आस्था के नाम पर लोगों को लूटने के धंधे का प्रचलन चल गया है। लोगों की भावनाओं से अच्छा खिलवाड़ भी होता है। लेकिन हम कभी नही सुधरते हैं। आखिर हम सुधरेगें क्यों ? लालच, परेशानी, तरक्की पाने की अभिलाषा, औरों से जलन की भावना, हमें उलझा के जो रखती है। जिसका फायदा कोई और उठाता है। जो हमारी भावनाओं के साथ आस्था को भी छलता है। ये जानकर भी हम अंजान बने रहते हैं। आंखे बंद और जुबान में ताला लगा लाते हैं। वैसे एक बात तो है। देश में ईश्वर से सीधा सम्पर्क रखने वाले बाबाओं की कमी नही है। आप के संदेश को ईमेल से तेज पहुंचा देते हैं। आंख बंद कर भगवान से बात कर लेते हैं। आप के कष्टों को हरने के लिए तथपर रहते हैं। कभी ये पूजा तो कभी वो पूजा कराओं तो सुखी रहोगे। सब कुछ अपना पूजा कराने में न्योछावर कर दो। बहुत वक्त होता है, हम लोगों के पास बर्बाद करने के लिए। जिससे इनकी दुकान अच्छे से चल जाती है। लोग भगवान की पूजा छोड़ इनकी पूजा करना शुरू कर देते हैं। परेशानियों का समाधान, बाबा के दरबार। बस एक बार फंस जाओ इस दलदल में उसके बाद सारे सुख-दुख भूल जाओगे।
अभी हाल में हरियाणा के हिसार के बरवाला में स्थित सतलोक आश्रम के संचालक संत रामपाल महाराज की गिरफ्तारी का पंजाब व् हरियाणा हाईकोर्ट ने आदेश दिया था। आश्रम के अनुयायियों ने रामपाल को अस्वस्थ बताते हुए उनकी गिरफ्तारी के आदेश मानने से स्पष्ट रूप से मना कर दिया। ऐसे में प्रशासन व संत रामपाल के अनुयायियों में टकराव शुरू हो गई थी। रामपाल के अनुयायियों ने संत रामपाल की सुरक्षा बढा दी गई थी। प्रशासन ने भी उन्हें अदालत में पेश करने के लिए पुलिस व पैरामिलिट्री फोर्स के जवानों को किसी भी अपात स्थिति से निपटने के लिए तैयार किया था। घर बार का काम छोड़ हजारों की संख्या में रामपाल के समर्थक महिलाएं अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ बिना किसी अंजाम की परवाह किए बैठी हुई थी। एक तरफ सतलोक आश्रम छावनी में दूसरी तरफ समर्थक भी अड़े थे। अपने गुरू को बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थे। पुलिस भी बेबस सी हो रही थी। कोर्ट के आदेश का पालन भी नही हो पा रहा था। ऐसे में कोर्ट को क्या जवाब दिया जाए प्रशासन सोच में पड़ा था। रामपाल के लिए उनके अनुयायी जान देने पर तुल गए। हर तरफ आवाज़ की गिरफ्तार करने से पहले हमें मारना होगा। वाह रे अंधविश्वास, क्या जादू है तेरा ? हम अपनी आस्था को लेकर जिनके पास जाते हैं।
क्या कभी हमने सोचा की वह भगवान के संदेशवाहक कैसे बन गए ? जो कष्टों को दूर करने का दावा करता है, उन्होंने क्या कष्ट झेला है। थोड़ी सी जिंदगी में परेशानी आते ही बाबा के दरबार में अरदास देने पहुंच जाते हैं। भगवान के वो संदेशवाहक सब कुछ सही करने का वादा करने लगते हैं। अगर आप को ऊपर बैठे ईश्वर पर भरोसा नही है तो ऐसे बाबाओं के पास क्यों जाते हो। क्या भगवान केवल इन्ही की प्रार्थना को सुनता है। मेरा उद्देश्य किसी धर्म की आस्था को ठेस पहुंचाने का नही हैं। दुख होता है जब आस्था के नाम पर लोगों से खिलवाड़ किया जाता है। एक सच्चा सिद्ध पुरूष को दुनिया की मोह माया से कोई मतलब नही है। भगवान का भजनकर लोगों की सेवा ही अपना धर्म समधते हैं। लालसा नाम की कोई चीज उनके अंदर व्याप्त नही होती। आज कल कई ऐसे बाबाओं के उदाहरण मिल जाएगें। जो कहते है कि लोगों के हित में समर्पित हैं। लेकिन लालसा कूट-कूटकर अंदर भरी पड़ी है। क्या हमने कभी सोंचा है? हम जिसके पास जाते हैं, समस्याओं को लेकर कितने आराम की जिंदगी गुजर बसर करते हैं वो। गाड़ी की सवारी, महंगा मोबाइल फोन, हर तरह की सुविधा से उनका दामन भरा रहता है। सिर्फ हमारी वजह से। गुरू बनाने का शौक अच्छा है। गुरू बनाओं पर ये भी देखों की उस गुरू में आखिर है क्या? जो उसे गुरू कह सको।
ईश्वर का चमत्कार हम सबकों नज़र नही आता। लेकिन बाबा का चमत्कार तो ईश्वर से बड़ा हो जाता है। सिर्फ अगर वो इतना कह दे कि जलेबी खाओं तो सारे कष्टों से निजात मिल जाएगी। फिर क्या जलेबी खुद खाकर बाबा को रसमलाई खिलाओ। हर तरफ अपना विज्ञापने देकर लोगों को मूर्ख बनाने के सिवा कुछ नही करते। हम सब भी इनके अंधविश्वास की पूजा करते है। हमारी लालसा भी बढ़ती जाती है। मनुष्य का स्वाभाव ही ऐसा है। कई ऐसे बाबा जिन्हें अपनी करतूतों की वजह से जेल जाना पड़ा है। हम उन्हें अपना गुरू मानते हैं। गुरू अपने कर्मों की वजह से जेल में हैं। और बाहर उनकी पूजा के लिए पूजारी बैठे पड़े हैं। अब भगवान के संदेशवाहक बने जो फिरते थे। ईश्वर से कहकर अपनी साफ छवि को दुनिया के सामने प्रकट करें। कुछ काम नही तो चार-पांच मंत्र और कुछ धार्मिक किताबें पढ़कर चलों लोगों को बरगलाते हैं। अच्छी सोच हैं। इज्जत भी और पैसा भी। दोनों एक साथ, घर बैठे कहां ऐसी सुविधा मिलेगी। आस्था के नाम पर अच्छा खासा दान भी मिल जाता है। जो कुछ हरियाणा के हिसार के बरवाला में स्थित सतलोक आश्रम में हुआ। उससे तो कुछ लोगों की आंखे खुल जानी चाहिए। रामपाल ने आखिर गिरफ्तारी दी। लेकिन कितने लोग इस पूरे प्रकरण में घायल हुए। साथ ही चार लोगों की मौत भी हो गई। नुकसान किसका हुआ। गुरू का या फिर उनके सुरक्षा में बैठे अनुयायिओं का। अब कोई नही ये पूछेगा कि चोट किसको लगी। इलाज कराया की नही। जिनकी मौत हो गई उनके परिवार को देखने तक रामपाल नही जाएगें। इतना भरोसा कि मरने को तैयार हो जाए। अगर ऊपर वाले पर भरोसा नही तो उसके बनाए नुमांइदों पर आखिर क्यों? उसकी मर्जी के बगैर पत्ता तक नही हिल सकता, तो ऐसे बाबा क्या कर पाएगें जो स्वार्थी और लालची होते है। आखिर कब तक हम लोग इनके झांसे में आते रहेगें । कब तक इनके झूठी आस्था के चक्कर में फसते रहेगें? कहा गया है जिसे खुद पर भरोसा होता है ईश्वर भी उसकी मद्द करता है। तो फिर आखिर ऐसे बाबाओं के लिए ये कैसी आस्था रखते हैं हम। जो ढोंग करे फिरते हैं।
रवि श्रीवास्तव
रायबरेली,
संपर्क :9718895616, 9452500016
लेखक, कवि, व्यंगकार, कहानीकार
माखनलाल पत्रकारिता विश्व विद्य़ालय से पत्रकारिता में परास्नातक किया है।
फिलहाल एक टीवी न्यूज़ ऐजेंसी से जुड़े है।
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