मोदी ने दिनकर के गुण गाए, बिहार में पैठ का प्रयास - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 23 मई 2015

मोदी ने दिनकर के गुण गाए, बिहार में पैठ का प्रयास


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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' का जिक्र कर बिहार सहित पूरे पूर्वी भारत के विकास की बात कही और बिहार से जाति आधारित राजनीति खत्म करने का आह्वान किया। उनके इस बयान को बिहार में पैठ बनाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है, जहां इसी साल सितंबर-अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने वाला है। इस चुनाव को लेकर सरगर्मियां अभी से तेज हैं। प्रख्यात कवि दिनकर के महान लेखन कार्य 'संस्कृति के चार अध्याय' और 'परशुराम की प्रतीक्षा' के स्वर्ण जयंती समारोह में मोदी ने जाति आधारित राजनीति खत्म करने और देश के पूर्वी हिस्से के विकास की दिशा में काम करने के लिए दिनकर का उदाहरण दिया। 

उन्होंने कहा कि देश की प्रगति के लिए आवश्यक है कि बिहार सहित पूरे पूर्वी भारत का विकास हो और वे देश के पश्चिमी हिस्से के समान बन सकें। एक आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार, प्रधानमंत्री ने वर्ष 1961 में दिनकर के लिखे उस पत्र को याद किया, जिसमें कवि ने इस बात पर बल दिया है कि उनके गृह राज्य बिहार को जाति आधारित विभाजन से ऊपर उठकर मेधा आधारित समाज के निर्माण की दिशा में काम करना चाहिए।

दिनकर के पत्र को उद्धृत करते हुए मोदी ने कहा, "आप किसी एक या दो राज्यों की सहायता से सरकार नहीं चला सकते.. यदि आप जाति से ऊपर नहीं उठे तो बिहार का सामाजिक विकास प्रभावित होगा।" उन्होंने कहा कि जहां पश्चिमी भारत के पास समृद्धि है, वहीं पूर्वी भारत के पास ज्ञान है। देश के विकास में दोनों क्षेत्रों का समान योगदान हो सकता है। प्रधानमंत्री ने राष्ट्रकवि दिनकर को महान दूरद्रष्टा बताया और कहा कि दिनकर की कविताओं में भारतीय संस्कृति एवं धरोहरों का बखान है, जिनके जरिए भारत की आत्मा को बेहतर तरीके से जाना व समझा जा सकता है।

मोदी ने कहा कि दिनकर के साहित्यि कर्म भारत की हर पीढ़ी के लोगों को प्रेरित करते रहे हैं। उन्होंने कहा, "कुछ ही रचनाएं हैं, जो समय के साथ भी उसी तरह प्रासंगिक बनी रहती हैं, जिस तरह दिनकर की रचनाएं हैं।" रामधारी सिंह 'दिनकर' का जन्म बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया में 23 सितंबर 1908 को हुआ था। वर्ष 1974 में 24 अप्रैल को वह महाप्रयाण कर गए। 'कुरुक्षेत्र', 'रश्मिरथी', 'उर्वशी', 'रेणुका', 'हुंकार' 'हारे को हरिनाम' व 'सीपी और शंख' उनकी कालजयी काव्य-कृतियां हैं। वर्ष 1972 में 'उर्वशी' के लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया था। 

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