विशेष आलेख : बालश्रम का दंष झेल रहा बचपन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 8 मई 2015

विशेष आलेख : बालश्रम का दंष झेल रहा बचपन

बचपन से जिन बच्चों केे हाथ गुड्डे-गुडियों व मिट्टी के खिलौने से खेलते हैं, आज उन्हीं हाथों को समाज ने जिंदगी भर, मजदूरी व भटकने के लिए छोड़ दिया है। जिस उम्र में बच्चों को मां-बाप का प्यार, समाज से संस्कार, स्कूल से अक्षर ज्ञान मिलना चाहिए, वहीं इसके बदले उसे अपने और परिवार के पेट की खातिर ज़ोखिम भरा काम करना पड़ रहा है। ऐसे बच्चों को ढाबों, होटलों, रेस्टोरेंटों व रेलवे स्टेषन पर काम करते देखा जा सकता है। कमरतोड़ श्रम के बाद दो जून की रोटी कहीं नसीब हो पाती है। हमारे देष में ऐसे ढेर सारे बच्चे हैं, जो फटेहाल जिंदगी जी रहे हैं, जो सड़क किनारे, बस व रेलवे स्टेषन पर कूडे़-कचरे में अपना जीवन तलाष रहे हैं। इन बच्चों को समाज नाजायज़ करार देता है। सड़क पर जीवन बीताने वाले बच्चों की संख्या हमारे देष में लाखों में है। यह प्रष्न उन तमाम देषों के षासन-प्रषासन व नीति नियंता के लिए चुनौती है, जो कहते हैं कि बाल श्रमिक अब न के बराबर हैं। 
           
यूनिसेफ की मानें तो भारत में सड़कों पर जीवन बसर करने वाले बच्चों की संख्या दो करोड़ से भी अधिक है। जो भुखमरी के साथ साथ उपेक्षा उत्पीड़न और षोशण  के भी षिकार हैं। इतना ही नहीं इनसे अनैतिक कार्य भी कराए जाते हैं। भीख मांगने, चोरी और षराब बेचने के अलावा जेब काटने जैसे अनैतिक कार्य इन बच्चों से कराए जाते हैं। जिसकी वजह से इनकी जिंदगी नरकीय बनती जा रही है। पूरे भारत में असामाजिक तत्वों एवं एजेंटों के ज़रिए पैसा कमाने के लिए इन मासूमों का सौदा बेरोकटोक किया जा रहा है। परिणामतः बच्चे भी कच्ची उम्र में षराब, सिगरेट, खैनी, बीड़ी आदि का सेवन करने लगते हैं। दूसरी ओर बाल मजदूरी निषेधाज्ञा और विनियमन कानून को बने ढाई दषक हो गए पर बाल मजदूरी के ग्राफ में कमी आने के बजाय 15 प्रतिषत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। सरकार के कुछ प्रभावी प्रोजेक्ट भी बने और चले भी पर भ्रश्टाचार की गंगोत्री में आकंठ डूब,े सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं ने बच्चों का निवाला ही छीन लिया। जिसमें प्रमुख रूप से ‘बालश्रमिक विषेश विद्यालय’ और एनजीआरपी योजना’ षामिल है। जिसके तहत बालश्रमिकों को मुख्यधारा में लाकर तीन वर्शों का ब्रिज कोर्स, पांच रूपए की दर से मध्याह्न भोजन, सौ रुपए छात्रवृति, नियमित स्वास्थ्य जांच एवं वोकेषनल (रोजगारपरक) टेªनिंग उपलब्ध कराया जाना था। इसके अलावा सरकार ने अभियान चलाया कि ढाबों, होटलों, मनोरंजन केंद्रों सहित छोट-छोटे धंधों में लगे बच्चों को नौकरी पर रखने वालों को जेल की हवा खानी पड़ेगी। कुछ दिनों तक धड़-पकड़ का अभियान ज़ोरों पर रहा, कुछ समय के बाद अभियान भी बंद हो गया। 
           
बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के हुस्सेपुर, चांदकेवारी पंचायत के दलित-महादलित व पिछड़े टोले के नन्हें से हाथ महानगरों की चकाचैंध में जोखिम भरा काम कर रहे हैं। सरयुग, अर्जुन, टुन्नी, दरोगा (काल्पनिक नाम)  आदि बच्चे सूरत(गुजरात) ,दिल्ली, कोलकता, असम आदि जगहों पर आधी मजदूरी में काम करने को मजबूर हैं। सरयुग प्राथमिक स्कूल की पढ़ाई छोड़कर घर की माली हालत सुधारने के लिए सूरत कपड़ा फैक्ट्री में नौकरी कर रहा है। दो साल बाद जब घर आया तो आसपास के अपने स्कूल साथियों के साथ जींस पैंट और टी-षर्ट में हीरो से कम नहीं दिख रहा था। पूर्व के साथी ने जींस पैंट पर लिखे अंग्रेज़ी का षब्द पढ़ा, तो सरयुग अवाक रह गया। अरे, ‘तुम्हें दो साल में अंग्रेजी भी पढ़ने आ गयी। मैं तो एबीसीडी के अलावा कुछ नहीं जाना।’ मित्रों ने कहा, ‘तुम पैसे कमा रहे हो और मैं पढ़ाई कर रहा हूं।’ तुम हीरो दिखते हो और हम सब बच्चे ही दिखते हैं।’ सरयुग घर का इकलौता कमाने वाला है। उसकी कमाई से ही घर-परिवार की गाड़ी चलती है। पढ़ाई से नाता टूटते ही सरयुग समाज, संस्कार, नैतिकता, मां की ममता आदि चीजों से वंचित हो गया। आज वह 13 साल का है और महीने में पांच हज़ार रुपये तक कमाता है। इसके अलावा सरयुग सूरत में गलत लोगों की संगति में आकर षराब, सिगरेट और वयस्क फिल्में देखने का भी आदी हो चुका है।  उससे बात करने पर लगता है कि पूर्णतः वयस्कता प्राप्त कर ली है। हाथ में कीमती मोबाइल पर फूहड़ गीत बजाते हुए गांव-कस्बों से निकलता है, तो तथाकथित समाज के लोग गालियां देते थकते नहीें। पर, भला इसमें सरयुग का क्या दोश ? जब उसकी माली हालत खराब हुई तो कोई उसकी मदद के लिए आगे नहीं आया। किसी ने परिवार वालों को नहीं समझाया कि अभी यह बच्चा है, इसे परदेस कमाने के लिए मत भेजो। इन सवालों में घिरे समाज व सरकार ने आज भी सैकड़ों सरयुग जैसे मासूमों की जिंदगी के सुखद लम्हों को कुंभलाने के लिए छोड़ दिया है। हमारे समाज में पढ़े लिखे लोगों और समाज सेवियों की कमी नहीं हैं। लेकिन वह भी इनके भविश्य को संवारने के बजाय इनके साथ भेदभाव करने से नहीं हिचकिचाते। सरयुग जैसे अनपढ़ ही देष के सामाजिक व आर्थिक विकास में बाधक बनते हंै।   
       
गौरतलब है कि बाल मजदूरों की लंबी सूची है, जो कुपोशित होने के साथ साथ  भुखमरी के कगार पर है। आज भी हमारे देष में खासतौर से गरीब महिलाएं खून की कमी का षिकार होती हैं, तो उनके गर्भ में पल रहे बच्चे स्वस्थ कैसे होंगे ? प्रायः गर्भधारण से लेकर प्रसव के दौरान मरने वाली महिलाओं की संख्या कम नहीं है। पोशण का सवाल इस बात से सीधे जुड़ा है कि बच्चा जन्म ले पाएगा या नहीं और जन्म ले भी लेता है, तो उसे सही पोशण व सम्मानित जीवन जीने का अधिकार मिलेगा या नहीं, यह कहना मुष्किल है। आंकड़े बताते हैं कि 85 प्रतिषत से लेकर 90 प्रतिषत बच्चे 6 वर्श से कम उम्र में ही मर जाते है।
            
सबसे आष्चर्यजनक तथ्य तो यह है कि खाद्य सुरक्षा व बाल विकास परियोजना के तहत चल रहे ‘आंगनबाड़ी केंद्र’ पर बच्चों को दिया जाने वाला पोशाहार और अन्य सामग्रियां सिर्फ नाम मात्र के लिए ही मिलती है। बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए आने वाली सामग्रीम या तो बेच दी जाती है या फिर कागज़ी खानापूर्ति कर दी जाती है।  ऐसे में गरीब झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले परिवार के बच्चों को खाद्य सुरक्षा की गारंटी मिलेगी, कहना मुष्किल है। मौजूदा हालात में ऐसे परिवार अपने बच्चों को पेट की खातिर मजदूरी करने के लिए नहीं भेजंेगे तो क्या करेंगे? 
           
ज्यादातर बाल मजदूर गरीबी के कारण हजारों की संख्या में अन्यत्र राज्यों में पलायन कर रहे है। कमोबेष सभी राज्यों से गरीब ,भूमिहीन, आदिवासी, दलित एवं पिछड़ी जातियांे  से हजारों की तदाद में बच्चे पलायन कर दिल्ली, मुबंई, कोलकाता, आदि जगहों पर आधी मजदूरी में काम करने को मजबूर हैं। सर्वषिक्षा अभियान कार्यक्रम 6 से 14 वर्श के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य षिक्षा देने की बात करता है। दूसरी ओर पलायन कर रहे बच्चे या तो अषिक्षित हैं या फिर बीच में ही पढ़ाई छोड़कर अपने पेट की आग बुझाने को विवष हैं। वस्तुतः गरीब के भूखे बच्चों को हाथ से काम छीनकर जर्बदस्ती किताब पकड़वाने से अच्छा होता कि षिक्षा को श्रम से जोड़कर एक नई परिभाशा गढ़ी जाती। रोटी बिना किताब किस काम की। किसी उर्दू षायर ने ठीक ही कहा है-

‘जब चली ठंडी हवा, बच्चा ठंड से ठिठुर गया।
मां ने अपने लाल की तख्ती (स्लेट) जला दी रात को।’






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अमृतांज इंदीवर
(चरखा फीचर्स)

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