मेक इन इंडिया : दहाड़ता शेर या अंधों का हाथी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 7 मई 2015

मेक इन इंडिया : दहाड़ता शेर या अंधों का हाथी

अतीत के रेड कारपेट पर लेटी हुई ' सोने की चिड़िया' को भविष्य का 'दहाड़ता शेर' बनाने की मुहिम में मेक इन इंडिया का शेर कहीं अंधों का हाथी न बन जाये। प्रचार के सरकारी तम्बू में बैठकर इस अभियान के हकीकत और फ़साने को समझना मुश्किल तो है पर नामुमकिन नहीं।

मेक इन इंडिया मुहिम के तहत सरकार हिंदुस्तान को औद्योगिक उत्पादन का हब बनाना चाहती है। बकौल मोदी, “आइए भारत में बनाइए और दुनिया भर में बेचिए”। इस महत्वाकांक्षी मुहिम के द्वारा मोदी विकास का सन्देश देने के अपने मंसूबे में कामयाब तो दिख रहे है लेकिन इस मुहिम को असली जामा पहनाने में मुश्किलें भी बहुत है। मसलन भारत में निर्मित सामान कितना सस्ता होगा ? अमेरिका और चीन जैसे विकसित देश पहले से ही घरेलू और विदेशी बाज़ारों में अपनी पकड़ मजबूत बनाये हुए है। हालांकि इस रेस में भारत को सफल होने से कोई रोक नहीं सकता अगर हम मजबूत इरादे और लेटेस्ट टेक्नोलॉजी के साथ आगे आयें। साथ ही सामान की गुणवत्ता पर कोई समझौता न हो।

एक अहम चुनौती है भूमि अधिग्रण का जो अबतक अध्यादेश के सहारे ही चलता दिख रहा है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने सरकार के भूमि अधिग्रण बिल के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। हालांकि सरकार के पास संयुक्त सत्र बुलाकर बिल को पास कराने का भी विकल्प खुला है। मेक इन इंडिया के तहत सरकार ने ऐसे 25 क्षेत्र चुने है जिसमे निवेश बढ़ाने के साथ ही निर्माण क्षमता अगले 7 से 9 वर्षों में बढ़ानी है। इसमें नौकरियां कितनी बढ़ेंगी अभी भी बहस का विषय है। इन सभी क्षेत्रों में निर्माण बढ़ाने के लिए हुनरमंद कामगारों की बड़ी संख्या में आवश्यकता होगी। हालांकि इस समस्या से निपटने के लिए 'स्किल्ड इंडिया' मुहिम भी सरकारी योजना का हिस्सा है।

इस बात को मोदी विरोधी भी स्वीकारते है की जनता की नब्ज पकड़ने में उन्हें महारत हासिल है। लेकिन मोदी हिंदुस्तान के शायद पहले प्रधानमंत्री है जो एक अच्छे सेल्समेन भी है। सपना को हकीकत बनाकर बेचने की कला उनमे कूट-कूट कर भरी हुई है।

भारत की जीडीपी लगभग 2000 अरब डॉलर की है और पिछले 5 वर्षों में लगभग 195 अरब डॉलर का विदेशी निवेश हुआ है। 57% अर्थव्यवस्था में सर्विस सेक्टर की भागीदारी है। इसमें कोई शक नहीं कि मेक इन इंडिया की सफलता एक्सपोर्ट पर निर्भर होगी जबकि दुनिया भर में मांग घटने के कारण एक्सपोर्ट घटा है।

इस को मुहिम सफल बनाने के लिए भ्रष्टाचार और लालफीताशाही को जड़ से खत्म करना होगा जो बहुत ही मुश्किल है। लेकिन मेक इन इंडिया के कर्ताधर्ता को पूर्ण विश्वास है कि सरकार भ्रष्टाचार और लालफीताशाही को खत्म कर निवेशकों को सिंगल विंडो क्लीयरेंस देने की दिशा में लगातार काम कर रही है। 'डिजिटल इंडिया' और 'स्किल्ड इंडिया' की मदद से मौजूदा समस्याएं दूर हो सकती है।




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राजीव सिंह
Email – rajivr.singh@yahoo.co.in

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