विशेष आलेख : मदद की आस में सरहदी इलाके - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 22 दिसंबर 2014

विशेष आलेख : मदद की आस में सरहदी इलाके

जम्मू-कष्मीर में चैथे चरण के अंतर्गत 18 सीटों पर कुल 49 फीसदी मतदान हुआ। अलगाववादियों के चुनाव बहिश्कार और भारी ठंड के बावजूद मतदान केंद्रों पर मतदाताओं की लंबी-लंबी कतारें देखी गईं। राज्य में इस बार का विधानसभा चुनाव पिछले चुनावों से अलग है। संभवतः यह पहला मौका है जब राज्य में इतनी बड़ी संख्या में मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है। 23 दिसंबर को मतगणना के बाद ही यह साफ़ हो पायेगा कि जनता ने सत्ता की बागडोर किसके हाथ में सौंपी है। लेकिन जिस प्रकार से मतदाताओं ने लोकतंत्र के इस महापर्व में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया है उससे एक बात तो साफ हो गयी है कि वह सत्ता की कमान किसी ऐसी पार्टी को सौंपना चाहती है जो राज्य में विकास के एजेंडे को तरजीह दे और बाढ़ प्रभावितों के पुनर्वास के लिए जरूरी कदम उठाए। 
             
सितंबर में आयी विनाशकारी बाढ़ ने न केवल जम्मू कश्मीर को ज़बरदस्त नुकसान पहुँचाया बल्कि विकास की रफ़्तार पर भी ब्रेक लगा दिया है। बाढ़ में बड़ी संख्या में लोगों की जानें गईं और मकान तबाह हो गए। फसलों के बर्बाद होने के कारण किसानों को भारी नुक़सान उठाना पड़ा तो दूसरी ओर माल-मवेषियों के मरने से लोगों के पास आजीविका का कोई साधन नहीं बचा। बाढ़ के कारण राज्य की व्यापारिक गतिविधियाँ लगभग ठप्प हो गई है। कुल मिलाकर देखा जाये तो इस बाढ़ ने जम्मू कश्मीर के आम जनजीवन को बुरी तरह से प्रभावित किया है। हालाँकि राज्य और केंद्र की ओर से बाढ़ प्रभावितों के पुनर्वास के लिए युद्ध स्तर पर काम किये गए। लेकिन अभी भी ऐसे लोगों की एक बड़ी तादाद है जिनके सर पर न छत का साया है और न ही कोई आजीविका का साधन है। ऐसे में इन लोगों को आने वाली नई सरकार से बड़ी उम्मीदें हैं। बाढ़ के कारण जम्मू संभाग में सबसे ज्यादा नुकसान पुंछ जिले को हुआ। सीमावर्ती जिला होने के कारण यहाँ राहत सामग्री समय पर नहीं पहुँच पा रही है। जिससे समय रहते यहाँ के बाढ़  प्रभावितों को कोई विशेष राहत नहीं मिल पाई है। पुंछ में बाढ़ की वजह से 27 लोगों की जानें गईं और कई बेघर हो गए। जिले की मंडी तहसील के सलोनिया में बाढ़ ने जबरदस्त तबाही मचाई। इस भयावह त्रासदी को गुज़रे दो माह से अधिक का समय हो चुका है लेकिन अभी तक इस गांव में लोगों की जिंदगी पूरी तरह से पटरी पर नहीं लौट सकी है। तबाही के निशान अब भी यहाँ साफ़ देखे जा सकते हैं। फसलें बर्बाद होने और माल-मवेषियों के मरने के कारण गांव वालों के पास आजीविका का कोई साधन नहीं बचा है।

शासकीय स्तर पर सलोनिया में दो पांच पंचायतें है जिन्हें सलोनिया ए और बी के नाम से जाना जाता है। दोनों पंचायतें दस-दस वार्डों में बटी हुईं हैं। बाढ़ ने दोनों ही पंचायतों को ज़बरदस्त नुकसान पहुँचाया है। सलोनिया-बी के रहने वाले षौकत हुसैन बाढ़ की त्रासदी को याद करते हुए बताते हैं कि-‘’ यहां बाढ़ के पानी में पांच कच्चे मकान बह गए जिससे मोहम्मद षफी और गुलाम हुसैन की मौत हो गई। मृतक गुलाम हुसैन के 22 वर्षीय बड़े बड़े बेटे षौकत हुसैन ने बताया कि ’’उनके पिता गुलाम हुसैन और चाचा मोहम्मद षफी पूरे परिवार को सुरक्षित जगह पहुंचाने के बाद घर में भरे पानी को निकाल रहे थे कि अचानक बाढ़ का पानी बढ़ गया और उन्हें अपनी चपेट में ले लिया। इनकी आधी-आधी लाष तकरीबन दो किलोमीटर दूर नाले में मिली लेकिन शरीर का बाकी हिस्सा ढूढ़ने पर भी नहीं मिला। पिता और चाचा की मौत के बाद घर में कमाने वाला नहीं रहा ऐसे में उन्हें खुद मजदूरी करके घर के 16 सदस्यों को पालना है। षौकत हुसैन ने बाढ़ प्रभावितों को मिलने वाली सहायता के बारे में बताया कि उनके गांव को रिलीफ के नाम कुछ भी नहीं मिला। अलबत्ता उस वक्त एक गाड़ी पंजाब से आयी थी जिसने सहायता के नाम पर 4 किलो चावल, 1 किलो खांड, 100 ग्राम चाय पत्ती, 100 ग्राम हल्दी और 100 ग्राम मिर्च दिया था। जो इतने बड़े परिवार के लिए ऊँट के मुंह में ज़ीरा के समान साबित हुआ। 
           
उन्होंने यह भी बताया कि तहसीलदार ने आष्वासन दिया था कि प्रत्येक मृतक के परिवारों को डेढ़ लाख रूपये आर्थिक सहायता दिए जाएंगे। लेकिन सहायता मिलने की जगह हमें केवल दुत्कार ही मिला। शौकत बताते हैं कि हम लोग एक दिन सरकारी सहायता की उम्मीद लेकर तहसीलदार के पास गए और उन्हें अपनी आपबीती सुनाई। लेकिन तहसीलदार ने हमें सहायता पहुँचाने की बजाये पुलिस को बुलाने और जेल भेजने की धमकी ही दे डाली। बाढ़ प्रभावित लोगों की दुर्दशा के बारे में बात करते हुए वार्ड नंबर दस के पंच बाघ हुसैन ने कहा कि सलोनिया-बी में पांच मकान आंषिक या पूर्ण रूप से बर्बाद हो गए और लोग अपने तन के कपड़ों के सिवा कुछ न बचा पाए। बाढ़ के कारण यहां की बिजली व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है। इसके अलावा सड़कों की हालत भी काफी बदतर हो गई है। प्राकृतिक आपदा के बाद सरकारी अधिकारियों के उदासीन रवैये ने यहाँ के लोगों को अंदर से तोड़ दिया है। ऐसे में अब चुनाव के बाद राज्य में बनने वाली नई सरकार से यहां के लोगों कोे काफी उम्मीदें हैं। उन्हें पूर्ण विश्वास है कि आने वाली नई सरकार से आर्थिक सहायता ज़रूर मिलेगी ताकि बाढ़ के पानी में डूब चुकी इन लोगों की जिंदगी दोबारा पटरी पर आ सके।’’ बहरहाल यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि केंद्र में अच्छे दिनों के वादे के साथ सत्ता में आई सरकार, राज्य में बनने वाली नई सरकार के साथ मिलकर जम्मू कश्मीर की जनता के लिए अच्छे दिन किस प्रकार लाती है? 






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हरीश कुमार
(चरखा फीचर्स)

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