वर्ष २०१५ का उतरार्ध बिहार की दिशा कुछ और होगी ऐसा चुनावी पंडितो के कयास लगने शुरू हो गये . खासकर मुख्य चुनाव आयुक्त के संकेतो से चुनावी शतरंज की विसात बिछनी शुरू हो गयी .जनता परिवार के नाम पर जो अव्यवहारिक गठबंधन हुआ उसकी दर्द गाहे वगाहे बिहार की राजनीति में महसूस की जा रही है .बिहार के तथाकथित विकास पुरुष की अवधारणा से लवरेज वर्तमान मुख्यमंत्री भारतीय जनता पार्टी से रिश्ता तोड़ने से लेकर महादलित मुख्यमंत्री श्री मांझी जी के साथ जिस तरह का तानाशाही रुख अपनाया उसे और बिहार के नागरिको के साथ किया विश्वासघात के प्रतिउत्तर के लिए राज्य की जनता वेकरार है.
वर्तमान मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार की स्थिति आज उस नि:शक्त की तरह है जिसके आधे सफ़र में बैशाखी खो जाती है ;बैशाखी खो जाने के बाद उस नि:शक्त की जो मन:दशा होती है वैसी ही आज नीतीशजी की है . उहापोह की झंझावात की थपेड़े में आज तथाकथित विकास की भूख जगाने बाले बिहार के मुख्यमंत्री हताशा और निराशा में डुवें है,आज बिहार विकास की अवधारणा से मुक्त हो विनाश की बेडी में जकड़ी हुई है.
ज्ञान की भूमि बिहार आज ज्ञान के लिए तरस रहा है .बिहार की वर्तमान शिक्षा बद से बदतर है शिक्षा की जो दुर्गति हुई है वह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है ,शिक्षा मित्रो के रूप में शिक्षा के विकास के लिए अधिकांस वैसे लोगो का चयन हुआ जो सिर्फ अपराधी और असामाजिक तत्वों का मित्र हैं ऐसे लोगो से बिहार का भविष्य कितना सुरक्षित है आप खुद अंदाजा लगा सकते है,
बिहार की शिक्षा व्यवस्था को जानबूझकर और सुनियोजित तरीके से चौपट कर असामाजिक तत्वों के हवाले किया गया है वुनियादी शिक्षा या प्राथमिक शिक्षा की जो दुर्गति हुई है वह बिहार के मध्यम या निम्न तबके जिनके वच्चे सरकारी विद्यालयों में पढने जा रहे है वे शिक्षा के नाम पर अपने भविष्य चौपट कर रहें है,अनेक टीवी चैनलों पर बिहार की शिक्षा वयवस्था पर चर्चाये चली इन सरकारी महकमो में नवनिउक्त शिक्षा के कर्णधारों के योग्यताओं की पोल खुली वैसे में श्री नितीश कुमार बिहार को किस दिशा में ले जा रहे हैं यह जगजाहिर है .क्या बिहार के वच्चो को ऐसे शिक्षा से मुक्ति के लिए बिहार की मुक्ति नितीश कुमार के चंगुल से नहीं होनी चाहिए?
बिहार के नेताओ नौकरशाहों या व्यवसाईओ या उच्च मध्यम वर्ग के लोगो के वच्चे नामी गिरामी प्राइवेट स्कुलो से शिक्षा प्राप्त कर राज्य के संसाधनों पर कव्जा कर रहे है और दवे कुचले निम्न और अधिकांश मध्यम तबके के बच्चे मिड डे मिल से खुश होकर आजीवन एक सडी गली जिन्दगी जीने को मजबूर है , नीतीशजी ये किस तरह की समाजवादी संकल्पना का सिद्धांत है क्या लोहिया और जय प्रकाश जी ने इसी सडांध की कल्पना की थी. इस शिक्षा व्यवस्था से अच्छा तो अनपढ़ रहना ज्यादा समीचीन है ,सरकारी स्कुलो की बदतर संसाधन और शिक्षको की घटिया योग्यता बिहार के भविष्य को चौपट कर रही है,
जिस तरह से बिहार की राजनीति गठबंधन बन रही है वह जनता परिवार बिहार के लिए दीमक के सामान है जंगल राज से मुक्त हुआ बिहार विकास के जो सपने देखे थे उसे नितीश कुमार की महात्वकांक्षा ने लील लिया.कल तक जो लोग बिहार को विनाश के पगडण्डी पर ला खड़ा किया आज वही गिरोह के साथ नितीश कुमार गल्वाहियाँ डाले बिहार के विकाश की गाथा गाने की जो हिमाकत कर रहे है उसका ज़वाव ज़ल्द बिहार के आम नागरिक देंगे ,यदि इसबार बिहार के निम्न और मध्यम तबका नही जगा तो बिहार में उनके बच्चे सिर्फ और सिर्फ बंधुया मज़दूर ही बनेगे इसमें रंचमात्र संशय नही है.
.बिहार की शिक्षा व्यबस्था को असामाजिक तत्वों से मुक्ति के लिए बिहार के ज्ञान की अथाह धरोहरों के संरक्षण के लिए मंत्री हो या सनतरी सबके वच्चो की शिक्षा एक समान हो इसके लिए वर्ष २०१५ के उतरार्ध तक बिहार के नागरिक पुरे दम ख़म से ऐसे तबको की सरकार से बिहार को मुक्त कराकर शिक्षित और समृध बिहार की नीव डालकर एक मिसाल कायम करेंगे.
---एस के आज़ाद ---
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