पटना। बढ़ती जनसंख्या, बिकती जमीन और बनती मकान के बीच में घटती आम का बगान। यह सिलसिला बदस्तूर दीघा क्षेत्र में जारी है। देखा जा रहा है कि अब आम का बगान लगाने में किसान दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। इसका यह खामियाजा हुआ कि विश्व प्रसिद्ध दीघा के मालदह ने ही किसानों से मोहभंग कर लिया है। वहीं आम बगीचा में कोयल भी कदम रखना ही छोड़ दी। अब कोयल की कूक सुनने में नहीं आती है। आम के पेड़ में जोरदार मोजर लगने के कारण मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया है। कोयल की कूक के बदले मच्छरों की भिनभिनाहट सुनने में आती है। फेबीकोल की तरह मच्छर आकर चिपक जाता है।
पेड़ों में यहां एक साल के बीच में मालदह आम फलने लगाः आम का बगान रखने वाले किसान बगान को बेचने को बाध्य हैं।सरकार की ओर से किसी तरह का प्रोत्साहन नहीं मिलने से हलकान किसान बगान बेचकर परिवार की आवश्यकता पूर्ण करते हैं। अब तो स्थिति यह है कि जो पुराना पेड़ है उसको काटने के बाद नया पेड़ लगाया ही नहीं जा रहा है। जो पेड़ है उसमें आवश्यक खाद आदि नहीं देने से जमीन का उर्वरा शक्ति ही घट गयी है। इसका नतीजा यह निकला कि एक साल के बीच करके पेड़ में मोजर लगता है और लोगों को आम मिलता है।
मालदह आम के रसिक बगान में जाकर आम खरीद लेतेः आम बहुमंजिला मकान बनाने में लेने लगे हैं। के बदले में ईट से निर्मित सकता है। अब तो लोग मकान के सामने फैंशन के रूप में आम का पेड़ लगाने लगे हैं। पर्याय बन गया प्रकृति से प्राप्त खिलवाड़ करने को लेकर पक्षी अब कोयल की कूक दीघा में सुनने में नहीं आती। बदले में दीघा में मच्छरों की भिनभिनाहट सुनने में आती। इससे दीघावासी परेशान हैं। आप परेशान हो रहे होंगे कि क्यों बारम्बार दीघा का नाम लिया जा रहा है। हां,दीघा में विश्वविख्यात मालदह आम का वाटिका था। जो समय के अन्तराल में आम का बगीचा लुफ्त हो गया। वहीं मालदह आम दुलर्भ हो गया। वजह साफ है कि आम का बगीचा के प्रति किसान उदासीन हो गए हैं। जमीन की कीमत अधिक होने के कारण बगीचा की जमीन बेचना शुरू कर दिए है। अब आम के बगीचे में निर्जीव पत्थरों का आशियाना बन गया है। ने जा रहा है दीघा के मालदह।

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