जी हां, चार वर्ष के कार्यकाल में अखिलेश यादव की प्रमुख उपलब्धि के बीच लालफीताशाहों, नोएडा चीफ इंजिनियर यादव सिंह, आईएएस अमृत त्रिपाठी, आईपीएस अशोक शुक्ला, कोतवाल संजयनाथ तिवारी जैसे भ्रष्ट व नकारा अधिकारियों सहित बाहुबलि जनप्रतिनिधियों की गुंडागर्दी और उनके साजिश में जगह-जगह दंगे, दर्ज फर्जी मुकदमें, पत्रकारों का उत्पीड़न व हत्याएं, व्यापारियों से खुलेआम फिरौती, लूट, डकैती व राह चलती महिलाओं, युवतियों-किशोरियों की अपहरण, बलातकार की घटनाएं आमजनमानस में फोडे की तरह मथ रही है। उसे सिर्फ और सिर्फ इंतजार है आम विधानसभा चुनाव का। सर्वे रिपोर्टो पर यकीन करें तो 2017 में सपा का हश्र लोकसभा चुनाव से भी बदतर होने वाला है
जब मार्च-2012 में मुलायम सिंह ने सपा को स्पष्ट बहुमत मिलने के बाद अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाए जाने की घोषणा की तो माना गया कि वह धृतराष्ट्र भूमिका में है। लेकिन उस वक्त मुलायम ने दावे के साथ कहा प्रदेश का विकास होगा। पूर्व में लगे गुंडागर्दी, लूटपाट व आतंक के दाग से मुक्ति पार्टी को मुक्ति मिलेगी। लेकिन चार साल बाद जब आज अखिलेश सरकार के उपलब्ध्यिों का आंकलन व पड़ताल की जा रही है तो पाया गया कि कुछ उपलब्धियों पर सरकार की तानाशाही, गुंडागर्दी, फर्जी मुकदमें, दंगे व अपराध की वारदातें भारी है। इसकी बड़ी वजह है यह है कि समय-समय पर मुलायम ने माना तो जरुर कि उनके जनप्रतिनिधि भ्रष्ट अधिकारियों को साजिश में लेकर अनर्गल कामों के जरिए पार्टी की साख पर बट्टा लगा रहे है। इसके लिए उन्होंने खुले मंच से न सिर्फ अखिलेश बल्कि भ्रश्अ अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों को भी लताड़ा, लेकिन वह सिर्फ दिखावा तक ही होकर रह गया। नौकरशाहों व लालफीताशाहों की मनमानी चरम पर रही। आजम खां या राजा भैया या बाहुबलि विधायक विजय मिश्रा जैसे लोगों के ओछी हरकतों के चलते पार्टी की छबि धूमिल होती रही, लेकिन कुछ हो न सका। चार साल में 200 से अधिक दंगे के दाग तो लगे ही, सरकार को राजभवन और न्यायपालिका से भी टकराना पड़ा। चलीचला की बेला में सपा ने भविष्य के लिए दो नए नारे गढ़े हैं। ‘हर लहर-लहर-डगर-डगर, उत्तर प्रदेश मांगे फिर अखिलेश।’ तरक्की का श्री गणेश, अखिलेश-अखिलेश।’ लेकिन सरकार की नाकामियों को देखकर दावे के साथ कहा जा सकता है कि 2017 के चुनाव में पूर्व के नारे उत्तम प्रदेश की तर्ज पर खाक हो जायेगा। इसके लिए जनता तैयार बैठी है।
शुरू के डेढ़-दो साल तो पिता से विरासत में मिले मंत्रिमंडल और अधिकारियों को समझने में ही अखिलेश ने गवा दी। फिर प्रशासन पर धीरे-धीरे पकड़ बनी तो कुछ ठोस और सूझबूझ वाले निर्णय, मसलन बेरोजगारी भत्ता बंद करने या फिर लैपटॉप वितरण को रोका तो जरुर, लेकिन तब तक काफी घपले-घोटाले हो चुके थे। जिन 15 लाख इंटर पास बच्चों को मुफ्त लैपटॉप बांटा गया, उसमें करोड़ो-अरबों का घलमेल उजागर हो चुका है। मेधावी छात्रों के नाम पर भी मिनले वाले लैपटाॅप योजना में जमकर धांधली बरती गयी। मुस्लिम बालिकाओं को 10 वीं पास होने के बाद 30 हजार रुपये का अनुदान दो साल तक बांटा मगर तीसरे साल में बंद कर दिया गया। लखनऊ में आईटी सिटी परियोजना का अभी दूर-दूर तक अता-पता नहीं है। कहा जा रहा है अक्टूबर, 2016 तक शुरू हो जायेगा, लेकिन इसके आसार नहीं है। क्योंकि जब 4 साल कुछ नहीं हुआ तो अब क्या खाक होगा। अपने ड्रीम प्रोजेक्ट्स चाहे लखनऊ में मेट्रो चलाने का महत्वाकांक्षी फैसला हो या फिर सरकारी कोष से 15 हजार करोड़ की लागत से बनाया जाने वाला सिक्स- लेन लखनऊ-आगरा हाइवे सब में जमकर घालमेल हुआ है। उपलब्धि में जनेश्वर पार्क की दुहाई दी जा रही है। जबकि सच तो यह है कि आम जनता से उसका कोई लेना देना नहीं है। लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस, मेट्रो परियोजना सरकार के ड्रीम प्रॉजेक्ट थे। मगर अपने ड्रीम प्रॉजेक्ट को जमीन पर उतारने में सरकार को ढाई साल से ज्यादा का वक्त लग गया। ढाई साल तक ये परियोजना कागजों पर चलती रही। अब जब कमीशनबाजी तय हुआ तो काम की शुरुवात सिर्फ इसलिए की गयी कि चलीचला की बेला में जो ही हाथ लग जाय वहीं सही। हालांकि सरकार का दावा है कि अक्टूबर तक एक्सप्रेस-वे, मेट्रो दिसंबर तक शुरू हो जायेगा और रत्तीभर भी घोटाला नहीं हुआ है। बीपीएल की सभी महिलाओं को दो-दो साड़ी और बुजुर्गों को कंबल देने का वादा धरा ही रह गया। दुसरे राज्यों के सापेक्ष वैट का सरलीकरण करने का ऐलान तो किया गया, मगर वैट की दरें दूसरे राज्यों के बराबर करने की बात तो दूर सरकार ने कई वस्तुओं पर वैट और भी बढ़ा दिया। व्यापारियों को सुरक्षा देने के लिए व्यापारी सुरक्षा फोरम बनाने की घोषणा हवा-हवाई होकर रह गयी।
माना प्रधानी, प्रमुखी, जिला पंचायत व एमएलसी चुनाव में दबंगई व बाहुबल-धनबल के बूते अपना दमखम दिखाया। लेकिन आमजनमानस में यह नहीं चल पायेगा। जिन दावेदारों को सत्ता की धौंस दिखाकर चुनाव लड़ने नहीं दिया गया या हराया गया वह खार खाएं बैठे है। मौका आने पर अपना दमखम दिखाने से बाज नहीं आयेंगे। जहां तक नियुक्तियों का सवाल है नोएडा के चीफ इंजीनियर यादव सिंह का मामला हो या लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अनिल यादव का, दोनों में दूसरे पावर सेंटर की वजह से सरकार की किरकिरी हुई। यादव सिंह और अनिल यादव दोनों के मामले में दिल्ली में रहने वाले सपा के एक बड़े नेता की ओर उंगली उठी, वहीं मुजफ्फरनगर दंगे में भी पार्टी के दूसरे नेताओं पर सवाल खड़े होते रहे। लोकायुक्त तैनाती मामले में भी सरकार की खूब फजीहत हुई। विवाद के चलते सुप्रीम कोर्ट को खुद ही लोकायुक्त तैनात करना पड़ा। शिक्षामित्रों को नियमित करने में भी सरकार के पसीने छूटे। सुप्रीम कोर्ट ने उनका समायोजन अवैधानिक करार दे दिया। रोक लगी। सरकार एसएलपी फाइल नहीं कर सकी। शिक्षामित्र खुद अपनी कोर्ट में लड़ रहे। मनोनीत एमएलसी के लिए सरकार ने जो नाम राज्यपाल के पास भेजे, उन पर भी आपत्ति लगी। गवर्नर ने मंजूरी नहीं दी तो सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा।
जहां तक अपराध का सवाल है कानपुर, कन्नौज व लखनउ, गोरखपुर आदि जनपदों में नाबालिग लड़कियों के साथ गैंगरेप की 225 से अधिक बड़ी वारदातें तो महज एक बानगीभर हैं। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरों के ताजा आंकड़ों मुताबिक साल 2014 में यूपी में रेप के 3467 केस दर्ज है। जबकि गैंगेरेप के मामले में देश में यूपी सबसे उपर है। यूपी में 2014 में गैंगरेप के 573 मामले सामने आएं है। एक साल में बलातकार कोशिश के 324 केस दर्ज कराएं गए। बच्चियों के साथ रेप के मामले में यह आंकड़ा 1538 तक पहुंच गया है। जबकि 2014 में देशभर में बलातकार के कुल 36735 केस दर्ज है। जिसमें मध्य प्रदेश टाॅप पर है तो यूपी चैथे नम्बर पर है। मध्य प्रदेश में 5076, राजस्थान में 3759, महाराष्ट में 3438, यूपी में 3467, दिल्ली में 2096 रेप की घटनाएं हो चुकी है। रेप जैसे मामले को लेकर मुलायम सिंह यादव का एक साथ चार लोग बलातकार कर ही नहीं सकते, का पहला बयान नहीं है। इसके पहले भी बलातकार के मामले में वह कह चुके है लड़के है गलतिया हो जाया करती है। गौर करने वाली बात यह है कि मठाधीश थानेदारों से पुलिस अधिकारियों का वसूली प्रेम इतना गहरा है कि बड़े स्तार पर शिकायत करने के बावजूद कार्रवाई नहीं करते। हाल यह है कि यूपी पुलिस मानवाधिकार की धज्जियां उड़ाने में भी पीछे नहीं है। आयाोग के गठन से लेकर अब तक पिछले 22 साल में यूपी पुलिस के खिलाफ साढ़े तीन लाख से ज्यादा शिकायतें आयोग पहुंची है। स्थिति यह है कि केवल अखिलेश यादव की 4 साल के कार्यकाल में 85 हजार से अधिक शिकायतें आयोग में लंबित है। ये आंकड़ा पूरे देश की पुलिस की शिकायतों का दो तिाहाई है।
(सुरेश गांधी)

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