सरकार को खेती-किसानी की नहीं, उद्योगपतियों की चिंता - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

सरकार को खेती-किसानी की नहीं, उद्योगपतियों की चिंता

  • ऽ वंचित समुदाय को खेती व आवास की जमीन देने के वायदे पर अमल नहीं कर रही सरकार
  • ऽ 26 अप्रैल से भोपाल में सैकड़ों आदिवासियों के साथ प्रसिद्ध गांधीवादी राजगोपाल पी.व्ही. करेंगे उपवास

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भोपाल। मध्यप्रदेश सरकार पर खेती-किसानी की अनदेखी और वंचित एवं आदिवासी समुदाय से किए गए वायदे पर अमल नहीं करने का आरोप लगाते हुए एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रनसिंह परमार ने कहा कि संगठन 26 अप्रैल से भोपाल में बड़ा आंदोलन करने जा रहा है, जिसमें प्रसिद्ध गांधीवादी और एकता परिषद के संस्थापक राजगोपाल पी.व्ही. के साथ सैकड़ों की संख्या में आदिवासी एवं वंचित समुदाय के प्रतिनिधि सामूहिक उपवास करेंगे। श्री परमार ने भोपाल में एक पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए उक्त बातें कही। उन्होंने कहा कि एक ओर भारत सरकार भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के माध्यम से किसानों की जमीन छिनने का काम कर रही है, जिससे देश भर के किसान चिंतित हैं और आंदोलन कर रहे हैं, तो दूसरी ओर प्रदेश सरकार भी अब उसी राह पर चलते हुए कृषि भूमि को गैर कृषि के कार्यों के लिए उपयोग में बदलना आसान कर खेती-किसानी को चौपट करने पर तूली हुई है।

इस वार्ता में मौजूद राजगोपाल पी.व्ही. ने कहा कि एकता परिषद ने जनादेश 2007 एवं जनसत्याग्रह 2012 सहित कई छोटे-बड़े अहिंसक आंदोलनों के माध्यम से भूमिहीनों, आवासहीनों एवं वंचित समुदाय के लिए व्यापक स्तर पर कानून, नीति एवं नियम बनाने के लिए राज्य सरकारों एवं भारत सरकार को जनपक्षीय फैसला लेने के लिए मजबूर किया, जिस पर अमल करने का वायदा राज्य सरकारों एवं भारत सरकार ने किया था। पर पिछले कुछ समय से देखने में आ रहा है कि सरकारें एक ओर जनता के सामने उनके हितैषी बनने की बात कर रही हैं, तो दूसरी ओर गरीबों एवं किसानों को उजाड़ कर उद्योगपतियों एवं पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने वाले कानून एवं नियम बना रही है। ऐसे नियमों से प्रदेश एवं देश का विकास नहीं विनाश होगा। देश में अब तक अधिग्रहित किए गए जमीनों में से महज 32 फीसदी का ही उपयोग किया गया है, ऐसे में और जमीन अधिग्रहित करने का क्या औचित्य है? पहले से विस्थापित लोगों का पुनर्वास नहीं हो पाया है और फिर विस्थापन की तैयारी का क्या मायने समझा जाए?

उन्होंने कहा कि पिछले दिनों मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासियों को बेचने के लिए कानून बना रही थी, पर जन दबाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इससे मुकर गए। मुख्यमंत्री ने कहा कि बिना उनकी जानकारी के इस तरह के प्रस्ताव लाए गए थे। यह बहुत ही हास्यास्पद है कि मुख्यमंत्री की जानकारी के बिना इस तरह के बड़े फैसले उनके मंत्री या अधिकारी ले रहे हैं। अब मुख्यमंत्री ने खेती की जमीन को गैर खेती के काम के लिए डायवर्सन को आसान बनाकर पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने का इंतजाम किया है। एक ओर सरकार लगातार कृषि कर्मण अवार्ड लेकर खेती-किसानी में विकास का ढिंढोरा विदेशों तक पीट रही है, तो दूसरी ओर इस तरह के नियम बनाकर खेती को चौपट करने पर तुली हुई है। प्रदेश में पिछले दिनों हुई ओलावृष्टि से अब तक एक दर्जन से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या कर ली है, पर उनकी चिंता के बजाय वह उद्योगपतियों एवं बिल्डरों को लाभ पहुंचाने के लिए भू राजस्व संहिता और उच्चतम कृषि जोत कानून में बदलाव कर रही है। सरकार किसानों को तत्काल राहत पहुंचाने के लिए कोई कानून क्यों नहीं बना रही है या फिर उनमें संशोधन क्यों नहीं कर रही है? 

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने एकता परिषद द्वारा 2007 एवं 2012 में किए गए आंदोलनों को संबोधित करते हुए अपने को गरीब हितैषी बताया था और भूमिहीनों को भूमि देने और आवास देने का वायदा किया था। भाजपा को 2008 एवं 2013 के चुनावों में इसका फायदा भी मिला, पर क्या उसने वंचितों एवं आदिवासियों से किए अपने उन वायदों को निभाया? उन्होंने कहा था कि गरीब जहां झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं, वहीं उनको पट्टा दिया जाएगा, पर उस पर अमल करने के बजाय वे उद्योगपतियों को कह रहे हैं कि जहां ऊंगली रखेंगे, वहीं जमीन मिल जाएगी। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को एक जनहित याचिका में कहा कि भूमि संबंधी मामलों के जल्द निपटारा एवं समस्याओं के समाधान के लिए प्रदेश में टास्क फोर्स का पुनर्गठित किया जाए, पर सरकार इसके बजाय उद्योगपतियों एवं बिल्डर के लिए सिंगल विंडो पर काम कर रही है।

श्री राजगोपाल एवं श्री परमार ने कहा कि प्रदेश में औद्योगिक विकास हो, पर यह खेती की सिंचित जमीन और आदिवासियों की आजीविका को खत्म करके नहीं, बल्कि खेती के लिए अनुपयोगी एवं बंजर जमीन पर औद्योगिक विकास हो। उद्योग के लिए जितनी जमीन की जरूरत हो, उससे ज्यादा जमीन उद्योगपतियों को नहीं दी जाए। यदि वे तय समय में उसका उपयोग नहीं करते हैं, तो उनसे जमीन वापस ले ली जाए। उन्हें कृषि भूमि एवं 5वीं अनुसूची में संरक्षित जमीन नहीं दी जाए। सरकार को उद्योगपतियों की चिंता से पहले प्रदेश के वंचित एवं आदिवासी समुदाय की चिंता करते हुए उन्हें कृषि भूमि एवं आवास भूमि देने के वायदे पर अमल करना चाहिए, जिससे कि उनकी आजीविका सुरक्षित हो सके।

सरकार द्वारा प्रदेश की एक तिहाई जनता की अनदेखी के कारण एकता परिषद ने 26 अप्रैल से बड़ा आंदोलन करने का निर्णय लिया है। आंदोलन में प्रसिद्ध गांधीवादी और एकता परिषद के संस्थापक राजगोपाल पी.व्ही. के साथ सैकड़ों की संख्या में आदिवासी एवं वंचित समुदाय के प्रतिनिधि सामूहिक उपवास करेंगे, जिसमें भूमि आंदोलन पर देश भर के आंदोलनकारियों का समर्थन लिया जाएगा। पत्रकार वार्ता में एकता परिषद के राष्ट्रीय संयोजक अनीष कुमार एवं सुश्री श्रद्धा कश्यप भी मौजूद थीं।

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