दशकों से मंगल ग्रह पर जीवन की तलाश कर रहे वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता हाथ लगी है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वैज्ञानिकों ने सोमवार को मंगल ग्रह पर तरल अवस्था में पानी होने की पुष्टि की है। उन्होंने बताया कि मार्स रिकानाससेंस ऑर्बिटर को मंगल पर तरल रूप में लवण पेरोक्लोट होने के सबूत मिले हैं। इनकी वजह से मंगल ग्रह के सतह और ढलानों पर लकीरें बनी हुई मिली हैं। बता दें कि पेरोक्लोरेट पानी की मौजूदगी में ही बनती है।
वैज्ञानिकों का कहा कि परक्लोरेट नामक यह लवण बहुत -70 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी पानी को जमने से बचाता है। नासा के मुख्यालय में एक प्रेस कांफ्रेंस में इसकी जानकारी देते हुए लुजेंद्र ओझा ने बताया कि मंगल सूखा ग्रह नहीं है। हमारे रोवर ने वहां की मिट्टी के नमूनों की जांच में पाया कि वह आद्र हैं और उनमें भरपूर मात्रा में पानी है। उन्होंने कहा कि इन परिस्थितियों में वे दावे के साथ कह सकते हैं कि मंगल पर पानी मौजूद है।
ओझा ने कहा कि मंगल पर गर्मियों के मौसम में जब तापमान -10 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच जाता है तब पेरोक्लेरेट्स लकीरे बनाते हैं। वैज्ञानिक भाषा में इन्हें रिक्यूरिंग स्लोप लिनिए (आरएसएल) कहते हैं। हालांकि, सर्दियों के मौसम में ये गायब हो जाते हैं। चार साल तक वैज्ञानिक इसके राज पर से पर्दा उठाने की कोशिश करते रहे। अब हमें पता चला है कि इनका निर्माण सूरज की गर्मी के आधार पर होता है। गहरी रेखाएं वसंत ऋतु के अंतिम समय में बनती हैं। गर्मियों में इनका विकास होता है और सर्दियों के आने के साथ ही ये गायम होने लगते हैं। इससे साबित होता है कि पानी खारा है। इसकी वजह है कि इसमें घुली नमक उसके हिमांक बिंदु को कम करते हैं।

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