उत्तराखंड की विस्तृत खबर (31 मार्च) - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 31 मार्च 2015

उत्तराखंड की विस्तृत खबर (31 मार्च)

गंगा को प्रदूषित होने से रोकने के लिए पहले ही कई कानूनों में किया गया है प्रावधान
  • कानून से नहीं, जनजागरण से रुकेगा गंगा प्रदूषण
  • प्रदूषण का स्तर जांचने को लग रही आटोमेटिक मशीनें
  • नेशनल ग्रीन ट्रब्यूनल पहले से ही कर रहा है यह काम

देहरादून,31 मार्च । केंद्र सरकार अब एक बार फिर गंगा और दूसरी नदियों में बढ़ रहे प्रदूषण को लेकर कानून बनाने की बात कर रही है। सरकार और अधिकारी पहले से बने कानून ही ठीक से लागू नहीं करा पा रहे हैं। अब इस बात की क्या गारंटी है कि नया कानून ठीक से लागू होगा। प्रदूषण रोकने के मकसद से नेशनल ग्रीन ट्रब्यूनल पहले से ही बना है।इसके कई महत्वपूर्ण फैसलों ने सरकार को कटघरे में खड़ा किया। जब तक लोगों के व्यवहार में बदलाव नहीं आएगा तब तक कोई भी कानून अपना काम ठीक से नहीं कर सकता। वास्तव में प्रदूषण रोकने के लिए किसी एक्ट की आवश्यकता से ज्यादा लोगों के व्यवहार में परिवर्तन लाने की है। नगर निगमों और पालिकाओं में मजबूत व्यवस्था बनाये जाने की आवश्यकता है। देखा ये जा रहा है कि निगमों और पालिकाओं ने वोट बैंक की राजनीति के चलते कई महत्वपूर्ण फैसले नहीं लिए हैं। वास्तव में चुनौती उद्योगों के कूडा निस्तारण करने या प्रदूषित पानी छोड़े जाने की है ही नहीं । इसके लिए तो नियम कायदे पहले से ही बने हैं। उद्योग भी पहले से ही चिंहित हैं। अगर ये उद्योग नियमों का पालन नहीं करते तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। यदि कार्रवाई नहीं होती तो संबधित विभाग या अधिकारी सीधा दोषी है। अब तो ऐसी तकनीक विकसित हो चुकी है जो प्रदूषण के कारण को ही सीधा बता देगी। गंगा किनारे बसे शहरों में इस तरह की मशीनों को लगाने की तैयारी हो चुकी है । यदि कालीफाम की मात्रा बढ़ती हुई दिखाई देगी तो साफ पता चल जाएगा कि किस इलाके से सीवर का पानी बिना ट्रीट हुए गंगा या दूसरी नदियों में मिल रहा है। ये डाटा सीधा सर्वर रूम में पंहुच जाएगा। गंगा किनारे बसी कालोनियों और आश्रमों का गंदा पानी नदी में मिल रहा है। इनके खिलाफ कार्रवाई के लिए नए नियमों की आवश्यता नहीं है बल्कि ऐसे लोगों के खिलाफ सीधा कार्रवाई करने की जरूरत है। अगर उद्योगों का गंदा पानी या केमिकल बिना ट्रीटमेंट के छोड़ा जाएगा तो नदी के पानी में बायोलोजिकल आक्सीजन डिमांड बढ़ जाएगा और पानी में मौजूद आक्सीजन की मात्रा कम हो जाएगी। ये जानकारी भी सर्वर रूम में फौरन मिल जाएगी और संबधित उद्योग या क्षेत्र के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। इन दो प्रमुख कारणों को रोक के लिए पहले से बने नियम कानून ही काफी हैं। दरअसल, समस्या उन अदृश्य कारणों की है, जिन पर सरकार ध्यान ही नहीं देना चाहती। बार-बार पालीथीन पर प्रतिबंध की चर्चा होती है। कुछ समय तक सख्ती भी होती है लेकिन फिर से हालात वही हो जाते हैं। इसके लिए दोषी अधिकारी, कर्मचारी, दुकानदार और ग्राहक हैं। इस व्यवहार में परिवर्तन की आवश्यकता है। अगर पालीथीन बनाने वाले उद्योगों को सरकार मंजूरी देगी तो पालीथीन पर कभी भी प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता। साथ ही आज पैक्ड फूड भी पालीथीन में ही आता है। ऐसे मैटेरियल को ही मंजूरी दी जाए जिसका निस्तारण हो सके। इसमें स्थनीय नगर निगम, पालिकायें, पंचायतें और दूसरी इकाइयों का महत्वपूर्ण रोल है और ये अपने काम को अभी तक तो ठीक से अंजाम नहीं दे पाई हैं। हर रोज शहरों में इकठ्ठा होने वाला कूड़ा एक बड़ी चुनौती है। दुनिया में इस चुनौती से निपटने के लिए तकनीक मौजूद है लेकिन गंगा किनारे बसे शहरों और कस्बों में इस तकनीक का कोई इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। राजनीतिक दखलअंदाजी से इस बड़ी चुनौती को एक तरह से नजरअंदाज किया जा रहा है। उत्तराखंड में ही हर रोज हजारों टन कूड़ा इकठ्ठा हो रहा है जो इधर उधर दिखाई देता है। निकायों ने जगह जगह पर बड़े बड़े कूड़ेदान तो बनाए हैं लेकिन कूड़ा निस्तारण और दूसरी जगह पर इस गंदगी को ले जाने की व्यवस्था ही नहीं बनाई। कई बार इस तरह का कूड़ा नदियों में जाने अनजाने चला जाता है। गंदी पालीथीन का प्लास्टिक कूड़ा आसानी से नदियों के किनारे देखी जा सकता है। इस पर सख्ती करने की आवश्यता है। उत्तराखंड में स्थापित कई तीर्थों में हर साल लाखों की संख्या में भक्त भगवान के दर्शन के लिए पंहुचते हैं। लेकिन इन तीर्थयात्रियों की संख्या को नियंत्रित करने की आवश्यकता है। इन यात्रियों के एक शहर में रहने के लिए व्यवस्था नहीं है इसकी वजह से कई तरह की समस्या होती है। ये ही भक्त कई बार गंगा में पूजा पाठ का कूड़ा डालते हैं, स्नान करते हैं, कपड़े धोते हैं और कुल्ला करने जैसी नीच हरकत भी करते हैं। आश्चर्य तो ये है कि इसी गंगा जल को वो पूजा अर्चना के लिए अपने घरों में भी ले जाते हैं। एसे भक्तों को जागरूक करने की आवश्यता तो है ही इन पर सख्ती करने की भी आवश्यता है। जाहिर है कि सैकड़ों किलोमीटर के इलाके में ऐसे लाखों भक्तों पर नजर नहीं रखी जा सकती। लेकिन गंगा को बचाने की नीयत से काम कर रहे मा गंगा के भक्तों की मदद से ऐसी सभी गतिविधयों पर रोक लगाई जा सकती है। कुछ चुनिंदा घाटों में सख्ती करके इस समस्या को भी नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए नियम बनाने से ज्यादा एक्शन लेने की आवश्यता है।

अब गैस से भी बनेगी राज्य में बिजली, सूबे की बिजली उत्पादक इकाइयों को गैस की आपूर्ति करने को केंद्र की मंजूरी
  • काशीपुर में तीन साल से तैयार खड़ी है तीन इकाइयां
  • गेल काशीपुर तक पहले ही बिछा चुका सप्लाई लाइन
  • गैस न मिलने की वजह से नहीं शुरू हो सका उत्पादन

देहरादून,31 मार्च । सूबे में बन रहे मासूसी भरे माहौल में एक अच्छी खबर यह आ रही है कि आने वाले दो-तीन महीने में ही राज्य में गैस से बिजली उत्पादन शुरू होने की संभावनाएं बन गई है। केंद्र सरकार ने राज्य की बिजली उत्पादक इकाइयों को जल्द ही गैस उपलब्ध कराने पर सहमति जता दी है। राज्य में अभी तक केवल जल विद्धयुत परियोजनाएं ही हैं। इनका भी हर स्तर पर विरोध हो रहा है। इसी वजह से कई परियोजनाएं अधर में हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए काशीपुर में गैस से बिजली बनाने वाली तीन इकाइयां स्थापित की गई हैं। ये इकाइयां 2012 से ही उत्पादन करने को तैयार है। लेकिन केंद्र सरकार इन इकाइयों को गैस की आपूर्ति ही करने को राजी नहीं थी। आलम यह है कि गैस अथारिटी आफ इंडिया (गेल) से इन इकाइयों को गैस की आपूर्ति करने के लिए काशीपुर तक पाइप लाइन भी बिछा रखी है। बताया जा रहा है कि गैस आपूर्ति पर रिलायंस समूह का एकाधिकार होने की वजह से इस छोटी इकाइयों को गैस ही नहीं मिल रही थी। सूत्रों ने बताया कि केंद्र सरकार ने इस मामले में गंभीर रुख अपनाया है। केंद्र ने विदेश से एलएनजी (लिक्विडफाइड नेचुरल गैस) लेकर देश की बिजली परियोजनाओं को आपूर्ति का निर्णय लिया है। माना जा रहा है कि अगल एक-दो माह के अंदर की देश की बिजली परियोजनाओं को गैस की सप्लाई मिलना शुरू हो जाएगी। इसी के तहत प्रदेश के काशीपुर में लगी तीनों इकाइयों से अगले दो से तीन माह के अंदर ही बिजली का उत्पादन शुरू हो जाएगा।  काशीपुर की ये बिजली उत्पादक इकाइयां ऊधमसिंह नगर जिले में बने राज्य सरकार के स्टेट ग्रिड से लिंकिंग लेकर सीधे सेंट्रल पावर सप्लाई ग्रिड से पहले ही जुड़ चुकी है। इनका ट्रायल भी हो चुका है। लेकिन गैस की नियमित सप्लाई न मिलने का रास्ता न खुलने से इन इकाइयों पर बंदी की तलवार लटक रही थी। अब इनमें जल्द ही उत्पादन शुरू होने की संभावनाएं प्रबल हो गई हैं।

नौ सौ मेगावाट है उत्पादन क्षमता
काशीपुर में लगी तीन इकाइयों की बिजली उत्पादन क्षमता नौ सौ मेगावाट रोजाना है। श्रावंती बिजली परियोजना की उत्पादन क्षमता साढ़े चार सौ मेगावाट है। इसी तरह के दो अन्य परियोजनाओं गामा और वीटा से भी 250-250 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा। श्रावंती तो तत्काल ही उत्पादन शुरू करने को तैयार है और गामा व वीटा गैस आपूर्ति मिलना शुरू होने के एक माह के अंदर ही उत्पादन शुरू कर देगी।

राज्य सरकार से होगा खरीद का एग्रीमेंट
इस तीनों इकाइयों से बिजली खरीदने के लिए राज्य सरकार जल्द ही एग्रीमेंट करने वाली है। कैबिनेट इस बारे में मंजूरी दे चुकी है। उद्योग प्रतिनिधियों और ऊर्जा सचिव के बीच इस बारे में दो दौर की वार्ता में बिजली की कीमत पर चर्चा भी हो चुकी है। माना जा रहा है कि सरकार और बिजली उत्पादक इकाइयों के बीच बिजली खरीद के मामले में 15 अप्रैल तक एग्रीमेंट हो जाएगा। 

निजी हाथों में ही जाएगा एफएल-टू !, केएमवीएन और जीएमवीएन को अस्थायी रूप से दिया गया काम
  • सूबे के शराब कारोबार पर मंडरा रहा है एकाधिकार का खतरा

देहरादून,31 मार्च । कैबिनेट में भारी विरोध को देखते हुए सरकार भले भी इस वक्त एफएल-टू का लाइसेंस केएमवीएन और जीएमवीएन को देने की बात कर रही है। लेकिन माना जा रहा है कि एक मई से यह काराबोर पूरी तरह से निजी हाथों में ही सौंप दिया जाएगा। बताया जा रहा है कि इस बारे में तैयारी पूरी कर ली गई है। सरकार की ओर से राज्य के शराब कारोबार के तरीके में बदलाव के लिए जी-तोड़ मशक्कत की जा रही है। पिछले साल मई माह में पहले सीधे आदेश जारी कर दिया तो भाजपा के दवाब में इसे वापस लेना पड़ा। इस बार कोशिश शुरू की तो अंदर कैबिनेट से सहयोगियों और बाहर भाजपा के विरोध का सामना करना पड़ा। कैबिनेट में एक बार प्रस्ताव टर्न डाउन होने पर इसे मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली एक समिति के पास भेजा गया। इस समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया। लेकिन उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि अफसरों की इस समिति की रिपोर्ट भी नई नीति के पक्ष में नहीं थी। इसके बाद पिछली कैबिनेट में इस प्रस्ताव को आखिरकार सरकार ने किसी तरह से मंजूरी दिलवा ही ली। बताया जा रहा है कि कैबिनेट के एक वरिष्ठ सहयोगी ने हुजूर को शराब कारोबार की तरह से हिमायत पर सवाल उठाते हुए इससे दूर ही रहने की नसीहत तक दे डाली। इसके बाद सरकार के तेवर कुछ नरम हुए। नई एफएल-टू नीति को मंजूरी तो दी गई। लेकिन यह भी जोड़ दिया गया कि यह काम कुमाऊं मंडल में केएमवीएम और गढ़वाल मंडल में जीएमवीएन करेगा। साथ ही इस काम की मानीटरिंग करने के लिए कैबिनेट की एक सब कमेटी भी बना दी गई। अहम बात यह है कि केएमवीएन और जीएमवीएन पहले भी इस धंधे को कर चुके हैं। दोनों निगमों के व्याप्त लालाफीताशाही के चलते ये कभी भी व्यापारी नहीं बन सके। सारा काम सरकारी सिस्टम से ही किया गया। नतीजा यह रहा है कि इस धंधे में दोनों निगम फेल हो गए और आबकारी राजस्व बढ़ने की बजाय कम होने लगा। इसके बाद ही तत्कालीन भाजपा सरकार ने दोनों निगमों से यह काम वापस लेकर एक नई नीति के तहत इस कारोबार को पारदर्शी बनाने की दिशा में काम किया। इसका नतीजा यह रहा कि इस कारोबार से सरकार को मिलने वाला राजस्व लगातार बढ़ता गया। सरकार ने एक बार फिर से 15 साल पुरानी व्यवस्था को लागू करवा दिया है। इन गुजरे 15 सालों में ये दोनों ही निगम अपने मूल काम पर्यटन को बढ़ावा देने में ही पूरी तरह से विफल रहे हैं। ऐसे में ये शराब का बड़ा कारोबार कैसे संभालेगे, यह अपने आप में एक यक्ष प्रश्न है। माना जा रहा है कि कुछ ही दिनों में दोनों निगम इस धंधे को करने में या तो फेल हो जाएंगे या फिर खुद ही कोई वजह बताकर अपना हाथ खींच लेंगे। ऐसे में एफएल-टू के लाइसेंस निजी क्षेत्र को देना सरकार की मजबूरी होगी। उस वक्त सरकार के पास यह कहने का मौका भी होगा कि जब निगम का कर ही नहीं पा रहे हैं तो किया भी जा सकता है। साफ जाहिर है कि सब कुछ पहले से तयशुदा लाइन पर ही चल रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि एफएल-टू के लाइसेंस महज दो लोगों के ही हाथों में जाने से इस धंधे में एकाधिकार के अंदेशे को नकारा नहीं जा सकता है।

श्री अमरनाथ जाने वालों के स्वास्थ्य परीक्षण की तैयारी, सूबे के 21 अस्पतालों में की गई व्यवस्था
  • प्रमुख सचिव ने जारी किए इस बारे में निर्देश
  • अस्पतालों में चिकित्साधिकारी किए नामित

देहरादून,31 मार्च (निस)। सरकार ने तय किया है कि इस साल श्री अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्रियों का सूबे में ही परीक्षण कराया जाएगा। विभागीय प्रमुख सचिव ने इस बारे में अफसरों को निर्देश जारी कर दिए है। राज्य के 21 चिकित्सालयों में यह परीक्षण किया जाएगा। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव ओमप्रकाश ने बताया कि श्री अमरनाथ धाम की यात्रा बेहद कठिन होती है। यात्रा पर जाने वालों को अपने स्वास्थ्य का परीक्षण कराना होता है। इस परीक्षण के लिए राज्य के 21 चिकित्सालयों में चिकित्साधिकारियों को नामित किया गया है। सरकार की कोशिश है कि यात्रा पर जाने के इच्छुक लोगों को घर के नजदीक ही यह सुविधा उपलब्ध हो जाए। प्रमुख सचिव ने बताया कि दून चिकित्सालय के साथ ही राज्य के सभी जिला चिकित्सालयों, हरिद्वार, चंपावत, श्रीनगर, कोटद्वार, रामनगर के संयुक्त चिकित्सालयों के साथ ही हल्द्वानी. अल्मोड़ा और श्रीनगर के बेस चिकित्सालयों, नैनीताल के बीडी पांडे महिला एवं पुरुष चिकित्सालयों, एसपीएस चिकित्सालय ऋषिकेश, श्रीदेन सुमन चिकित्सालय नरेंद्र नगर में इस तरह की व्यवस्था की गई है।

निजी स्कूलों की मनमानी पर शिक्षा मंत्री को घेरा
  • शिकंजा कसने को जीओ जारी करने की मांग

देहरादून,31 मार्च (निस)। निजी स्कूलों की मनमानी और अभिभावकों से खुली लूट के विरोध में आंदोलन कर रहे लोगों ने आज शिक्षा मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी का घेराव किया और इस मनमानी पर रोक लगाने की मांग की।
    आंदोलनकारियों ने आज शिक्षा मंत्री के आवास पर प्रदर्शन किया और कहा कि सरकार ने निजी स्कूलों को मनमानी की छूट दे रखी है। ये निजी स्कूल अभिभावकों का आर्थिक शोषण कर रहे हैं। अफसरों की कहना है कि शिकायत की जाए। ऐसा करने पर बच्चों को स्कूल में प्रताडि़त किया जाता है।

निजी स्कूलों की मनमानी के खिलाफ हल्ला बोल, डीएवी छात्रसंघ अध्यक्ष के नेतृत्व में तीन स्कूलों पर धावा
  • सेंट जोसफ के गेट पर दिया गया धरना, दून इंटर नेशनल स्कूल में फेंकी किताबें, हेरीटेज स्कूल के बाहर भी किया प्रदर्शन

देहरादून,31 मार्च (निस) । निजी स्कूलों की मनमानी के खिलाफ सरकार की नींद न टूटती देख अब छात्र नेताओं ने स्कूलों पर हल्ला बोल अंदाज में प्रदर्शन शुरू कर दिया है। डीएवी छात्रसंघ अध्यक्ष पारस गोयल के नेतृत्व में आज अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं से पहले दून इंटरनेशनल स्कूल पर हमला बोला। यहां छात्रों और स्कूल प्रबंधन के बीच तीखी झड़पें हुई। छात्रों ने लाइब्रेरी की किताबें भी तितर-बितर कर दी। मौके पर पहुंची पुलिस ने किसी तरह से हालात पर काबू किया। इसके बाद छात्रों ने हेरीटेज स्कूल में जाकर प्रबंधन को एक ज्ञापन दिया और अभिभावकों का शोषण रोकने की मांग की। प्रदर्शनकारियों ने राजपुर रोड स्थित सेंट जोसफ स्कूल गेट पर भी काफी देरतक धरना देकर अभिभावकों का आर्थिक शोषण रोकने की मांग की।

पुलिस महानिदेषक पद से दीपक ज्योति घिल्डियाल हुए सेवा निवृत
  • बेदाग छवि व कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी के रूप में रही पहचान

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देहरादून,31 मार्च (निस)। उत्तर प्रदेष से लेकर उत्तराखण्ड तक अपनी बेदाग छवि के लिए प्रसिद्ध पुलिस महानिरीक्षक दीपक ज्योति घिल्डियाल ने मंगलवार को पुलिस सेवाओं से शानदार विदायी ली। 35 वर्शों तक पुलिस विभाग के तमाम पदों पर रहने के बावजूद उनको राष्ट्रपति पुलिस सेवा पदक से भी नवाजा गया था। दीपक ज्योति घिल्डियाल की सेवाएं उत्तर प्रदेष से शुरू होकर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक नौयडा सहित कई स्थानों पर रही । वहीं राज्य निर्माण के बाद वे उत्तराखण्ड में पुलिस अधीक्षक अर्द्धकुंभ, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक उधमसिंह नगर, डीआई जी कुमांयूं, पुलिस महा निरीक्षक इंटेलिजेंस सहित वर्तमान में पुलिस महानिरीक्षक पुलिस आधुनिकीकरण के पद पर तैनात थे। मंगलवार को तमाम पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में उन्हे पुलिस मुख्यालय से भावभीनी विदायी दी गयी। 

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