बिहार में मुद्रा योजना को मुँह चिढ़ाता बैंकर्स
प्रद्योत कुमार,बेगूसराय। वर्ष 2015 में माननिय प्रधानमंत्री, भारत सरकार श्री नरेंद्र मोदी ने मुद्रा योजना की शुरुआत की इस सोच के साथ कि गरीबों को,बेरोज़गार युवाओं को बैंक के द्वारा कम ब्याज़ पर,सुलभ तरीके से और आसान फॉर्मेलिटी के साथ लोन देकर आत्मनिर्भर बनाएंगे जिससे कि देश एवं राज्य का समग्र विकास होगा और बेरोजगारी का रोना बहुत हद तक कम अवश्य हो जायेगा साथ ही भारत सरकार ने इस योजना के लिये बैंकर्स को आर्थिक मदद भी की है,लेकिन बिहार के अधिकांस ज़िलों में इस योजना के लाभार्थी,लाभ से वंचित रह गए हैं क्यूंकि बिहार के बैंकर्स ने इस सुलभ योजना को इतना कठिन नियमों के साथ लाभार्थी के सामने पेश करते हैं कि उन नियमों को पूरा करने में उनकी ज़िन्दगी निकल जायेगी लेकिन वो लोन नहीं ले पाएंगे।इससे बेहतर उन्हें ग़रीब व बेरोज़गार रह लेना ज़्यादा पसंद है।ऐसा क्यूँ?इसकी चर्चा मैं आगे करूँगा। यहाँ एक बात बताना बेहद ज़रूरी है कि मुद्रा योजना के अंतर्गत मुद्रा शिशु में पच्चास हज़ार और मुद्रा किशोर,मुद्रा तरुण में पच्चास हज़ार से पाँच लाख एवं पाँच लाख से दस लाख तक का लोन बैंक देगी।इतने रुपये में तो निशित ही बेरोज़गारी दूर हो जायेगी लेकिन इस योजना का बिहार के बैंक कर्मियों ने सरे आम मुंह चिढ़ाने का काम किया है और कर रहे हैं।
इस बात कि चर्चा यहाँ ज़रूरी है कि मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार ने बैंकर्स के साथ बिहार में लोन कम होने की समीक्षा की थी कि देश का सीडी रेशियो इस समय 78 फीसदी है लेकिन बिहार में 44 प्रतिशत के आसपास है,मतलब साफ़ है कि बैंक प्रदेश से 100 रुपये जमा ले रहे हैं और ऋण के रूप में 44 रुपये दे रहे हैं शेष 66 रुपये दूसरे राज्यों में जा रहा है तो ऐसे में बिहार का पैसा तो शिक्षा,रोज़ी-रोज़गार के लिए उपलब्ध नहीं हो पायेगा,क्योंकि सभी जानते हैं कि बिहार एक ग़रीब प्रदेश की श्रेणी में है।इस पर बैंकर्स का कहना था कि मेरा ऋण वसूली नहीं हो पाता है और ऋण खाता एनपीए हो जाता है।बात बिल्कुल सही है और ऐसा ही होता है और भला हो क्यूँ नहीं क्योंकि ज़मीनी हक़ीक़त ये है कि अधिकतर बैंक और बैंकर्स दलालों से घिरे पड़े हैं,बगैर दलाल के बैंक से लोन लेना स्वर्ग पाने के जैसा है और एक बात तो सबको पता है कि स्वर्ग पाने के लिए मरना पड़ता है।सबसे हैरत की बात तो यह है कि बैंकर्स का दलालों के माध्यम से 10 से 25 प्रतिशत लोन लेने वाले को स्वीकृत लोन राशि का दलाली देना पड़ता है।इसीलिए लोग ऋण लेकर सो जाते हैं या कमसम देकर निश्चिन्त हो जाते हैं। अब प्रधानमंत्री मुद्रा योजना को लीजिए बगैर कमीशन का ऋण मिलेगा ही नहीं।अब सरकार को लीजिये योजना लागू कर उसको लावारिस छोड़ देती हैं,सरकार को तो सिर्फ आंकड़े चाहिये जो उन्हें निश्चित समय पर कर्मियों द्वारा मिल जाया करता है।उसके पीछे का दर्द जिसके लिए योजना लागू किया जाता है,किसी ने आज तक महसूस नहीं किया है।शायद इसीलिए सरकार बदनाम होती है। जनाब एक आम कहावत है कि बैंक ऋण सिर्फ पैसे वालों को देती है,ग़रीब आखों में आंसू लिए सिर्फ प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की तरफ टकटकी लगाए देखते रह जाएगा।

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