम वापस मिलने के बाद हजारों समर्थक आश्रम में आ गए। जुलाई 2013 में आर्य समाजियों के आह्वान पर आश्रम को घेरने के लिए हजारों लोग करौंथा पहुंचे। हिंसा में तीन लोग मारे गए। करौंथा के अलावा रामपाल ने बरवाला में सतलोक आश्रम बनाया। आर्य समाजियों से विवाद के बाद करौंथा आश्रम हाथ से फिसला तो जुलाई 2013 में रामपाल ने बरवाला में डेरा डाल लिया। खेतों के बीच बनाए इस आश्रम में किलेबंदी पर खास ध्यान दिया गया। दीवारें भी ऐसी बनाई कि लांघना मुश्किल हो। इतनी किलेबंदी के बावजूद विवादों का साया आश्रम तक पहुंच गया। 




(सुरेश गांधी)

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