यह अनुभव करने योग्य है कि दुपहिया वाहनों को कुछ सिरफिरे लोग इतनी तेजी व लापरवाही से चला रहे हैं, जिससे आम जन-जीवन अत्यन्त खतरे मे है। इससे तो ऐसा लगता है कि राहगीरों को भी हेल्मेट पहनाना ज्यादा जरूरी है। उन रास्तों मे, जहां जनता निवास कर रही है और बच्चे भी खेलते रहते हैं, स्वयं पैदल चलने वाले राहगीरों को आगे बढ़ने के लिये रास्ता खाली नहीं मिलता है, लेकिन वहां भी मोटर सायकिलें अत्यंत तेज गति से दौड़ाते हुये देखी जा सकती हैं। यद्यपि इन्हें यह पता होना चाहिये कि भले ही किसी के साथ दुर्घटना घटित नहीं भी हुई हो परन्तु मानव जीवन को खतरा उत्पन्न करने वाले तेज गति से वाहन चलाने पर धारा 279 आई.पी.सी. का अपराध है। आश्चर्य तो यह है कि किसी भी ट्रेफिक पुलिस वाले को इसका नियंत्रण करने हेतु सक्रिय नहीं देखा गया है। पुलिस की ओर से सिर्फ धारा 279 आई.पी.सी. का चालान सम्भवतः किया ही नही जाता है। जब तक किसी को चोट न लग जाये अथवा किसी की हड्डी न टूट जाये अर्थात धारा 337 एवं 338 आई.पी.सी. का अपराध न बन जाये, तब तक पुलिस धारा 279 आई.पी.सी. का चालान करती ही नहीं है। जब कि कानून की ऐसी कोई मंशा नहीं है कि इस हेतु चोट लगने अथवा हड्डी टूटने का अपराध भी घटित होना आवश्यक हो। मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 184 मे प्रावधान है कि खतरनाक तरीके से वाहन चलाने पर 6 माह के दण्ड या जुर्माने से दण्डित किया जावेगा। धारा 189 के तहत जो भी व्यक्ति सार्वजनिक स्थान पर वाहन को दौड़ या गति का मुकाबला करने के लिये वाहन चलायेगा तो इस हेतु एक माह का दण्ड या जुर्माने का प्रावधान है।
बिना किसी उद्देश्य के, केवल प्रदर्शनात्मक लगातार हाॅर्न बजाते हुये अत्यन्त तेज गति से मोटर वाहन चलाने वालों को विदेश मे फट्लूस माना जाता है और ऐसे लोगों को हेय दृष्टि से देखा जाता है। सच तो यह है कि मानसिक रूप से यही स्थिति भारत मे भी है। सेन्ट्रल मोटर व्हीकल रूल्स 1989 के रूल नम्बर 119 मे यह प्रावधान है कि प्रत्येक मोटर वाहन मे इण्डियन स्टेण्डर्ड आॅफ ब्यूरो द्धारा अनुशंसित हाॅर्न का ही प्रयोग किया जावेगा। इसी सन्दर्भ ‘मध्य प्रदेश कोलाहल नियन्त्रण अधिनियम 1985‘ के अनुसार ध्वनि विस्तारक यत्रों पर नियन्त्रण लगाने के साथ-साथ मोटर वाहनों से उत्पन्न होने वाले कोलाहल के सम्बन्ध मे स्पष्टतः प्रावधान है कि सड़क पर या किसी लोक स्थान पर मोटर यान तब तक चलाया या उपयोग मे नही लाया जायेगा जब तक कि एक्जास्ट सिस्टर्न को समुचित रूप से न ढं़क दिया गया हो, जिससे कि कोलाहल उत्पन्न न हो एवं कोई भी व्यक्ति वाहन से ऐसा हाॅर्न नही बजायेगा जिससे कि वहां पैदल चलने वालों को या किसी अन्य वाहन के चालक को क्षोभ उत्पन्न हो या वह घवड़ा जाये। इस संदर्भ मे भी तो ट्रेफिक पुलिस को ध्यान देना होगा कि वाहनों मे हाॅर्न कानून एवं नियम के अनुसार उनकी निर्धारित फ्रिक्वेन्सी की ही सीमा मे हो तथा ऐसे हाॅर्न म्यूजिकल नही होना चाहिये। कानून का उल्लंघन करने वाले को छः माह के जेल का कारावास अथवा एक हजार रूपये के अर्थ दण्ड की सजा का प्रावधान है। इसका उल्लघंन दूसरी बार करने पर दण्ड की सीमा दो गुना हो जायेगी। तेज ध्वनि को कानून निर्माताओं ने आम जनता की संवेदनशीलता के साथ देखते हुये ऐसा प्रावधान प्रदान किया है।
ट्रैफिक पुलिस को इस ओर भी ध्यान देना होगा कि अनेकों वाहन बिना नम्बर-प्लेट के आम सड़क पर चलते हुये उनके सामने से निकल जाते हंै। इसके अनेकों खतरनाक, परेशानीदायक एवं विपरीत परिणाम सामने आते हैं। बिना नम्बर वाले वाहन से यदि कोई अपराध करके भाग जाये तो फिर उसका पकड़ना मुश्किल हो जाता है। फरियादी और घटना के साक्षीगंण उस वाहन पर नम्बर नही लिखे होने के कारण अपराध करने वाले के संदर्भ मे कुछ नही बता पाते हैं, परिणामतः अपराध मे प्रयुक्त हुआ वाहन ज्ञात नही हो पाता है। जहां न्यायालय के समक्ष यह प्रकट हुआ कि दुर्घटना करने वाले वाहन पर नम्बर-प्लेट नही थी तो लाल, पीला, नीला, काला रंग के नाम से वाहन की पहचान होती है और ऐसे रंगो के तो अनेकों वाहन होते हैं। जिन वाहनो पर नम्बर नही लिखा है, ऐसे वाहनों को सख्ती के साथ जब्त किया जाना चाहिये। ऐसे भी अनेकों वाहन, जिनका रजिस्ट्रेशन कई-कई वर्षों तक आर.टी.ओ. मे नही हुआ हो और यह भी संभव है कि वाहन मालिक अनेकों अपराधों मे लिप्त होते हुये टैक्स की चोरी भी कर रहे हों।
देखने मे आ रहा है कि मौसम अथवा प्रदूषण के नाम पर कुछ लोग अपने मुंह को कपड़े से इस तरह ढंक लेते है जिससे कि उनकी पहचान न हो सके। इस क्रम मे लड़कियां भी पीछे नही हैं और इस कारण से गम्भीर परिणाम बाद मे सामने आते हैं। किसी अपराध की घटना घटित होने पर कपड़े से मुंह छुपाये होने के कारण अपराधी की पहचान नही हो पाती है और ऐसे लोग बड़ी आसानी से बचकर निकल जाते है तथा पुलिस की पकड़ से बाहर हो जाते है। पुलिस द्वारा ऐसे मंुह छुपाये लोगों के वाहनों को न तो कभी रोका जाता है और न ही उनसे पूछताछ की जाती है। उनके ढंके हुये मुंह को कभी खुलवाते हुये नही देखा गया है। कानून मे इस हेतु भी स्पष्ट प्रावधान है। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 109 यह निर्देश देता है कि यदि कोई भी व्यक्ति अपनी पहचान छुपाने की कोशिश करता है और उस कारण से ऐसी शंका प्रकट होती है कि वह व्यक्ति कोई भी अपराध घटित कर सकता है तो ऐसी पहचान छुपाने वाले व्यक्ति पर कार्यवाही कर सकती है तथा उसे कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समझ प्रस्तुत किया जावेगा।
लेखक- राजेन्द्र तिवारी, अभिभाषक, दतिया
फोन- 07522-238333, 9425116738
rajendra.rt.tiwari@gmail.com
नोट:- लेखक एक वरिष्ठ अभिभाषक एवं राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक विषयों के समालोचक हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें